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पाप, क्या और पुण्य?

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शशिकांत गुप्ते

मुझे पुरानी फिल्मों के गाने सुनने का शौक़ है। पुरानी फिल्मों के गाने अर्थ पूर्ण होतें हैं। गानों में प्रेरक संदेश होतें हैं। भावपूर्ण शब्द रचना होती है। इसीलिए पुरानी फिल्मों के गाने आज भी प्रासंगिक होतें हैं।
आज मैं सन 1959 में प्रदर्शित फ़िल्म काली टोपी लाल रुमाल यह गीत सुन रहा था। गीत बोल मौजूदा स्थिति के लिए प्रासंगिक हैं। इस गीत के गीतकार हैं शायर मजरूह सुलतानपुरी ने।
इस गीत को स्वरबद्ध किया प्रख्यात गायिका स्व. लता मंगेशकर ने।
न तो दर्द गया न दवा ही मिली
मैंने ढूँढ के देखा ज़माना
पहुँचे जहाँ भी हम तो लौट आये हार के
ए दिल पुकार देखा एक ऐतबार पे
सबसे कहा मेरा दर्द मगर
मंदिर मस्जिद में जा कर की है फ़रियाद भी
मिलता जवाब तो क्या आई ना आवाज़ भी
माँगी दुआ मैंने लाख मगर
ऐसा ये ग़म ही नहीं कोई पहचान ले
ऐसा वो कौन है जो दुःख मेरा जान ले
छानी गली छाना सारा नगर
न तो दर्द गया न दवा ही मिली
मैंने ढूँढ के देखा ज़माना

यह पढ़कर मेरे मित्र सीतारामजी ने कहा सच में, यह गीत देश के आमजन की जो आज स्थिति है, उसका यथार्थ चित्रण है।
उपर्युक्त विचारों के कारण सीतारामजी के अंतर्मन में निराशा के भाव आने लगे।
निराशा से बचने के लिए,मैने सीतारामजी को सलाह दी, हनुमान चालीस का पाठ शुरू करों। सीतारामजी ने कहा मेरे सिंद्धान्त ने इस बात की अनुमति नहीं दी। सीतारामजी ने क्रोध में आकर कहा,कभी भी धर्म और राजनीति का तालमेल उचित नहीं होता है। भगवान की भक्ति श्रद्धा से करनी है, स्वार्थ के लिए नहीं?
मैने कहा आप चिंतन करना शुरू कर दीजिए। सीतारामजी ने पुनः क्रोधित होकर कहा,हर मुद्देपर राजनीति करना उचित नहीं है?
मैने कहा कि,फिर भी चिंता तो चिंता ही होती है। किसी ने कहा है चिंता,चिता समान होती है।
चिंतित होने पर व्यक्ति नकारात्मक सोचता है।
मराठी का एक सुवाक्य है।
मन चिंते ते वैरी न चींते हताशा के समय कोई भी व्यक्ति स्वयं जिनता चिंतित होकर स्वयं के लिए बुरा सोचता है, उतना बुरा तो उसका शत्रु भी उस व्यक्ति के लिए नहीं सोचता होगा?
मैने सीतारामजी को संत कबीर साहब का दोहा सुनाया।
चिंता से चतुराई घट,दुःख से घट शरीर
पाप से लक्ष्मी घटे,कह गए दास कबीर

सीतारामजी तो उक्त दोहे का भावार्थ समझकर थोड़ा सामान्य होकर रवाना हो गए।
मै दोहे की इस पंक्ति को बार बार दोहराने लगा। पाप से लक्ष्मी घटे पता नहीं क्यों इस पंक्ति से मेरा ध्यान हट ही नहीं रहा था। ध्यान हटाने के लिए समाचार पत्र पढ़ने लगा,एक समाचार की ओर ध्यान गया,एक अदने से शासकीय कर्मी के यहाँ डाले गए छापें में करोड़ो रुपए निकले। एक समाचार तो बहुत ही आश्चर्यजनक पढ़ने को मिला। सफाई कर्मियों पर निगरानी रखने के लिए, नियुक्त कर्मी के यहाँ करोड़ो की संपदा मिली।
एक समाचार पढ़कर तो मुझे पाप और पुण्य दोनों में क्या अंतर है समझमें ही नहीं आया? समाचार था, किसी व्यक्ति ने मंदिर में करोड़ों रुपये गुप्त दान के रूप में भेंट किए।
मैने समाचार पत्र एक ओर रख दिया,और यूट्यूब पर संत कबीर के दोहे सुनने लगा।
जहाँ दया तहा धर्म है, जहाँ लोभ वहां पाप
जहाँ क्रोध तहा काल है, जहाँ क्षमा वहां आप

शशिकांत गुप्ते इंदौर

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