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‘शी लव्स मी, शी हेट्स मी’ की गिनती अब गुलाब की पंखुड़ियों पर नहीं होती

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राहुल पाण्डेय

संस्कृति तो अपनी प्यार में छुहारा बनने की ही थी। प्यार हुआ तो खाना-पीना भूल गए। इकरार हुआ, तो भी खाना-पीना भूल गए। और बदकिस्मती से, जिसकी इस मामले में हमेशा से किस्मत तेज रही है, अगर इनकार हो गया, तब तो बोलना-चालना भी बंद। ऐसे में इंसान छुहारा नहीं बनेगा तो क्या लोढ़ा बनेगा? और छुहारा नहीं बनेगा, तो पता कैसे चलेगा कि प्रेम हुआ है? कैसे दिखेगा कि प्रेम का रंग चढ़ा है? मगर इसी बीच दो बातें हो गईं। इसमें से पहली बात की हमारे फैजाबाद के बुजुर्ग शायर रफीक शादानी साहब ने, जिनकी रूह को खुदा करवट-करवट जन्नत अता फरमाए। एक होली की शाम घंटाघर पर चढ़कर बोले, ‘कहत रहेन ना फंसौ प्यार के चक्कर मा/ झुराय के होइ गयेव छोहारा/ उल्लू हौ। देखै लाग्यौ दिनै मा तारा? उल्लू हौ।’ यानी इंसान पहले तो प्रेमी बना, फिर छुहारा बना, और अंत में उल्लू भी बन रहा है। अपने साथ इतनी नाइंसाफी तो सिर्फ पत्थर ही होने दे सकता है।

खैर, रफीक तो बस साल में एक बार, और वो भी होली की शाम को घंटाघर पर शाद होते थे। मगर इन विदेशी फिल्मों का क्या करें, जो दूसरी बात बनकर प्रेमियों की लाइफ में हर रात आईं! असल में पश्चिम और पूरब में एक फर्क यह है कि पूरब वाले प्रेम में खाना-पीना छोड़ देते हैं। यहां तक कि सांस भी लेते हैं तो खुद तक को आवाज नहीं आती। वहीं पश्चिम में इंसान प्रेम होने के साथ दिन में दो सलामी और खाने लगता है। इकरार पर दो बर्गर फ्रेंच फ्राई के साथ बढ़ जाते हैं। और अगर इनकार हो गया, तब तो आइसक्रीम का किलो भर का डिब्बा खुलना तय है। साथ में दो लीटर वाली कोला की बोतल भी चलती ही रहती है। पश्चिम में इंसान प्रेम में छुहारा नहीं होता। यह तो सब जानते ही हैं कि किस तरह पश्चिम ने पूरब की संस्कृति का कबाड़ा किया है। इसने हमारी प्रेम में छुहारा बनने की प्राचीन संस्कृति में भी खलल डाल दिया है।

पिछले दिनों खबर आई कि हिंदुस्तान में मोटापा बढ़ रहा है। असल में ये मोटापा नहीं, प्रेम है। हिंदुस्तान में प्रेम बढ़ रहा है। ‘शी लव्स मी, शी हेट्स मी’ की गिनती अब गुलाब की पंखुड़ियों पर नहीं होती। उसमें अब आलू के चिप्स चलते हैं, फ्रेंच फ्राइज के डिब्बे खत्म किए जाते हैं। इकरार होता है तो डबल चीज का पिज्जा और बढ़ जाता है। फिर आता है इनकार, जो सबसे ज्यादा बढ़ रहा है। मुझे लगता है कि मोटापा सबसे ज्यादा इसलिए बढ़ रहा है, क्योंकि लोगों का दिल ज्यादा टूट रहा है। प्रेमी जी का दिल टूटा है, हाय-हाय कर रहा है। एक हाय निकलती है, एक गुझिया अंदर जाती है। ज्यादा बड़ी हाय चमचम, रसमलाई और लौंगलता तक मांगती है। छुहारे से लोढ़ा बनती इस संस्कृति पर मरहूम रफीक शादानी साहब होते तो क्या कहते? ‘कहत रहेन ना फंसौ प्यार के चक्कर मा/ मोटाय के होइ गयेव लोढ़ा/ उल्लू हौ।’

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