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 चार बार मुख्यमंत्री रहे शिवराज सिंह चौहान करो या मरो की लड़ाई लड़ रहे हैं

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रश्मि सहगल
Translated by महेश कुमार

क्या मध्य प्रदेश के चार बार मुख्यमंत्री रहे शिवराज सिंह चौहान के लिए हाई-स्टेक विधानसभा चुनाव आख़िरी चुनाव साबित होगा, जिसके लिए अभियान पूरे जोरों पर है? 18 वर्षों तक सत्ता में रहने के बाद, चौहान एक मजबूत सत्ता विरोधी लहर और उनके और उनकी पार्टी, भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के ख़िलाफ़ भ्रष्टाचार के आरोपों की एक श्रृंखला का मुकाबला करते हुए, करो या मरो की लड़ाई लड़ रहे हैं।

प्रतिद्वंद्वी खेमे में, कांग्रेस के 77 वर्षीय, मजबूत टक्कर देने वाले कमल नाथ हैं, शायद वे भी अपनी आख़िरी बड़ी चुनावी लड़ाई लड़ रहे हैं। निश्चित रूप से उनके अभियान में व्यक्तिगतता का स्पर्श है, क्योंकि सत्ता में अपने आख़िरी कार्यकाल के महज़ डेढ़ साल में ही उन्हें और कांग्रेस को भाजपा ने मात दे दी थी। कांग्रेस प्रचार कर रही है कि भाजपा ने 2020 में, 17 विधायकों और ज्योतिरादित्य सिंधिया को दलबदल कराकर सरकार बना ली थी।

इस सब को लेकर, कमलनाथ ने मध्य प्रदेश के कोने-कोने की यात्रा की है, और उन्होंने चौहान को ‘लुटेरा मामा’ का नाम दिया है और जोर देकर कहा है कि उनकी सरकार “50 प्रतिशत कमीशन सरकार” का पर्याय बन गई है, जिसका अर्थ है कि यह जनता को कोई भी राहत और व्यापार को बढ़ावा देने के लिए सरकारी सेवाओं और लाभों के एवज में अधिक से अधिक रिश्वत लेती है।

कांग्रेस पार्टी ने एक आरोप पत्र जारी किया, जिसमें चौहान कार्यकाल के दौरान 250 से अधिक ‘घोटालों’ को सूचीबद्ध किया गया है। सबसे प्रमुख आरोप, भर्ती योजनाओं में अनियमितताओं से संबंधित हैं, जिसमें संविदा नर्सिंग स्टाफ और कुख्यात व्यापम केस भी शामिल है, जिसने लोगों में प्रतिक्रिया पैदा की है।

पटवारी भर्ती योजना में भी गड़बड़ी के आरोप लगे हैं, जिसमें शीर्ष दस उम्मीदवारों में से सात कथित तौर पर उसी कॉलेज से थे, माना जाता है जिस कॉलेज को भाजपा के विधान सभा सदस्य चलाते हैं।’मामा’, मध्य प्रदेश में चौहान का उपनाम है, जो राज्य में महिला मतदाताओं के बीच उन्हें मिले मजबूत समर्थन का एक परिणाम है। उन्होंने राज्य सरकार की कई कल्याणकारी योजनाएं शुरू की हैं, जिनमें महिलाएं और लड़कियां प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से लाभार्थी बनाई गई हैं।

लेकिन कांग्रेस पार्टी का आरोप है कि महिलाओं और परिवारों के लिए बनी योजनाओं में ‘घोटाले’ हुए हैं, जिनमें तथाकथित पोषण आहार घोटाला भी शामिल है, जिसमें कथित तौर पर लगभग 500 करोड़ रुपये का पूरक पोषण कुपोषित बच्चों तक पहुंचने में विफल रहा है। सबसे पुरानी पार्टी ने मध्य प्रदेश में मध्याह्न भोजन योजना में कथित अनियमितताओं का भी मामला उठाया है।

महिला मतदाता मायने रखती हैं

चौहान ने बहुप्रचारित लाडली बहना [प्यारी बहन] योजना शुरू करके, कांग्रेस द्वारा की जा रही आलोचनाओं का जवाब दिया है, जिसमें दावा किया गया है कि छह महीने में 1.32 करोड़ से अधिक वंचित महिलाओं के बैंक खातों में 1,250 रुपये जमा किए गए हैं। बीजेपी का मानना है कि यह योजना उन्हें फिर से चुनावी जंग जीतने में मदद करेगी।

लेकिन मध्य प्रदेश में महिलाओं की क्या धारणा है? क्या वे मानती हैं कि यह मासिक वजीफा चौहान सरकार को एक और कार्यकाल दिला सकता है?

