यह घटना बताती है कि देश में अब कोई लोकतांत्रिक सत्ता नहीं बल्कि एक फासीवादी निजाम काम कर रहा है। इस पूरे मामले में चुनाव आयोग की बेशर्म चुप्पी सबसे बड़ा सवाल बनी हुई है। आयोग इस तरह के मामलों में न तो कोई हस्तक्षेप कर रहा है और न ही किसी तरह की कोई भूमिका निभा रहा है। और बेहद नंगे रूप में सत्ता के पक्ष के साथ खड़ा है।
नई दिल्ली। सोशल मीडिया प्लेटफार्म मॉलिटिक्स के पत्रकार राघव त्रिवेदी पर रायबरेली में बीजेपी कार्यकर्ताओं ने जानलेवा हमला किया है। और यह घटना उस समय हुई जब गृहमंत्री अमित शाह सामने मंच से सभा को संबोधित कर रहे थे। राघव त्रिवेदी के शरीर में गंभीर चोटे आयी हैं। सोशल मीडिया पर आए वीडियो और तस्वीरों में बिल्कुल साफ-साफ देखा जा सकता है कि उनकी नाक से खून बह रहा है और उनकी शरीर पर जगह-जगह चोटों के निशान हैं। त्रिवेदी को रायबरेली के एक अस्पताल में भर्ती कराया गया है।
बताया जाता है कि सभा के दौरान राघव त्रिवेदी श्रोताओं से बात कर रहे थे और उनमें से कुछ लोग ऐसे थे जिनको पैसे देकर लाया गया था उनसे उससे संबंधित सवाल पूछ रहे थे। ऐसा सुनकर बीजेपी के कार्यकर्ता भड़क गए और उन्होंने राघव त्रिवेदी पर हमला बोल दिया। सामने आए वीडियो में राघव त्रिवेदी को बीजेपी कार्यकर्ताओं द्वारा न केवल अपमानित करते बल्कि उनकी पिटाई भी करते देखा जा सकता है।
घायल राघव से जब पत्रकारों ने पूछा कि आपके साथ क्या हुआ तो उन्होंने बताया कि वह अमित शाह की रैली कवर कर रहे थे। लोग उठ-उठ जा रहे थे तो मैंने पूछ लिया क्यों जा रहे हैं। तो इसी पर मुझे मारना शुरू कर दिया। उन्होंने कहा कि बाहर कुछ महिलाओं से बात हुई तो उन्होंने कहा कि हमें नहीं पता हम क्यों आए हैं। प्रधान जी ने 100 रुपये दिए थे इसलिए हम यहां चले आए।
यह कोई सामान्य मामला नहीं है। एक पत्रकार को उस समय पीटा गया है जब वह केंद्रीय गृहमंत्री की सभा कवर कर रहा था। गृहमंत्री का काम लोगों को सुरक्षा देना है लेकिन यहां तो उसके सामने ही एक शख्स की पिटाई की जा रही है और वह शख्स भी कोई और नहीं बल्कि पत्रकार है। देश में फासीवादी निजाम अपने नंगे रूप में सामने आ गया है।
पत्रकार राघव त्रिवेदी की यह पिटाई उसी के हिस्से के तौर पर देखी जा सकती है। दरअसल अपनी हार की आहट से बीजेपी के नेता बिल्कुल बौखला गए हैं। कल ही आज तक के एक पत्रकार ने जब दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की रिहाई पर गृहमंत्री अमित शाह से सवाल पूछा तो वह बिल्कुल झल्ला गए और उन्होंने चिड़चिड़ाहट में उसके सारे सवालों का जवाब दिया।
भारतीय राजनीति और उसमें भी बीजेपी का यह काला चेहरा चुनाव प्रचार के दौरान बिल्कुल सामने आ गया है। एक पत्रकार को किसी भी सभा या फिर स्थान पर अपने सवालों को पूछने की पूरी स्वतंत्रता है। उसको न तो कोई नागरिक रोक सकता है न ही कोई बड़ा से बड़ा हुक्मरान। यह बात न केवल मोदी बल्कि शाह से लेकर सत्ता में बैठा हर शख्स जानता है। और चुनाव के दौरान तो वैसे भी किसी की सत्ता नहीं रह जाती है।
पीएम मोदी एक कामचलाऊ प्रधानमंत्री हैं उनकी भी हैसियत उतनी ही है जितनी किसी दूसरे दल के नेता और कार्यकर्ता की। ऐसे में अगर सत्ता की हनक और अपने पार्टी के कार्यकर्ताओं को गुंडे के तौर पर पेश किया जा रहा है तो यह न केवल लोकतंत्र के चेहरे पर काला धब्बा है बल्कि बीच चुनाव में हुई यह घटना आने वाले दिनों का ट्रेलर भी है और वह बता रही है कि अगर बीजेपी को फिर से सत्ता मिल गयी तो फिर वह कितनी खतरनाक साबित होगी।
अभिव्यक्ति की आजादी पर ताला तो पहले ही लगा दिया गया था अब सड़क पर बोलने या फिर अपनी बात कहने पर शारीरिक तौर पर हमले होंगे। इस घटना के जरिये बीजेपी और उसका पूरा निजाम इस संदेश को देना चाहता है।
दरअसल सोशल मीडिया जिस तरह से आक्रामक होकर चुनाव में हिस्सा ले रहा है उससे बीजेपी और उसके नेताओं के हाथ-पांव फूल गए हैं। इस घटना के पीछे किसी बड़ी साजिश की बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता है। शायद इसके जरिये सत्ता प्रतिष्ठान सोशल मीडिया को यह संदेश देना चाहता है कि वह अगर इसी तरह से खुल कर बात करता रहा तो उसके प्रतिनिधियों का भी यही हस्र हो सकता है। एक तरह से सभी को डराने की कोशिश का यह हिस्सा है।
अनायास नहीं बीजेपी पूरे सोशल मीडिया से बाहर हो गयी है। न तो उसकी पोस्ट दिखती है और न ही उसको डिफेंड करने वाले लोग। ऐसे में बीजेपी नेताओं की चिंता को समझा जा सकता है।
चूंकि यह घटना गृहमंत्री अमित शाह की मौजूदगी में हुई है। इसलिए और भी ज्यादा गंभीर हो जाती है। यह बताती है कि देश में अब कोई लोकतांत्रिक सत्ता नहीं बल्कि एक फासीवादी निजाम काम कर रहा है। इस पूरे मामले में चुनाव आयोग की बेशर्म चुप्पी सबसे बड़ा सवाल बनी हुई है। आयोग इस तरह के मामलों में न तो कोई हस्तक्षेप कर रहा है और न ही किसी तरह की कोई भूमिका निभा रहा है। और बेहद नंगे रूप में सत्ता के पक्ष के साथ खड़ा है।