*(व्यंग्य : राजेंद्र शर्मा)*
पर ये शंकराचार्य हैं कौन, जो राम मंदिर के उद्घाटन का मजा किरकिरा करने आ गये। माने ये कि शंकराचार्यों का हिंदू धर्म से क्या लेना-देना है? छांट-छांटकर उद्घाटन की पार्टी का न्यौता देने वाले चंपत राय जी ने एकदम सही ही तो कहा है — शंकराचार्य तो शैव संप्रदाय वाले हैं। शैव, शाक्त, सन्यासी आदि संप्रदाय वाले, राम के मंदिर के मामले में टांग क्यों अड़ा रहे हैं? जो मुहूर्त वगैरह विचारने हैं, जो यम-नियम वगैरह पालने हैं, अपने संप्रदाय के मंदिरों में करते रहें। हम रामानंदी संप्रदाय वालों के कारज-प्रयोजन में अपनी चलाने की कोशिश क्यों कर रहे हैं। हां! दर्शक बनकर आना चाहें, तो बेशक आएं। अब तो दलितों तक के लिए मनाही नहीं है, फिर शंकराचार्यों के लिए मनाही क्यों होगी। बल्कि उनका तो स्वागत ही होगा। आखिर, रामानंदी हैं तो क्या हुआ, रामलला हिंदू भी तो हैं। बस शंकराचार्य मोदी जी की उद्घाटन लीला में किसी तरह का बाधा डालने की कोशिश नहीं करें। और मोदी जी और कैमरों के बीच आने की इजाजत तो खैर रामलला को भी नहीं दी जाएगी, फिर किसी शंकराचार्य वगैरह की तो बात ही क्या है?
खैर, शंकराचार्य नहीं आना चाहते हैं, तो नहीं आएं। आने की कोई जबर्दस्ती थोड़े ही है। देश में डेमोक्रेसी है, भाई! वैसे भी कोई ऐसा तो है नहीं कि शंकराचार्य नहीं आएंगे, तो उद्घाटन लीला नहीं होगी। जब तक मोदी जी आ रहे हैं, तब तक उद्घाटन लीला तो होगी, बाकी कोई आए, नहीं आए। बल्कि लीला के दिन तो जितने कम आएं, भीड़-भाड़ बढ़ाकर, राम-काज में जितनी कम बाधा पहुंचाएं, उतना ही अच्छा है। खुद मोदी जी तक ने इसकी प्रार्थना की है — बताइए, पब्लिक से खुद अपने ही कार्यक्रम में नहीं आने की प्रार्थना! और विरोधी यह कहकर बदनाम करने की कोशिश कर रहे हैं कि सब कुछ चुनाव के लिए हो रहा है। खैर! ये नहीं आएंगे, शंकराचार्यों को इसका शोर मचाने की क्या जरूरत है? इससे तो बायकॉट गैंग की बू आती है। अब क्या शंकराचार्य इतने बड़े हो गए कि रामलला का बहिष्कार करेंगे? रामलला से इंकार और हिंदू धर्म से प्यार, मोदी जी के अमृतकाल के भारत में, इतनी मनमानी किसी शंकराचार्य की भी नहीं चलेगी! शंकराचार्य जाने-अनजाने मोदी जी के विरोधियों के बॉयकाट गैंग के साथ खड़े हो गए हैं, जो हिंदुओं का बायकाट कर रहा है। पहले कम्युनिस्ट, फिर कांग्रेसी, अब समाजवादी वगैरह भी, मोदी जी की उद्घाटन लीला के नाम पर, हिंदुओं का बायकॉट कर रहे हैं; शंकराचार्य उनके साथ कहां चले जा रहे हैं!
और अगर शंकराचार्यों को मोदी जी की उद्घाटन लीला देखने से ही प्राब्लम है, तो उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि मोदी जी तो निमित्त मात्र हैं, उद्घाटन लीला तो पीएम करेंगे। पीएम माने डैमोक्रेसी के राजा। शंकराचार्य क्या अपना आसन राजा से भी ऊपर लगवाएंगे? और सच पूछिए, तो प्रोटोकॉल के इन्हीं झगड़ों को खत्म करने के लिए, मोदी जी उद्घाटन लीला से ठीक पहले, पूरे ग्यारह दिन का पार्ट टाइम तप भी कर रहे हैं। इस कठिन तप के बाद, जब मोदी जी अयोध्या जाएंगे, इस तप के बल से दूसरे सब के आसन खुद ब खुद, मोदी जी के आसन से नीचे हो जाएंगे। शंकराचार्य चाहें, तो आजमा कर देख लें। पर बायकाट गैंग का साथ छोड़ दें।
*(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और साप्ताहिक ‘लोकलहर’ के संपादक हैं।)*