भोपाल की गृहिणी नीलम अग्निहोत्री, जो अपने घर में एक छोटा सा बुटीक चलाती हैं, कहती हैं, “मध्यम वर्गीय परिवार इस किस्म के वजीफों से प्रभावित नहीं हैं। हमें शिक्षा, स्वास्थ्य देखभाल और भोजन की बढ़ती लागत से निपटने की ज़रूरत है। इस मामले में हमें इस सरकार से कोई राहत नहीं मिली है।”

दक्षिणी मध्य प्रदेश के बैतूल जिले के गांव मुलताई, जहां से ताप्ती नदी का उद्गम होता है, की निवासी बुधाबाई कहती हैं, “हमारे गांव की 1,200 महिलाओं में से केवल 470 को लाडली बहना योजना का पात्र पाया गया। उन्हें तीन महीने से 1,000 रुपये प्रति माह मिल रहे हैं, लेकिन बाकी का क्या? मैंने भी आवेदन किया था, लेकिन मुझे कुछ नहीं मिला।” उनका मानना है कि ज़्यादातर गांवों में इस योजना को आधे-अधूरे ढंग से लागू किया जा रहा है।

मध्य प्रदेश में महिला मतदाताओं का बड़ा आधार है। पिछले राज्य चुनाव में 52 निर्वाचन क्षेत्रों में महिला मतदाताओं की संख्या पुरुष मतदाताओं से अधिक थी। ‘मामा’ ने उन्हें लाडली लक्ष्मी योजना, कन्या विवाह योजना और निकाह योजना (दोनों शादी के खर्चों के लिए) जैसी योजनाओं से लुभाया और उन्होंने फिर से चुने जाने पर लाडली बहना योजना की मासिक किस्त बढ़ाकर 3,000 रुपये करने का वादा किया है।

कांग्रेस ने महिलाओं के लिए 1,500 रुपये प्रति माह, 500 रुपये में रसोई गैस, एलपीजी सिलेंडर की मौजूदा कीमत में भारी कटौती, 100 यूनिट खपत तक मुफ्त बिजली और 200 यूनिट तक खपत पर 50 प्रतिशत छूट का वादा किया है। इसमें पुरानी पेंशन योजना को पुनर्जीवित करने और कृषि ऋण माफी का भी वादा किया गया है।

भौतिक विज्ञानी, भ्रष्टाचार विरोधी योद्धा और समाजवादी पार्टी के पूर्व विधायक डॉ. सुनीलम का मानना है कि कांग्रेस ने चुनाव से छह महीने पहले वादों की घोषणा करके एक रणनीतिक गलती की है। ये गेम-चेंजर साबित हो सकते थे लेकिन चौहान ने लाडली बहना योजना से पासा पलट दिया है। डॉ. सुनीलम, जो किसान संघर्ष समिति नामक एक संगठन के प्रमुख भी हैं, वह कहते हैं, “इस योजना के लाभार्थियों का मानना है कि उस पार्टी को वोट देना बेहतर है जो पहले से ही पैसा दे रही है बजाय उस पार्टी को जो सत्ता में आने के बाद ऐसा करने का दावा करती है।” आपको बता दें, डॉ. सुनीलम ने 12 जनवरी, 1998 को पुलिस गोलीबारी में मारे गए 24 किसानों को न्याय दिलाने के लिए लंबी कानूनी लड़ाई लड़ी है।

कृषि संकट

मध्य प्रदेश में किसान आत्महत्याओं की बड़ी संख्या को देखते हुए (चौहान शासन के दौरान लगभग 21,000 किसानों ने आत्महत्या की) और जैसे-जैसे कृषि संकट बढ़ रहा है, खासकर मालवा-निमाड और चंबल इलाकों में, यह स्वाभाविक है कि किसान परेशान हैं।

