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अखिलेश के लिए चुनौती खड़ा करने वाला हो सकता है शिवपाल-डीपी गठबंधन

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उत्तर प्रदेश की राजनीति में इन दिनों बड़े स्तर पर बदलाव होता दिख रहा है। एक तरफ अखिलेश यादव लोकसभा चुनाव 2024 ) को लेकर तैयारियों को पुख्ता करने में जुटे हैं। अबकी बार यूपी में भाजपा को पटखनी देने की रणनीति तैयार कर रहे हैं। दूसरी तरफ, पार्टी के भीतर ही घमासान मचा हुआ है। समाजवादी पार्टी विधायक और प्रगतिशील समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष शिवपाल यादव लगातार ऐसे कदम उठा रहे हैं, जो अखिलेश की राजनीति में बाधक बन रहा है। शिवपाल यादव ने यूपी चुनाव 2022 के बाद पहले आजम खान (Azam Khan) को अपने पाले में लाने की कोशिश की। लेकिन, अखिलेश से मुलाकात के बाद आजम की नाराजगी दूर हुई को पार्टी के एक ध्रुव पर शिवपाल अकेले खड़े दिखे। अब उनकी एक तस्वीर सामने आई है। इसमें वे बाहुबली डीपी यादव के साथ बैठे दिखाई दे रहे हैं। डीपी यादव के साथ शिवपाल की दिख रही नजदीकी से समाजवादी पार्टी खलबली बढ़ी है। वहीं, सवाल यह भी होने लगा है कि क्या अखिलेश यादव की मुश्किलें इससे बढ़ सकती हैं।

कौन हैं डीपी यादव?
यूपी की राजनीति में धर्मपाल यादव उर्फ डीपी यादव का नाम जाना-पहचाना है। दूध बेचने का धंधा करने वाले डीपी यादव ने जब शराब का धंधा शुरू किया तो उनकी तूती बोलने लगी। यूपी के साथ-साथ हरियाणा और दिल्ली में शराब बेचकर उन्होंने खूब पैसा कमाया। 25 जुलाई 1948 को जन्मे डीपी यादव ने 42 साल की उम्र में वर्ष 1990 में राजनीति में कदम रखा। उनके राजनीतिक गुरू महेंद्र सिंह भाटी थे। 80 के दशक में महेंद्र भाटी ने उन्हें राजनीति में प्रवेश कराया और बिसरख से ब्लॉक प्रमुख बनवा दिया। कांग्रेस से राजनीतिक करियर शुरू करने वाले डीपी यादव सपा में पहुंचे और मुलायम सिंह यादव के करीबी बन गए।

तेजपाल सिंह की प्रतिमा के अनावरण में पहुंचे शिवपाल यादव

तेजपाल सिंह की प्रतिमा के अनावरण में पहुंचे शिवपाल यादव
राजनीतिक गुरु की हत्या का लगा आरोप
दादरी विधायक महेंद्र सिंह भाटी की हत्या वर्ष 1992 में हो गई। आरोप डीपी यादव पर लगा। इसके बावजूद मुलायम सिंह यादव के करीबी होने का फायदा उन्हें मिला। यूपी चुनाव 1993 में मुलायम ने उन्हें बुलंदशहर से खड़ा किया। डीपी यादव यहां से जीत कर विधानसभा पहुंच गए। विधायक बनने के बाद डीपी यादव का नाम कई अपराधों में आने लगा। राजनीतिक रसूख ने उन्हें कानून के शिकंजे से बचाया। एक समय डीपी यादव पर 9 हत्याओं का आरोप था। बाद में वे इन आरोपों से बरी हुए। हालांकि, अपहरण, फिरौती और डकैती जैसे 25 केस उन पर चल रहे थे। अपराध की लंबी होती फेरहिस्त से सपा भी उनसे किनारा होने लगी।

सपा से बसपा तक का सफर
सपा में अलग-थलग किए जा रहे डीपी यादव ने पार्टी को छोड़ने का फैसला लिया। इस्तीफ दिया। बाद में बसपा में पहुंच गए। बसपा ने उन्हें संभल सीट से वर्ष 1996 के लोकसभा चुनाव में उम्मीदवार बनाया। डीपी यादव जीते और संसद तक का सफर तय किया। हालांकि, बसपा में उनका पैर टिक नहीं पाया। वर्ष 1998 में उन्होंने बसपा से नाता तोड़ लिया। इसी साल अपने राजनीतिक रसूख का इस्तेमाल करते हुए निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में राज्यसभा तक का सफर तय कर लिया। ऐसा दावा किया जाता है कि उस समय भाजपा ने उनका समर्थन किया था। बाद में वे भाजपा के खास बन गए।

