मप्र में भाजपा ने 51 फीसदी वोट के साथ 200 से अधिक सीटें जीतने का जो लक्ष्य निर्धारित किया है, उसे पाने के लिए पूरी पार्टी मिशन मोड में काम कर रही है। खुद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह प्रदेश में मैदानी मोर्चे पर सक्रिय होने जा रहे हैं। उनकी सक्रियता ने टिकट के दावेदारों की परेशानी बढ़ा दी है। इसकी वजह यह है कि इस बार पार्टी जिताऊ प्रत्याशियों को ही टिकट देगी। इसके लिए कई पैमानों की कसौटी पर प्रत्याशियों को परखा जाएगा।
गौरतलब है कि प्रदेश में 7 महीने बाद विधानसभा चुनाव होने हैं। भाजपा तय कर चुकी है कि वह विकास के मुद्दे को लेकर जनता के बीच जाएगी। इसके बाद टिकट फार्मूले तय किए जा रहे हैं। भाजपा के बड़े नेता गृह मंत्री अमित शाह और राष्ट्रीय अध्यक्ष जे पी नड्डा की सक्रियता ने भाजपा के अंदरखाने का माहौल गर्मा दिया है। 27 मार्च को जेपी नड्डा भोपाल आ रहे हैं तो इससे दो दिन पहले 25 मार्च को अमित शाह छिंदवाड़ा आ रहे हैं। दोनों नेताओं ने भाजपा के प्रदेश के प्रमुख नेताओं की बैठक बुलाई है। इसमें प्रदेश के राजनीतिक हालातों पर मंथन कर गाइडलाइन के संकेत मिलने की संभावना है। इधर नॉर्थ ईस्ट के चुनाव में मिली विजय से भाजपा के हौंसले और बुलंद हो गए हैं।
हाईकमान का फोकस मप्र पर
मध्यप्रदेश को भाजपा का संगठनात्मक दृष्टि से सबसे मजबूत राज्य माना जाता है। पिछले दो दशक में यह भाजपा का गढ़ भी बन गया है। लिहाजा पार्टी हाईकमान इस राज्य पर अपना खास ध्यान केन्द्रित किए हुए है। अब 25 मार्च को अमित शाह और 27 मार्च को जेपी नड्डा के साथ होने वाली बैठक में चुनावी रणनीति पर बात की जाएगी। प्रदेश के भाजपा नेताओं में बेचैनी इसलिए है कि चुनाव के सारे सूत्र इस बार केंद्रीय नेतृत्व ने अपने हाथ में ले लिए हैं। कमजोर सीटें भी उसने खुद चिन्हित की हैं तो किन सीटों पर परिवर्तन की जरूरत है, इसका हिसाब-किताब भी वही कर रहा है। पहले देश में राजनेता लोकतांत्रिक आंदोलनों से उभरते थे। अब परिवारवाद और वंशवाद लोकतंत्र में सफल नेता बनने के उदाहरण बनते जा रहे हैं।
परिवारवाद का जनक कांग्रेस को माना जाता है, पर धीरे धीरे यह बीमारी भाजपा को भी लग गई है। पार्टी के रणनीतिकार जानते हैं कि कांग्रेस का अगर पराभव हुआ है तो उसमें परिवारवाद का भी बड़ा योगदान है। यही वजह है कि भाजपा इस रोग को अपने यहां पल्लवित नहीं होने देना चाहती। पीएम नरेंद्र मोदी इस बारे में अपने रुख का इजहार कर चुके हैं। इसके बाद गृह मंत्री अमित शाह और जेपी नड्डा भी प्रदेश के दौरे के समय इस पर सख्ती की बात कह चुके हैं। मध्यप्रदेश में इस बार कई सीनियर लीडर अपने पुत्र-पुत्रियों के टिकट को लेकर अभी से लाबिंग कर रहे हैं पर नेतृत्व के रूख ने उनकी पेशानी पर बल डाल दिए हैं। माना जा रहा है कि महीने के अंत में होने वाले दोनों बड़े नेताओं के रूख से सारा मामला क्लीयर हो जाएगा।
लोकसभा चुनाव पर भी नजर
भाजपा विधानसभा चुनावों के साथ मिशन 2024 की तैयारी में भी लगी है। उसने देश में 160 लोकसभा की ऐसी सीटें चिन्हित की हैं, जो उसके लिए कठिन हैं। इनमें अस्सी सीटों की जवाबदारी खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने ली है तो इतनी ही सीटें गृहमंत्री अमित शाह देख रहे हैं। इनमें प्रदेश की छिंदवाड़ा सीट भी है। शाह का दौरा इसी के मद्देनजर है। सात महीने बाद मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान समेत पांच राज्यों में चुनाव हो रहे हैं। इनमें अकेले मध्यप्रदेश में भी भाजपा सत्ता में है। प्रदेश में इस समय भाजपा और कांग्रेस के बीच छिड़ा राजनीतिक संघर्ष चरम पर है। सत्ता अपने हाथ में आने के बाद गंवाने वाली कांग्रेस इस समय पूरी ताकत से मैदान में है और उसके बड़े नेता दिग्विजय सिंह लगातार दौरे कर नेताओं में एकता बनाने का प्रयास कर रहे हैं। वहीं भाजपा जानती है कि कांग्रेस के पिछली सरकारों के कार्यकाल याद दिलाने से चुनाव में काम नहीं चलने वाला है। सत्ता में लंबे समय से वही है, लिहाजा कमी बेसी का हिसाब भी उसी को देना है फिर चाहे वह काम अफसरशाही के मोर्चे पर हो या जनप्रतिनिधि के कामों के सवाल पर यही वजह है कि पार्टी अपने ही विधायकों का नए सिरे से सर्वे करा रही है। पहले सर्वे की रिपोर्ट तो सीएम शिवराज सिंह चौहान विधायकों को दिखा भी चुके हैं।