साल 1992 के शुरू से ही शेषन ने सरकारी अफसरों को उनकी गलतियों के लिए लताडऩा शुरू कर दिया था। उसमें केंद्र के सचिव और राज्यों के मुख्य सचिव भी शामिल थे। बीते दशकों में टीएन शेषन से ज्यादा नाम शायद ही किसी नौकरशाह ने कमाया हो…
योगेंद्र योगी
देश की मौजूदा पीढ़ी को शायद इस बात का अंदाजा भी नहीं होगा कि भारत की आजादी के बाद की ऊबड-खाबड़ यात्रा में देश ने ऐसे-ऐसे हिचकोले खाए कि लगने लगा था कि लोकतंत्र पटरी से उतर कर अराजकता में बदल जाएगा। इसी यात्रा में सबसे बड़ी चुनौती थी, देश के निष्पक्ष और शांतिपूर्ण चुनाव सम्पन्न कराना। आज जिस तरह शांतिपूर्ण तरीके से चुनाव सम्पन्न कराए जा रहे हैं, करीब साढ़े तीन दशक पहले इसकी कल्पना तक नहीं की जा सकती थी। उस दौर में ऐसा कोई भी चुनाव नहीं रहा जो खून-खराबे से भरा नहीं रहा हो। देश में बैलट पर बुलेट भारी था। बंदूक की नोक पर वोटों की पेटियों को लूटना आम बात थी। भारत की चुनावी प्रक्रिया में हर तरह की बुराई थी। ऐसे में देश को एक ऐसा मुख्य चुनाव आयुक्त मिलता है, जो पूरी चुनाव व्यवस्था को बदलकर रख देता है। बड़े-बड़े दिग्गज नेताओं को नकेल कस देता है। उस मुख्य चुनाव आयुक्त का नाम है टीएन शेषन। आज अगर देश में निष्पक्ष और स्वतंत्र माहौल में चुनाव हो पाता है तो इसका श्रेय टीएन शेषन को जाता है। देश के दबंग चुनाव आयुक्त के तौर पर अपनी पहचान बनाने वाले शेषन नौकरशाही में भी सुधार के जनक थे।
ईमानदारी और कानून के प्रति अपनी निष्ठा की वजह से वह बहुतों को खटकते भी थे। इस वजह से उनके विरोधी उनको सनकी और तानाशाह तक भी कहते थे। लेकिन वह व्यवस्था में क्रांति लाने वाले इनसान, मेहनती, सक्षम प्रशासक, योग्य नौकरशाह, बुद्धीजीवियों और मध्य वर्ग के नायक थे। पलक्कड़ (केरल) के निवासी शेषन ने 1955 में भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) में ट्रेनी के तौर पर अपने करियर की शुरुआत की। शेषन ने अपनी पहली तैनाती में ही तीखे तेवर दिखाते हुए तमिलनाडु के मदुरई जिले के डिंडीगुल में सब कलेक्टर पद पर रहते हुए हरिजन समुदाय के एक व्यक्ति पर फंड के घपले का आरोप में गिरफ्तार करवा दिया। मंत्री के दवाब के बाद भी आरोपी को नहीं छोड़ा। चेन्नई में यातायात आयुक्त पद के दौरान एक बार एक ड्राइवर ने शेषन से पूछा कि अगर आप बस के इंजन को नहीं समझते और ये नहीं जानते कि बस को ड्राइव कैसे किया जाता है, तो आप ड्राइवरों की समस्याओं को कैसे समझ पाएंगे। शेषन ने इसको एक चुनौती के रूप में स्वीकार किया। उन्होंने न सिर्फ बस की ड्राइविंग सीखी बल्कि बस वर्कशॉप में भी काफी समय बिताया। एक बार उन्होंने बीच सडक़ पर ड्राइवर को रोक कर स्टेयरिंग संभाल लिया और यात्रियों से भरी बस को 80 किलोमीटर तक चलाया। शेषन का तमिलनाडु के मुख्यमंत्री से काफी झगड़ा हो गया, जिसके बाद वे प्रतिनियुक्ति पर दिल्ली आ गए और तेल एवं प्राकृतिक गैस आयोग के एक सदस्य के तौर पर उनकी नियुक्ति हुई। तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के आग्रह पर पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के सचिव बन गए। सचिव के तौर पर उन्होंने टिहरी बांध और सरदार सरोवर बांध जैसी परियोजनाओं का विरोध किया। भले ही सरकार ने उनके विरोध को दरकिनार कर दिया और परियोजना पर काम को आगे बढ़ाया, लेकिन बांध के पर्यावरण पर पडऩे वाले प्रभाव को नजरअंदाज नहीं किया गया।