डीपी यादव ने अपनी बाहुबली छवि को सुधारा। भाजपा ने उन्हें वर्ष 2004 में एक बार फिर राज्यसभा सांसद बना दिया। हालांकि, कुछ ही समय बाद पार्टी ने उन्हें बाहर का रास्ता भी दिखा दिया। डीपी यादव ने इसके बाद राष्ट्रीय परिवर्तन दल नाम की पार्टी बनाई।

डीपी यादव के पिता थे तेजपाल सिंह

डीपी यादव के पिता थे तेजपाल सिंह
दबंग छवि ने बाद में नहीं दिया साथ

डीपी यादव की दबंग छवि का फायदा उन्हें बाद के समय में नहीं मिला। बसपा में एक बार फिर गए। 2009 में बदायूं से लोकसभा उम्मीदवार के रूप में उतरे और हारे। 2012 में अपनी पार्टी बनाकर यूपी चुनाव में अपने उम्मीदवार उतारे। तमाम सीटों पर पार्टी को हार का सामना करना पड़ा। वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में संभल सीट से उम्मीदवारी पेश की और फिर हारे। यूपी चुनाव 2022 में उन्होंने अपने बेटे कुणाल यादव को अपनी पार्टी के उम्मीदवार के रूप में उतारा। सहसवान सीट पर हुए चुनाव में सपा के बृजेश यादव ने इस बार जीत दर्ज की है। बसपा के हाजी विट्‌टन मुसर्रत दूसरे और सपा के डीके भारद्वाज तीसरे स्थान पर रहे। आरपीडी के कुणाल यादव 24,060 वोटों के साथ चौथे स्थान पर रहे।

डीपी यादव के कार्यक्रम में शामिल होकर शिवपाल ने दिए बड़े संदेश

डीपी यादव के कार्यक्रम में शामिल होकर शिवपाल ने दिए बड़े संदेश
अब शिवपाल के साथ पर चर्चा
डीपी यादव और शिवपाल यादव की तस्वीर सामने आने के बाद अब राजनीतिक चर्चा गरम हो गई है। दरअसल, शिवपाल यादव समाजवादी पार्टी से अलग अपनी राजनीतिक जमीन तलाश रहे हैं। उन्होंने रामपुर के विधायक आजम खान को साथ लाने की कोशिश की, लेकिन कामयाबी नहीं मिली। अब उनकी डीपी यादव के साथ नोएडा के सेक्टर 73 में तेजपाल सिंह की प्रतिमा के अनावरण कार्यक्रम में आई तस्वीर ने राजनीतिक तापमान और बहस दोनों को बढ़ा दिया है। कभी मुलायम के करीबी रहे डीपी यादव को अखिलेश के कारण बाहर का रास्ता देखना पड़ा था। अखिलेश के कारण ही शिवपाल पार्टी में हाशिए पर हैं। ऐसे में दोनों मिलकर अगर राजनीतिक गठजोड़ करते हैं तो यह अखिलेश की माय (मुस्लिम+यादव) समीकरण को मजबूत करने की रणनीति में बाधक बन सकता है।

हिस्ट्रीशीटर की बी लिस्ट में शामिल हैं डीपी यादव

हिस्ट्रीशीटर की बी लिस्ट में शामिल हैं डीपी यादव
डीपी यादव बी श्रेणी के हिस्ट्रीशीटर
डीपी यादव डिस्ट्रीशीटर लिस्ट में शामिल हैं। उन्हें बी श्रेणी के हिस्ट्रीशीटर लिस्ट में रखा गया है। पिछले दिनों उन्होंने अपनी उम्र का हवाला देकर हिस्ट्रीशीटर लिस्ट से नाम हटवाने की गुजारिश की थी। पुलिस के अधिकारियों ने बताया कि हिस्ट्रीशीटर को उनके जुर्म के हिसाब से ए और बी श्रेणी में रखा जाता है। वैसे अपराधी जो छोटे अपराध करते हैं और उनमें सुधार की गुंजाइश होती है, उन्हें ए श्रेणी की हिस्ट्रीशीट रखा जाता है। वहीं, जघन्य अपराध करने वालों की बी श्रेणी की हिस्ट्रीशीट में रखा जाता है।

ए श्रेणी की हिस्ट्रीशीट एसपी के स्तर पर खोला जाता है। वहीं, बी श्रेणी की हिस्ट्रीशीट आईजी के अनुमोदन पर खुलता है। ए श्रेणी के हिस्ट्रीशीटरों की सिर्फ निगरानी समाप्त की जा सकती है, जबकि बी श्रेणी की हिस्ट्रीशीट सिर्फ हिस्ट्रीशीटर की मौत के बाद ही बंद होती है। डीपी यादव कविनगर थाने के बी श्रेणी के हिस्ट्रीशीटर हैं। सूची में 69वें नंबर पर दर्ज है।

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