राज्य की लगभग 70 प्रतिशत कृषि वर्षा पर निर्भर है और बार-बार पड़ने वाले सूखे और बाढ़ ने किसानों की कमर तोड़ दी है। मध्य प्रदेश के किसान भी उच्च ब्याज वाले ऋणों के बोझ तले दबे हुए हैं, खासकर साहूकारों के बोझ अधिक हैं।

भोपाल से सिर्फ 70 किलोमीटर दूर, सीहोर जिले में चौहान के बुधनी निर्वाचन इलाके में, दुखी किसान अपनी क्षतिग्रस्त सोयाबीन की फसल के बारे में शिकायत करते हैं और बताते हैं कि कैसे प्रधानमंत्री की फसल बीमा योजना से उन्हें जो मिलना चाहिए था उसका केवल एक अंश ही मिला है।

किसान, रमेश भल्ला का आरोप है, “हमें 1,200 रुपये की दर से बीमा दावा मिल रहा है, जबकि प्रावधान के मुताबिक, दर 32,000 रुपये होनी चाहिए। ऐसा इसलिए है क्योंकि पटवारी पैसे हड़प रहे हैं।”

कांग्रेस पार्टी के वादों की लंबी सूची में ‘कृषक न्याय योजना’ शामिल है, जिसमें 40 लाख किसानों को मुफ्त बिजली और कृषि के लिए बिजली-खपत में छूट देने का वादा किया गया है।

किसानों का गुस्सा कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर के ख़िलाफ़ भी बढ़ रहा है, जिन्हें वे अलोकप्रिय कृषि कानूनों के मामले में दोषी मानते हैं, जिन्हें दो साल पहले वापस ले लिया गया था। तोमर चार ‘चयनित’ नेताओं (और संभावित मुख्यमंत्री पद के आकांक्षी) में से एक हैं, लेकिन वे मुरैना जिले के दिमनी विधानसभा क्षेत्र से चुनाव लड़ रहे हैं, जिसका वे लोकसभा में प्रतिनिधित्व करते हैं।

उन्होंने कहा, चंबल इलाका लंबे समय से भाजपा के लिए दुखदायी इलाका रहा है। 2018 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने इस बेल्ट की सभी छह विधानसभा सीटें जीत ली थीं। यहां के किसानों के पास पानी, खाद और बहुत कुछ की कमी है और वे भाजपा को हराने के लिए बेताब हैं।

हालिया वीडियो क्लिप में जिसमें तोमर के बेटे देवेंद्र कथित तौर पर करोड़ों के “लेन-देन पर चर्चा” कर रहे हैं, पर पूरे चंबल बेल्ट में बड़ी फुसफुसाहट हो रही है। तोमर ने इसे ‘सुनियोजित साजिश’ बताया है।

चंबल और मध्य प्रदेश के अन्य हिस्सों में भूमिहीन किसान, विशेष रूप से मनरेगा में काम न मिलने से नाराज़ हैं, उनका कहना है कि यह छह महीने से चालू नहीं हुई है। इंदौर स्थित पूर्व मंत्री सुरेश पचौरी जैसे कांग्रेस नेताओं ने आरोप लगाया है कि मनरेगा निधि का 75 प्रतिशत हिस्सा इस्तेमाल नहीं हुआ है।

डॉ. सुनीलम कहते हैं कि “गरीबों और संकट में फंसे लोगों को अब इस योजना से पैसा नहीं मिल रहा है। यही बात विधवाओं और दिव्यांगों की पेंशन योजनाओं पर भी लागू होती है। इन फंडों को अन्य योजनाओं के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है।”

मुस्लिम मतदाता

भोपाल में कई मुसलमानों का मानना है कि चौहान ने जो ‘सॉफ्ट’ हिंदुत्व की अपील की थी, उससे उन्हें उनके वोट मिले हैं। अब, वे कहते हैं, चौहान को भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के भीतर अपने कट्टर प्रतिद्वंद्वियों के कारण कट्टर हिंदुत्व दृष्टिकोण को अपनाने पर मजबूर होना पड़ा है। इस प्रतिद्वंद्विता के कारण राज्य में गरीबों और मुसलमानों के घरों को बुलडोजरों से गिरा दिया गया।

