मुंबई
शिवसेना भवन किसका होगा, चुनाव आयोग के फैसले के बाद शिंदे गुट यहां कंट्रोल हासिल कर पाएगा, शिवसेना के बाकी दफ्तरों और प्रॉपर्टी का बंटवारा कैसे होगा, किसे क्या मिलेगा, ये सवाल अब सुप्रीम कोर्ट की सुनवाई के बाद ही तय होना है।
शिवसेना के पास अभी 191.82 करोड़ की चल-अचल संपत्ति है, दादर के शिवसेना भवन पर भी उद्धव गुट का कब्जा है। शिंदे की शिवसेना का कब्जा कहां-कहां होगा, ये सवाल फिलहाल बना हुआ है।
बाला साहेब ठाकरे के बेहद करीब रहे एकनाथ शिंदे ने तकरीबन 6 महीने पहले तब शिवसेना प्रमुख रहे उद्धव ठाकरे का हाथ झटक BJP का दामन थाम लिया। वे फिलहाल महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री हैं।
17 फरवरी 2023 को चुनाव आयोग ने उद्धव ठाकरे को बड़ा झटका देते हुए मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उनके पक्ष (पार्टी) को शिवसेना का नाम और तीर-कमान का चिह्न दे दिया। बीते मंगलवार को एकनाथ शिंदे को पार्टी के ‘मुख्य नेता’ के रूप में चुन लिया गया। ‘मुख्य नेता’ का पद ‘शिवसेना प्रमुख’ के पद के बराबर ही बनाया गया है।
शिवसेना शिंदे की, लेकिन दफ्तर-प्रॉपर्टी किसकी?
चुनाव आयोग के फैसले के बाद अब चर्चा ये है कि शिवसेना भवन समेत राज्यभर में मौजूद पार्टी दफ्तरों पर किसका कब्जा होगा? शिवसेना के नाम पर जमा पार्टी फंड और करोड़ों रुपए की संपत्ति का क्या होगा। चुनाव आयोग के पास मौजूद रिकॉर्ड के मुताबिक शिवसेना के पास 191 करोड़ की चल-अचल संपत्ति है। इसके अलावा मुंबई में 280 और राज्य के अलग-अलग हिस्सों में 82 शाखा दफ्तर हैं।
CM एकनाथ शिंदे भले ही कह रहे हैं कि पुरानी शिवसेना से उन्हें सिर्फ बाला साहेब के विचार चाहिए, लेकिन मौजूदा संविधान के मुताबिक पार्टी पर कब्जा और कोषाध्यक्ष नियुक्त करते ही पूरी प्रॉपर्टी और फंड खुद-ब-खुद नई शिवसेना के पास ही आएगा। सवाल ये है कि आने वाले समय में मुंबई समेत राज्य के कई शहरों में नगर निकाय चुनाव है। फंड की जरूरत पड़ेगी तो ऐसे में क्या शिंदे की शिवसेना ये फंड छोड़ देगी?
राजनीतिक जानकारों के मुताबिक शिंदे गुट की नजर अब उद्धव गुट के सांसदों और विधायकों पर भी है। 27 फरवरी से शुरू होने जा रहे बजट सत्र से पहले पार्टी के सभी विधायकों और सांसदों के नाम एक व्हिप जारी किया जाएगा। उद्धव ठाकरे के साथ 10 विधायक और 2-3 सांसद ही बचे हैं, इस व्हिप के बाद उन्हें भी या तो पार्टी से बाहर जाना होगा या फिर शिंदे गुट में आना पड़ेगा।
शिंदे कह रहे हैं कि उन्हें पार्टी की प्रॉपर्टी और फंड नहीं चाहिए, लेकिन उद्धव ठाकरे गुट की तरफ से सुप्रीम कोर्ट में पेश एडवोकेट कपिल सिब्बल ने बताया था कि शिवसेना ऑफिस पर कब्जा किया जा चुका है। अगर चुनाव आयोग के फैसले पर रोक नहीं लगाई गई, तो शिंदे ग्रुप उनके बैंक अकाउंट भी हासिल कर लेगा। अब सुप्रीम कोर्ट में जारी सुनवाई में ही ये सब तय होने की उम्मीद जताई जा रही है। अगली सुनवाई 15 मार्च को हो सकती है।
हमें सिर्फ बाला साहेब के विचार चाहिए, पैसा-प्रॉपर्टी नहीं: शिंदे गुट
