हरनाम सिंह
हिंदी साहित्य के क्षेत्र में सबसे कठिन विधा नाटक ही मानी जानी चाहिए। क्योंकि नाटकों के लेखन में उनके सफल मंचन की भी चुनौती होती है। नाटक के लेखक को मंच एवं कथ्य के अनुकूल संवाद, मंच सज्जा के लिए विराम सहित अनेक बातों का ध्यान रखना होता है। लेखन की अन्य विधाओं में इतनी दुरुहता नहीं होती है।
विगत दिनों “ढाई आखर प्रेम” यात्रा के गुना पड़ाव में आदरणीय राम दुलारी शर्मा के नाटकों की दो पुस्तकें भेट में मिली थी। गायन वादन में सिद्धहस्त राम दुलारी जी की एक पुस्तक *पाकिस्तान की चिट्ठी..* तीन नाटक हैं। ये नाटक विख्यात लेखकों की कहानियों का नाट्य रुपांतरण हैं। वहीं दूसरी पुस्तक *अपराधी कौन* के दोनों नाटक राम दुलारी जी के मौलिक सोच पर आधारित हैं।
पाकिस्तान की चिट्ठी…के तीनों नाटक अलग-अलग प्रृष्ठभूमी पर लिखी गई कहानियां पर आधारित हैं।” दूजौ कबीर” नाटक राजस्थान के विख्यात लेखक विजय दान देथा कि मूल कहानी पर आधारित है। “भोलाराम का जीव” व्यंग्य विधा के शीर्षस्थ लेखक हरिशंकर परसाई की कहानी “भोलाराम का जीव” तथा “पाकिस्तान की चिट्ठी” प्रेम पुनेठा की कहानी का नाट्य रुपांतरण है। राजस्थान, मध्य प्रदेश एवं उत्तराखंड की अलग-अलग पृष्ठभूमि एवं समय कॉल पर लिखी कहानियों का चयन लेखिका राम दुलारी जी के गहन अध्ययन एवं कल्पनाशीलता को शब्दों में पिरोने की क्षमता को प्रमाणित करता है।
पाकिस्तान की चिट्ठी… नाटक देश विभाजन की त्रासदी पर आधारित है। इस विभाजन ने कितनी जिंदगीयों पर किस- किस तरह से असर डाला उसका ही एक नमूना है।विभाजन का दर्द भोगने वाले हर व्यक्ति की अपनी-अपनी व्यथा है। इस मानवीय त्रासदी पर बहुत लिखा जा चुका है फिर भी अभी बहुत कुछ बाकी है जो लिखा जाना चाहिए। मेरा परिवार इसी त्रासदी का शिकार रहा है। इसलिए नाटक के नायक के दर्द और विवशता और बेबसी ने मुझे अंदर तक हिलाकर रख दिया। कहानी के नाट्य रुपांतरण में पात्र अतीत से वर्तमान तक आते जाते हैं। पाकिस्तान से आए एक खत ने कितने जख्म हरे कर दिए।
परिवर्तन से गुजरते समाज में नायक ईश्वर दत्त की महत्वाकांक्षाएं उसे अविभाजित भारत के लाहौर में पहुंचा देती है। किन परिस्थितियों में वह धर्म परिवर्तन के लिए विवश होता है। उसका दुख और स्मृतियां पाठक को भावुक बना देती है। यही लेखिका की सफलता है।
नाटक “भोलाराम का जीव” में राम दुलारी जी ने कहानी का विस्तार करते हुए नाटक में अन्य पात्रों को जोड़कर उसे रोचक बना दिया है। नाटक में भोलाराम के प्रसंग के पूर्व यमराज एक नेता, एक वकील, एक भगत को उनके कर्म फल के साथ से नरक में भेजते हैं। ये सभी पात्र हमारे ही समाज का प्रतिनिधित्व करते हैं।
“दूजौ कबीर” नाटक दार्शनिक पृष्ठभूमि पर जीवन की निस्सारता को प्रदर्शित करता है। राजा और कबीर के बीच के संवाद कबीर की निर्भयता और वंचित वर्ग के प्रति प्रतिबद्धता को प्रदर्शित करता है। राजकुमारी का कबीर के प्रति आकर्षण सुखद फिल्मों के अंत जैसा ही क्रृत्रिम लगता है। नाटक में धर्मान्धता और पाखंड पर संत कबीर की फटकार का अभाव है।
पुस्तक “अपराधी कौन” में एक नाटक का विषय बाल श्रम है। दूसरे नाटक “श्राद्ध” में जाति भेद एवं बेरोजगारी की समस्या को रोचक तरीके से उठाया गया है। दोनों नाटक पाठकों की जिज्ञासा को बनाए रखने में सफल रहे हैं। एक बार पढ़ना आरंभ करने के बाद पुस्तक को समाप्त करके ही छोड़ा जा सकता है। अपने समय की दोनों समस्याओं पर लेखिका ने समाज एवं प्रशासन तंत्र के खोखले पन को ही उजागर किया है।
पहले नाटक अपराधी कौन के पात्र निश्चित किशोर वय अथवा उससे भी कम आयु के बच्चे हैं। कई स्थानों पर बच्चों के संवाद उनकी आयु के हिसाब से अधिक परिपक्व प्रतीत होते हैं। सरकारी अधिकारी माता- पिता द्वारा अपनी ही संतान पिंटू को छुड़वाने थाने न जाना, उसे अपनी शान के खिलाफ समझना और बच्चे को एक तरह से त्याग देना व्यावहारिक तो नहीं लगता, लेकिन लेखिका के अनुसार ऐसी घटना हुई है।
अपराधी कौन की अपेक्षा
श्राद्ध नाटक अपना संदेश देने में सफल रहा है।
हरनाम सिंह