इसके साथ ही शेषन ने विभागों में नहीं कहने का रुझान शुरू किया। इस दौरान राजीव गांधी से उनकी नजदीकी बढ़ी। वहां से उनको आंतरिक सुरक्षा का सचिव बनाया गया। करीब 10 महीनों बाद उनको कैबिनेट सचिव बनाया गया। जब राजीव गांधी दिसंबर 1989 में चुनाव हार गए और प्रधानमंत्री नहीं रहे तो शेषन का ट्रांसफर योजना आयोग में कर दिया गया। शेषन के मुख्य चुनाव आयुक्त बनने की दास्तां भी कम दिलचस्प नहीं है। दिसंबर 1990 में केंद्रीय वाणिज्य मंत्री और शेषन के दोस्त सुब्रमण्यम स्वामी ने प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के दूत के तौर शेषन पर मुख्य चुनाव आयुक्त के पद की पेशकश की। शेषन इस प्रस्ताव से बहुत अधिक उत्साहित नहीं हुए थे, क्योंकि पहले ही कैबिनेट सचिव विनोद पांडे ने भी उन्हें ये प्रस्ताव दिया था। शेषन इस प्रस्ताव पर राजीव गांधी से मिले। राजीव गांधी ने शेषन को मुख्य चुनाव आयुक्त का पद स्वीकार करने के लिए अपनी सहमति दे दी। लेकिन वो इससे बहुत खुश नहीं थे। उन्होंने उन्हें छेड़ते हुए कहा कि वो दाढ़ी वाला शख्स (चंद्रशेखर) उस दिन को कोसेगा, जिस दिन उसने तुम्हें मुख्य चुनाव आयुक्त बनाने का फैसला किया था। पंडित जवाहर लाल नेहरू ने साठ के दशक में तमिलनाडु में शेख को नजरबंद करवा दिया था।
शेषन उस समय मदुरै जिले के कलेक्टर थे। उनको जिम्मेदारी दी गई थी कि वो शेख द्वारा बाहर भेजे गए हर पत्र को पढ़ें। शेख ने डॉक्टर एस. राधाकृष्णन प्रेसिडेंट ऑफ इंडिया के नाम पत्र लिखा। शेषन ने बिना डरे पत्र पढ़ लिया। शेख ने घोषणा की कि वो उनके साथ किए जा रहे खराब व्यवहार के विरोध में आमरण अनशन पर जाएंगे। शेषन ने कहा कि सर ये मेरा कत्र्तव्य है कि मैं आपकी हर जरूरत का ख्याल रखूं, मैं ये सुनिश्चित करूंगा कि कोई आपके सामने पानी का एक गिलास भी लेकर न आए। शहरी विकास मंत्रालय के संयुक्त सचिव के धर्मराजन त्रिपुरा में हो रहे चुनावों का पर्यवेक्षक का कार्य छोड़ कर थाइलैंड चले गए। इस पर दंडित करते हुए शेषन ने उनकी गोपनीय रिपोर्ट में विपरीत प्रविष्टि करने का फैसला किया। शेषन ने वर्ष 1993 में 17 पेज का आदेश जारी किया कि जब तक सरकार चुनाव आयोग की शक्तियों को मान्यता नही देती, तब तक देश में कोई भी चुनाव नहीं कराया जाएगा। आखिरकार सरकार को उनके सामने झुकना पड़ा। मौजूदा आदर्श आचार संहिता उसी आदेश का परिणाम है। शेषन के आने से पहले मुख्य चुनाव आयुक्त एक आज्ञाकारी नौकरशाह होता था जो वही करता था जो उस समय की सरकार चाहती थी। ये शेषन का ही बूता था कि उन्होंने चुनाव में पहचान पत्र का इस्तेमाल आवश्यक कर दिया। शेषन ने साफ कह दिया कि अगर मतदाता पहचान पत्र नहीं बनाए गए तो एक जनवरी 1995 के बाद भारत में कोई चुनाव नहीं कराए जाएंगे। शेषन के दौर में ही हिमाचल प्रदेश में चुनाव के दिन पंजाब के मंत्रियों के 18 बंदूकधारियों को राज्य की सीमा पार करते हुए धर दबोचा गया। उत्तर प्रदेश और बिहार सीमा पर तैनात नागालैंड पुलिस ने बिहार के विधायक पप्पू यादव को सीमा नहीं पार करने दी।
हिमाचल प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल गुलशेर अहमद को चुनाव आयोग द्वारा सतना का चुनाव स्थगित करने के बाद उन्हें अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। गुलशेर अहमद पर आरोप था कि उन्होंने राज्यपाल पद पर रहते हुए अपने पुत्र के पक्ष में सतना चुनाव क्षेत्र में चुनाव प्रचार किया था। उसी तरह राजस्थान के तत्कालीन राज्यपाल बलिराम भगत को भी शेषन का कोपभाजन बनना पड़ा था, जब उन्होंने एक बिहारी अफसर को पुलिस का महानिदेशक बनाने की कोशिश की। शेषन ने बिहार में पहली बार चार चरणों में चुनाव करवाया और चारों बार चुनाव की तारीखें बदली गईं। यह बिहार के इतिहास का सबसे लंबा चुनाव था। शेषन ने आचार संहिता के उल्लंघन पर पश्चिम बंगाल की राज्यसभा सीट पर चुनाव नहीं होने दिया, जिसकी वजह से केंद्रीय मंत्री प्रणब मुखर्जी को अपने पद से इस्तीफा देना पड़ा। पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री ज्योति बसु इतने नाराज हुए कि उन्होंने उन्हें पागल कुत्ता कह डाला। साल 1992 के शुरू से ही शेषन ने सरकारी अफसरों को उनकी गलतियों के लिए लताडऩा शुरू कर दिया था। उसमें केंद्र के सचिव और राज्यों के मुख्य सचिव भी शामिल थे। बीते दशकों में टीएन शेषन से ज्यादा नाम शायद ही किसी नौकरशाह ने कमाया हो। वर्ष 1990 के दशक में तो भारत में एक मजाक प्रचलित था कि भारतीय राजनेता सिर्फ दो चीजों से डरते हैं, एक खुदा और दूसरे टीएन शेषन से।