शिंदे गुट ने पार्टी का केंद्रीय कार्यालय ठाणे में बनाया है। शिंदे ने फिलहाल पार्टी के मुख्यालय यानी शिवसेना भवन का अधिग्रहण नहीं करने का फैसला लिया है। उन्होंने ठाणे के तेंभी नाका में आनंद आश्रम को पार्टी का दफ्तर बनाया है।
शिंदे की शिवसेना ने आनंद आश्रम से नियुक्ति आदेश और सर्कुलर जारी करना शुरू कर दिया है। मंगलवार को हुई शिवसेना की राष्ट्रीय कार्यकारिणी बैठक में शिंदे ने दोहराया था कि पार्टी बाला साहेब ठाकरे की विचारधारा के साथ आगे बढ़ने वाली है और शिवसेना भवन सहित किसी भी संपत्ति या धन पर दावा नहीं करेगी।
पूरे राज्य में फैली प्रॉपर्टी और बैंक अकाउंट में मौजूद धनराशि लेने के सवाल पर शिंदे गुट का कहना है कि उन्हें पैसे और प्रॉपर्टी का कोई लालच नहीं है। पार्टी के प्रवक्ता दीपक केसरकर ने कहा- ‘हमें सिर्फ बाला साहेब के विचार चाहिए और हम उनके विचारों पर चलते रहेंगे। यह उद्धव साहब का आइडिया है कि ऐसा दिखाओ कि हम पर जुल्म हो गया है। आप झूठी सिम्पैथी हासिल कर लंबे समय तक पॉलिटिक्स नहीं कर सकते हैं।’
पार्टी के ज्यादातर लोग असली शिवसेना के साथ: केसरकर
दीपक केसरकर ने आगे कहा- ‘उद्धव ठाकरे ने बाला साहेब के विचारों को छोड़ दिया और कांग्रेस-NCP के साथ गए। आपको सोनिया गांधी और शरद पवार ज्यादा करीबी लगने लगे। पार्टी के ज्यादातर लोग असली शिवसेना के साथ हैं और जो आपके साथ हैं, वे नए नाम के साथ आपके साथ जुड़ेंगे।’
केसरकर कहते हैं- ‘मैंने जब मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे से पूछा था कि सेना भवन का क्या होगा। तब उन्होंने साफ कहा था कि सेना भवन हमारा मंदिर है। हम उसे प्रणाम करते हैं और उस पर कब्जा करने की हम कभी सोच भी नहीं सकते हैं। आपके पास बाला साहेब के विचारों को रखने का कोई अधिकार नहीं है। हमारे पास धनुष-बाण है और हम उसकी पवित्रता को कायम रखेंगे।’
कोषाध्यक्ष हमारा होगा, तो भी फंड नहीं लेंगे
फंड से जुड़े सवालों पर दीपक केसरकर ने कहा कि पार्टी के पास तकरीबन 150 करोड़ का फंड है, उससे हमें कुछ भी लेना-देना नहीं है। वे लंदन जाना चाहते हैं, तो जा सकते हैं। फंड से उन्हें जो भी करना है, कर सकते हैं। उन्हें पैसा, ऑफिस लेने दीजिए। हमारा कोषाध्यक्ष भी होगा, तो भी हमें उनके फंड नहीं चाहिए। ये पैसे साधारण शिवसैनिकों के हैं, उन्हें वापस कर देने चाहिए।
केसरकर भले ही कुछ भी कहें, शिवसेना के संविधान के मुताबिक कोषाध्यक्ष पार्टी के अकाउंट को मेंटेन करता है। वह पार्टी के अकाउंट की जांच और ऑडिट कर सकता है और इसकी रिपोर्ट उसे राष्ट्रीय कार्यकारिणी के सामने पेश करनी होगी।
पार्टी फंड पर कब्जा करने का अंदेशा उद्धव ठाकरे गुट की ओर से सुप्रीम कोर्ट में पैरवी कर रहे कपिल सिब्बल पहले ही जता चुके हैं। केसरकर भले ही कह रहे हैं कि उन्हें फंड नहीं चाहिए, लेकिन बिना उनकी अनुमति के यह फंड कोई और ट्रांसफर भी नहीं कर सकता है।
पैसों के लिए विवाद होना तय
राजनीतिक विश्लेषक अभय देशपांडे बताते हैं कि फंड और प्रॉपर्टी का सवाल भी उतना ही विवादित रहने वाला है, जितना कि पार्टी का चुनाव चिह्न और नाम का मुद्दा था। राज्य में अगले कुछ महीनों में स्थानीय निकायों के चुनाव होंगे, इसलिए बड़े पैमाने पर धन खर्च करना होगा। इसलिए फंड पर अधिकार किसका है, यह सवाल बार-बार उठता रहेगा। इससे दोनों गुटों में फिर से विवाद होने की आशंका है।
