अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

यौनजीवन : गैर भैंसबुद्धि स्त्रियां महसूस करती हैं, वे यूज़ की जा रही

Share

सुधा सिंह

      _मास्टर्स और जानसन ने पहली दफा संभोग की प्रक्रिया का वैज्ञानिक अध्ययन किया है। और वे इस नतीजे पर पहुंचे हैं कि पचहत्तर प्रतिशत पुरुष शीघ्रपात के शिकार हैं—पचहत्तर प्रतिशत! गहन मिलन के पहले ही वे स्खलित हो जाते हैं और क्रीड़ा समाप्त हो जाती है।_

      99 प्रतिशत स्त्रियां कभी आर्गाज्म को नहीं उपलब्ध हांती हैं, कभी संभोग के शिखर सुख को नहीं पहुंच पाती हैं : 99 प्रतिशत स्त्रियां!

        यही कारण है कि अक्सर स्त्रियां चिड़चिड़ी और क्रोधी होती हैं, या फिर बनावटी मुस्कान वाली यानी पाखंडी. उन्हें ऐसा होना ही है। कोई औषधि उन्हें शांत नहीं बना सकती है, कोई दर्शनशास्त्र, धर्म या नीति उन्हें अपने पुरुषों के प्रति सहृदय नहीं बना सकती।

       वे अतृप्त हैं। वे क्रुद्ध हैं। और आधुनिक मनोविज्ञान और तंत्र दोनों कहते हैं कि जब तक स्त्री काम— भोग में गहन तृप्ति को नहीं प्राप्त होती, वह परिवार के लिए समस्या बनी रहेगी।

        जिससे वह वंचित रह गई है,वह चीज उसे क्षुब्ध रखेगी और वह हमेशा झगड़ालू बनी रहेगी।

तो अगर पत्नी हमेशा लड़ती—झगड़ती रहती है तो पूरी स्थिति पर फिर से विचार करो। इसमें पत्नी का ही कसूर नहीं है, हो सकता है कि उसका कारण आप ही हो।

      आर्गाज्म को न उपलब्ध होने के कारण स्त्रियां काम—विमुख हो जाती हैं, वे आसानी से काम— भोग में उतरने को नहीं राजी होतीं।

     उन्हें रिश्वत देनी पड़ती है, वे संभोग में जाने को राजी नहीं होतीं। और वे क्यों राजी हों यदि उन्हें इससे गहन सुख की उपलब्धि ही नहीं होती?

       सच तो यह है कि स्त्रियों को लगता है कि पुरुष उनका उपयोग करते हैं, उनका शोषण करते हैं। उन्हें लगता है कि हम कोई वस्तु हैं जिसका उपयोग करके फेंक दिया जाता है। पुरुष तो संतुष्ट हो जाता है, क्योंकि वह स्खलित हो जाता है। फिर वह करवट लेकर सो जाता है। लेकिन स्त्री आंसू बहाती रहती है।

       वह अनुभव उसके लिएतृप्तिदायी नहीं होता है। उसे लगता है कि मेरा उपयोग किया गया है। हो सकता है,उसके पति, प्रेमी या मित्र को उससे राहत मिली हो, लेकिन वह खुद अतृप्त रह जाती है।

100 में से 99 स्त्रियां तो यह भी नहीं जानती हैं कि आर्गाज्म क्या है, काम—समाधि क्या है। उन्हें कभी इसका अनुभव ही नहीं हुआ।

      वे कभी उस शिखर को नहीं छू पाती हैं, जहां उनके शरीर का रोआं—रोआं आर्गाज्म से कंपित हो उठे, भरपूर हो जाए। यह अनुभव उनके लिए अनजाना ही रहता है।

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें