दिव्यांशी मिश्रा
_वर्तमान परिवेश में मनुष्य के अन्दर तनाव, परेशानी, विकृति बढ़ने का मुख्य कारण असन्तुष्ट यौन सम्बन्ध है। असन्तुष्ट यौन के कारण ही मनुष्य आज आनन्दपुर्वक जीवन जीने से असफल है।_
असफल और असन्तुष्ट यौन सम्बन्ध में 99 प्रतिशत पुरुष शीघ्रपात के शिकार होते हैं। पतन का अर्थ आप समझते हैं. यहां तो शीघ्र-पतन है.
_पुरुष गहन मिलन से पहले ही वे स्खलित हो जाते हैं और उन की क्रीड़ा समाप्त हो जाती है। इसीलिए 99 प्रतिशत स्त्रियाँ कभी चरम सन्तुष्टि को उपलब्ध नहीं हो पाती हैं। वह कभी भी गहन सम्भोग के शिखर आनन्द तक नहीं पहुँच पाती हैं।_
अब परिवार की धुरी स्त्री ही अतृप्त हो संतति और उनसे निर्मित समाज रुग्ण होगा ही. असन्तुष्टी और असफल यौन सम्बन्ध के कारण ही अक्सर स्त्रियाँ चिड़चिड़ी और क्रोधी होती हैं। सन्तुष्टी की चाह में जब उनको असन्तुष्टि मिलती है वह तिलमिला उठती हैं।
अमूमन एक स्त्री सम्भोग में बहुत कम उतरती है। जब वह उतरती है तो
चरमता तक पहुँचना चाहती है। जब वह चरमता में पहुँचने की आश रख कर सम्भोग में उतरती है और निराशा हाथ लगती है तो वह मनोरोगी बनती है. मनोरोग उसे तन से भी रोगी बनाते हैं।
_एक स्त्री की कामुकता परमाणु बम से कम नहीं होती है। उसको सम्भालना हर किसी की बस की बात नहीं है। उसकी कामुकता को फ़िर कोई औषधि शान्त नहीं कर सकती है। ऎसे में कोई दर्शनशास्त्र, धर्म या नीति उसे अपने पुरुष के प्रति सहृदय नहीं बना सकती है._
आधुनिक मनोविज्ञान और ध्यानतन्त्र दोनों में स्पष्ट लिखा है कि
जब तक स्त्री काम भोग में
गहन तृप्ति को नहीं प्राप्त करती,
वह परिवार और समाज के लिए
समस्या बनी रहती है।
जिससे वह वञ्चित हो गयी, वह चीज उसे क्षुब्ध करती रहेगी। वह उसके कारण तनाव महसूस करती रहेगी। स्त्री पुरुष के बीच झगड़ा हो, तनाव हो, वह उदास हो, घर में शान्ति ना हो तो उस स्थिती का अवलोकन कर चिन्तन मनन करना बहुत ज़रूरी है।
_स्त्री दोषी नहीं है। इसका प्रमुख कारण यौन के प्रति पुरुष का खुदगर्ज़ स्वभाव होता है. सिर्फ़ अपनी हवस मिटाकर फ़ारिग हो जाने वाला स्वभाव।_
सम्भोग में पुरुष का स्वखलन होते ही वह स्त्री के प्रति बेपरवाह हो जाता है। वह यह नहीं सोचता कि
स्त्री चरम आनन्दता प्राप्त करना चाहती है। वह सम्भोग में लम्बा और गहरे तह तक जाना चाहती है।
बस पुरुषों का स्वखलन हुआ, अपना आनन्द लिया और वे स्त्री को
उसके हाल में छोड़ देते हैं। इस स्वभाव और अतृप्त यौन सम्बन्ध के चलते
स्त्री मन हीनभावना से कुण्ठित हो जाता है।
स्त्री कामुकता के चरमता को
ना उपलब्ध होने के कारण
काम विमुख हो जाती है। फ़िर वह आसानी से कामभोग में उतरने को नहीं राजी होती है। बहुत कम, महज एक फीसदी पुरुष स्त्री को गहन सुख की उपलब्धि करा पाते हैं.
स्त्री जब तक सम्भोग के चरमता को नहीं छू पाती,तव तक वह भोगरत रहना पसन्द करती है। वह भोग की गहनता में उतर कर सम्भोग करना पसन्द करती है। लेकिन एक पुरूष पौरुषहीनता के कारण संभोग के गहरेपन में उतरने से डरता है।
पुरूष का कृत्य केवल सतही होता है।
उसमें गहनता होती ही नहीं है।
_स्त्त्री को सम्भोग में चरम आनन्द का अहसास नहीं मिलता तो वह तनाव में आ जाती है। मन में प्रश्नों का ज्वार-भाटा उठने लगता है। उसे लगने लगता है कि पुरुष केवल अपने मजे के लिये उसको यूज़ कर रहा है। उसे महज भोग की वस्तु समझकर उसका शोषण कर रहा हैं। पुरुष को उसकी खुशी से कोई लेना देना नहीं है._
पुरुष स्खलित होते ही सन्तुष्ट हो जाता है। फिर वह करवट ले कर सो जाता है। लेकिन स्त्री को
सम्भोग के चरम आनन्द का
अहसास ना होने के कारण
वह आँसू बहाती रहती है।वह अनुभव उसके लिए तृप्तिदायक नहीं होता है. जिसकी वजह से सम्भोग के प्रति
वह कुण्ठित और रूखी स्वभाव की हो जाती है। वह बस पुरूष को तृप्ती कर सन्तुष्टि देती है। लेकिन खुद असन्तुष्ट और अतृप्त रह जाती है।
आज प्रायः स्त्री को तो
चरम आनन्द का ज्ञान ही नहीं है. उसको सम्भोग का अर्थ केवल
योनी लिंग का घर्षण ही पता है। वह यह भी नहीं जानती कि कामुकता के चरम तक कैसे पहुँचे। बस बिस्तर पर लेट जाना और पुरुष जैसा करे
उसी को स्त्री सम्भोग मानती है।
स्त्री यह भी नहीं जानती है कि
चरम कामुकता क्या होती है ? काम के गहन तल तक कैसे पहुँचा जा सकता है ?
_उसने कभी इसका अनुभव ही नहीं किया। वह कभी भी उस शिखर तक पहुँच ही नहीं पायी है, जहाँ उसके शरीर का रोआँ-रोआँ कम्पित हो उठे, वह तृप्त हो, उसका अङ्ग-अङ्ग उससे निखरे। यह अनुभव करना ही एक स्त्रीत्व का सपना रहता