देशपांडे ने बताया- ‘फंड और प्रॉपर्टी को लेकर चुनाव आयोग का फैसला थोड़ा कन्फ्यूज करने वाला है। उसने माना है कि पार्टियों में टकराव है और शिंदे गुट नाम और सिंबल यूज कर सकता है। फंड और प्रॉपर्टी के लिए शिंदे और उद्धव गुट को फिर से चुनाव आयोग के पास जाना होगा। मुझे लगता है कि पार्टी का सारा फंड जिसे नाम और निशान मिला है यानी शिंदे गुट के पास ही जाएगा।’
देशपांडे कहते हैं- ‘पार्टी ऑफिस की बात करें, तो शिवसेना भवन शिवाई ट्रस्ट के नाम पर है। उसका शिवसेना से कोई लेना-देना नहीं है। सामना नवोदय प्रकाशन का है, इसलिए उसका भी शिवसेना की प्रॉपर्टी से कोई लेना-देना नहीं है।’
‘बहुत से शाखाओं के कॉर्पोरेटर खुद अपने घर या प्रॉपर्टी में ऑफिस चलाते हैं। कइयों ने अवैध रूप से इन पर कब्जा किया हुआ है। अब सरकार अगर चाहे तो इनसे कब्जा ले भी सकती है। यानी यह कहें कि नाम-निशान ही नहीं, आने वाले समय में ऑफिस, फंड और असेट के लिए भी लड़ाई होगी। यह लड़ाई 2024 के चुनावों तक चलने वाली है।’
उद्धव के सामने आने वाली हैं बड़ी चुनौतियां
देशपांडे ये भी मानते हैं कि उद्धव के लिए आने वाला टाइम और मुश्किल है। उनके मुताबिक ‘अगर सुप्रीम कोर्ट का भी यही निर्णय रहता है, तो उद्धव के सामने नई पार्टी बनाना, उसे आगे ले जाना सबसे बड़ा चैलेंज रहेगा। सोशल मीडिया के जमाने में चुनाव चिह्न को घर-घर पहुंचाना दिक्कत का काम नहीं है, लेकिन पार्टी कार्यकर्ताओं में विश्वास बनाना बड़ी चुनौती होगी। अब BMC में BJP और शिंदे सेना पूरी ताकत से उतरेगी। इस बीच मनसे भी पैर जमाने की कोशिश करेगी।’
हालांकि इस पर चुनाव आयोग ने फैसला दे दिया है, लेकिन पार्टी स्तर पर अभी भी कई सवालों के जवाब नहीं मिले हैं। इससे एक बार फिर दोनों गुटों के बीच टकराव देखने को मिल सकता है। सबसे अहम बात यह है कि क्या शिंदे गुट का व्हिप ठाकरे गुट पर लागू होगा? क्या ठाकरे गुट के विधायक इसे मानेंगे? ऐसे कई विवाद जल्द ही देखने को मिल सकते हैं।
व्हिप के खिलाफ अदालत में अपील कर सकता है उद्धव गुट
महाराष्ट्र में संविधान विशेषज्ञ और विधानमंडल सचिवालय के पूर्व प्रधान सचिव अनंत कलसे ने इन सवालों का जवाब देते हुए कहा, ‘यह मामला अभी अदालत में है और अब देखना होगा कि सुप्रीम कोर्ट इस पर क्या फैसला देता है।
अगर उद्धव ठाकरे के साथ मौजूद सांसद-विधायकों ने व्हिप नहीं माना तो इसके खिलाफ शिंदे गुट पहले सभापति और फिर अदालत में जाएगा। अगर ऐसा होता है तो इसके खिलाफ उद्धव गुट भी अदालत में अपील करेगा, इसलिए यह मामला और लंबा खिंच सकता है।’
फंड और प्रॉपर्टी के सवाल पर अनंत कलसे ने कहा, ‘नई शिवसेना को नया संविधान बनाना होगा और चुनाव आयोग से मंजूरी लेनी होगी। फंड उसे मिलेगा, जिसके नाम पर अकाउंट होगा और जिसके पास इसे निकालने का हक होगा।’ हालांकि वे यह भी कहते हैं कि आयोग के अप्रूवल के बाद तुरंत बैंक डिटेल बदल नहीं जाते हैं।