इस तरह की कार्रवाई ने कांग्रेस के अभियान को फायदा पहुंचाया है, जिसमें नाथ कह रहे हैं कि अब लोग सरकार के ‘भ्रष्टाचार और अयोग्यता’ पर बुलडोजर चलाएंगे।

मध्य प्रदेश की आबादी में मुसलमानों की हिस्सेदारी लगभग 7 प्रतिशत है और वे भोपाल, इंदौर, जबलपुर, रतलाम, ग्वालियर, शाजापुर, नीमच और उज्जैन सहित 19 जिलों में निवास करते हैं।

भोपाल के मुस्लिम बहुल जहांगीरपुरा इलाके में एक छोटी-सी हार्डवेयर की दुकान चलाने वाले परवेज़ मोहम्मद मानते हैं कि वे नाथ सहित कांग्रेस नेताओं द्वारा अपनाए गए सॉफ्ट हिंदुत्व से नाखुश हैं। लेकिन उनका मानना है कि कांग्रेस की जीत से मुसलमानों को ‘कुछ राहत’ मिलेगी। उनका कहना है, “हम कांग्रेस को वोट देंगे क्योंकि वे इस बुलडोजर संस्कृति और बीजेपी की भेदभावपूर्ण नीतियों को खत्म कर देंगे।”

पार्टी का भीतरी संघर्ष

दिग्गज नेता और भाजपा महासचिव कैलाश विजयवर्गीय के वफादारों का मानना है कि अगर भाजपा यह चुनाव जीत जाती है तो उन्हें चौहान के ख़िलाफ़ खड़ा किया जा सकता है। कांग्रेस ने उन पर चुनाव आयोग से उनके ख़िलाफ़ लंबित पड़े बलात्कार के आरोप को छिपाने का आरोप लगाया है, जिसके बाद विजयवर्गीय ने सार्वजनिक रूप से कहा था, “मुझे चुनाव लड़ने की कोई इच्छा नहीं है… मैं एक वरिष्ठ नेता हूं-क्या मैं हाथ जोड़कर वोट मांगूंगा?” फिर भी उन्होंने इंदौर-1 निर्वाचन क्षेत्र से अपना नामांकन दाखिल किया है।

नाथ निश्चित रूप से भोपाल में कांग्रेस पार्टी का चेहरा लग रहे हैं। पार्टी के बैनरों में स्थानीय नेताओं के साथ उनकी तस्वीरें हैं, लेकिन कुछ पोस्टरों में राहुल गांधी या कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे को भी दिखाया गया है।

नाथ के निर्वाचन क्षेत्र, छिंदवाड़ा में, जो भोपाल से लगभग 280 किमी की दूरी पर है, स्पष्ट है कि यह एक बहुत पसंदीदा शहर है जहां ब्रांडेड सामान बेचने वाले कई शोरूम हैं और सुपर-स्पेशिएलिटी वाले अस्पताल भी हैं। नाथ को उम्मीद है कि वे महंगाई, बेरोज़गारी और लोगों की अन्य चिंताओं को मुद्दा बनाते हुए सत्ता विरोधी लहर का फायदा उठा लेंगे।

लेकिन कांग्रेस के अभियान में भाजपा के मुक़ाबले वित्तीय ताकत और संगठनात्मक ताकत का अभाव है।

समाजवादी जन परिषद के सदस्य और भोपाल स्थित टिप्पणीकार अनुराग मोदी का मानना है कि इस चुनाव में कांग्रेस को बढ़त हासिल है। “भाजपा की उपलब्धि केवल हिंदुत्व है। कमल नाथ वैचारिक रूप से तटस्थ हैं। उन्होंने पूजा आदि आयोजित करके हिंदुत्व कार्ड को बेअसर कर दिया है। अपने 15 महीने के कार्यकाल के दौरान, उन्होंने 21 लाख किसानों के लिए ऋण माफी सुनिश्चित की, जिसे भुलाया नहीं जा सका है। शहरी केंद्रों में भाजपा मजबूत है लेकिन 170 ग्रामीण सीटों पर कांग्रेस को समर्थन मिलने की संभावना है।”

(लेखक एक स्वतंत्र पत्रकार हैं। विचार निजी हैं।)

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