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शिवराजसिंह,श्रीकृष्ण हुए और श्री दशमत रावत सुदामा 

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हरिशंकर पाराशर,

देश में शौचालयों का बढ़ी हुई संख्या के प्रसार प्रचार के उपरांत भी इनका टोटा है, तभी तो भाजपाई श्री प्रवेश शुक्ला जी को मूत्र निस्तारण की सुविधा सुलभ नहीं हो पाई। मा. बिंदेश्वर पाठक जी, और सुलभ शौचालय बनवाइए कृपया। श्री पाठक शायद कहें – इनके लिए एक मोबाइल शौचालय की व्यवस्था भी इनके पीछे पीछे करवा दें  तो भी शुक्ला जी एक पूँछ स्वरूप वक्र के वक्र। खैर, शौचालय ना मिलने पर इस अवसर को एक शुक्लपक्ष मान कर शुक्ला जी ने भूमि सिंचन के बजाय आदिवासी श्री दशमत रावत को सींच डाला अपने मूत्र को अमृत मानकर इस अमृत महोत्सव काल में।

इसे एक परम पुनीत कर्तव्य मान कर (मानों श्री दशमत, दशमलव की संख्या हैं शुक्ला जी की एक ‘पूर्ण अंकीय अस्तित्व’ के समक्ष) या उन्हें अनुभूति हुई हो कि उनका मूत्र आरक्षित है किसी आदिवासी के लिए। संभव हो कि गौमूत्र की पवित्रता के प्रति प्रतिस्पर्धात्मक भावना आ गई हो अपने मूत्र को लेकर और उसे श्रेष्ठतम मान लिया हो मानव उद्धार के लिए विशेष रूप से आदिवासियों हेतु। इस दिव्य मूत्र से दिव्य स्नान ध्यान करावाया दिव्य मानव का रूप प्रदान करने रावत को। संभव तो ये भी है भाजपाई ने गौमूत्र के उपरांत ‘भाजपाई मानव मूत्र’ के महिमामंडन का संकल्प लिया हो कि गौमूत्र से श्रेष्ठ है, मानव मूत्र यथेष्ट है! बहरहाल, रंगे हुए सियारों द्वारा सिंह गर्जना सामुहिक रूप से करने के प्रयास में ‘हुआं हुआं’ ही हो पाया। शिवराजसिंह जी ने उत्तर प्रदेशीय समकक्ष की प्रतिलीपी स्वरूप बुलडोजरी समाधान के तहत शुक्ला जी द्वारा अतिक्रमित धरा पर आक्रमण कर देढ़ करोड़ आदिवासियों को झुनझुना ऑफर किया। लिपाई पुताई के क्रियान्वयन का चिंतन-मनन कर,भाजपाई मूत्र से गौरवान्वित किए गए श्री दशमत रावत को मुख्यमंत्री शिवराज सिंह ने पुनः गौरव वर्धन करने घर निमंत्रित किया। भोपाल द्वारका हुआ था। शिवराजसिंह चौहान, श्रीकृष्ण यादव में परिवर्तित हो और श्री दशमत रावत को सुदामा में परिवर्तन कर उनके पैर धोए। टोटल श्रीकृष्ण होने में यही कसर रह गयी कि आंसुओं से नहीं पखारे। पैर धोने की क्रिया के आयोजन के विचार का श्रेय माननीय मोदी जी के सौजन्य से है जब प्रयाग राज में सफाई कर्माचारियों के पांव धोने का कर्मकांड सफलतापूर्वक किया था आप ने। कलियुगी भाजपाइयों में श्रीकृष्ण अवतार-प्रथम होने का सम्मान माननीय मोदी जी को ही प्राप्त है।शिवराजसिंह चौहान तो द्वितीय हैं। खैर, रावत को शाल ओढ़ाकर या कहिए शाल से तोप ताप कर,अपना ‘रायता-ए- छीछालेदर’ ढकने के प्रयास का यह एक प्रयोग था। देढ़ करोड़ आदिवासी वोटरों की इकाई श्री दशमत रावत को भगवान कहना अत्याधिक स्वाभाविक है शिवराजसिंह के लिए । अपने आका के अनुयाई श्री चौहान ने भी मन की बात की रावत से कि- मन से दुखी हूँ मैं। शरणागत तो थे ही मुख्यमंत्री जी, चरणागत भी हुए क्षमायाचक हो। नरम पड़ते रावत को भांप, मुख्यमंत्री जी पारिवारिक सदस्य होने लगे और शुभचिंतन की झड़ी लगा दी। उदाहरणार्थ, परिवार कैसा है? पत्नी कैसी है? बेटी कैसी है? इत्यादि इत्यादि। योजनाबद्ध विधि से लगे हाथ चौहान ने सरकारी योजनाओं का विज्ञापन भी अपने मुखारबिंद से कर डाला। मसलन ‘लाड़ली बेटी योजना’ का लाभ मिल रहा है कि नहीं? ‘लाड़ली बहना योजना’ आप के घर पहुंच रही है कि नहीं? इस एकांकी नाटक के मंचन का विवरण मंच से विस्तारपूर्वक जनता को बताते हुए भी भावविभोर हुए वे।

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