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यौनसुख : तुम चुप क्यों रहती हो नारी

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~सुधा सिंह 

     _भारतीय औरतें क्यूँ सेक्स में पहल करने की हिम्मत नहीं करती”जैसे हंसी, खुशी, दर्द, ख़लिश, सपने, ख़्वाहिश इंसानों में हर तरह की भावनाएं पनपती है वैसी ही एक भावना सेक्स की भी होती है। जैसे मर्दों के भीतर जगती है उतनी ही औरतों के अंदर भी उठती है।_

    जैसे हंसी, खुशी, दर्द, ख़लिश, सपने, ख़्वाहिश इंसानों में हर तरह की भावनाएं पनपती है वैसी ही एक भावना सेक्स की भी होती है। जैसे मर्दों के भीतर जगती है उतनी ही औरतों के अंदर भी उठती है।  

      सेक्स पर न जाने कितनी बातें कही और लिखी गई हैं, इसके बावजूद कुछ धारणाएं ऐसी हैं, जो आज भी ज्यों की त्यों बरक़रार हैं। उसी में से एक है भारतीय स्त्रियों का सेक्स में पहल करने से कतराना। जबकि बाहर देशों  में सेक्स को अरुचिकर या छिपाने वाली भावना नहीं समझा जाता, औरतें भी बिंदास अपनी इच्छा ज़ाहिर करती है।

      हमारे यहाँ आज भी हर मामले में औरतें अपना विकास कर चुकी है, हर क्षेत्र में परचम लहरा चुकी है पर मुश्किल से 10% औरतें सेक्स में पहल करने की हिम्मत करती है। शादी के कई सालों बाद भी एक झिझक में बंधी रहती है क्यूँ अपनी भावनाओं की अभिव्यक्ति से कतराती है ? जबकि शारीरिक जरूरत पति पत्नी दोनों की एक सी होती है।

         औरतों की झिझक के वैसे बहुत से कारण होते है उसमें से एक भारतीय संस्कृति शायद सबसे अहम् भूमिका निभाती है। पर इस बारे में गहराई से देखेंगे, तो पाएंगे कि हज़ारों साल पहले जब कामसूत्र लिखा गया था, तब उसमें काम जीवन से जुड़े हर पहलू और आसनों का ज़िक्र किया गया था। उस दौर में गणिकाएं उन लड़कियों को जिनकी शादी होनेवाली होती थीं, उन्हें सेक्सुअलिटी के बारे में संपूर्ण जानकारी देती थी।

      पति को रिझाने और कामसूत्र से जुड़े विभिन्न विषयों के बारे में समझाती और सिखाती थीं। लेकिन आज स्थिति बिल्कुल बदल गई है, ऐसा भी नहीं की सारी औरतें झिझक रही हो, आज समाज में एक वर्ग ऐसा भी है जो सेक्स के बारे में खुलकर बात करता है, कुछ औरतें अपनी इच्छा व्यक्त भी करती है, पर बहुत कम। तो दूसरा वर्ग इससे परहेज़ करता है।

        इन सबके लिए बेहद ज़रूरी है सेक्स एजुकेशन। अब हाईस्कूल में हर सप्ताह एक पिरियड  सेक्स एजुकेशन के लिए रखना चाहिए, ताकि लड़कियां भ्रम और तार्किक बातों से उभरकर सेक्स को सही मायने में समझे।आज भी सेक्स के मामले में हम पूरी तरह से खुलकर बात नहीं करते, उस पर आप स्त्री हैं, तो और भी दोहरा मापदंड झेलना पड़ता है।

      आज केवल 10 % महिलाएं होंगी, जो सेक्स में अपनी इच्छा और अनिच्छा ज़ाहिर करती हैं, जबकि 90% चुप रहना और कतराने वाला रवैया अपनाती हैं। सेक्स में पहल करने में आधा-अधूरा सेक्सुअल नॉलेज भी मुख्य है, कुछ औरतें सेक्स को संतानोत्पत्ति का ज़रिया मात्र समझती है।

      गर्भवती होने को ही अच्छी सेक्स लाइफ की उपमा दे देती है। इस क्रिया का आनंद क्या होता है ये उनको पता भी नहीं होता और अगर सामने से सेक्स के लिए पहल करने पर कहीं पति कैरेक्टर पर उंगली न उठाए या चीप ना समझ लें के डर से हिचकिचाती है।

      साथ ही बात करें चरम सीमा, ऑर्गेज़म या संतुष्टि की, तो कितनी औरतें पहुँच पाती है चरम तक। “शायद बहुत ही कम” क्यूँकि चरम तक डूबने के लिए हर मर्यादा लाँघकर ओतप्रोत होते उस क्रिया का आनंद उठाना होता है, जो झिझक शर्म और संस्कृति की दुहाई देते बहुत कम औरतें उस चरम को छू पाती है।

       बिलकुल जैसे मर्दों को स्खलन पर संतुष्टि प्राप्त होती है वैसे ही औरतों को भी ऑर्गेज़म का सुख प्राप्त होता है, स्त्राव भी होता है और चरम छंटते ही हार्टबीट बढ़ते है, सांस फूलती है और खून भी गर्म होता है स्वर्ग सा सुंदर और आह्लादक अनुभव होता है। पर छोछ को परे रखकर बहुत कम औरतें ये आनंद उठा पाती है। 

   हमारे यहाँ 3 बच्चें पैदा कर चुकी औरत भी यौन रूप से असंतुष्ट हो, तो कोई बड़ी बात नहीं। क्यूँकि वो एकतरफ़ा सेक्स में महज़ भागीदार बनकर अपना जीवन काट देती है। चूंकि हमारे यहाँ सेक्स में पुरुष को ‘कर्ता’ मानते हैं, सेक्स की परिभाषा पुरुष के इर्द-गिर्द ही रची गई। इसमें औरत को ‘टेकर’ और पुरुष को ‘गिवर’ माना गया।

     पुरुष के स्खलन के साथ ही औरतों को लगता है कि सेक्स ख़त्म हो चुका है, अपनी असंतुष्टि ज़ाहिर करने में शर्माती है। पर अब वक्त आ गया है जैसे हर चीज़ में औरतों की राय मायने रखती है, वैसे सेक्स के मामले में भी खुलकर अपने पार्टनर के साथ बात करें, पहल करें और इस क्रिया का आनंद उठाएं।

      आप इस पर अवश्य सोचें। जरूरी नहीं कि मेरी सभी बातें ठीक हों। कौन दावा कर सकता है सभी बातों के ठीक होने का। ऐसा मैं सोचता हूं, वह मैंने कहा। उस पर सोचना। हो सकता है कोई बात ठीक लगे, तो ठीक लगते ही बात सक्रिय हो जाती है। न ठीक लगे, बात समाप्त हो जाती है।

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