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श्रद्धांजलि:झारखंड में किन संघर्षों को आगे बढ़ाने में थी सीताराम येचुरी की भागीदारी

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भारत की कम्युनिस्ट पार्टी(मार्क्सवादी) यानी माकपा के महासचिव सीताराम येचुरी का झारखंड से काफी लगाव था. झारखंड आंदोलन के संघर्षों में वैचारिक और भागीदारी दोनों के स्तर पर सीताराम येचुरी की सक्रियता रहती थी. येचुरी के निधन पर माकपा के वरिष्ठ नेता प्रकाश विप्लव झारखंड में उनके योगदानों को याद करते हैं. 

प्रकाश विप्लव बताते हैं कि सीताराम येचुरी अलग झारखंड राज्य के इतने बड़े समर्थक थे कि अलग राज्य का गठन होने से पहले ही उन्होंने माकपा की राज्य कमेटी बना दी थी. 

झारखंड राज्य का गठन 15 नवंबर 2000 को हुआ. जबकि माकपा की झारखंड राज्य कमेटी का गठन 10 नवंबर 2000 को ही हो गया था.  झारखंड बनने से पांच दिन पहले हुए इस इकाई गठन में सीताराम येचुरी भी मौजूद थे. उस समय वे माकपा में झारखंड राज्य के प्रभारी थे.

आदिवासी आंदोलन को आगे बढ़ाने पर था जोर 

प्रकाश विप्लव बताते हैं कि सीताराम येचुरी का जोर आदिवासी मुद्दों पर आंदोलन को आगे बढ़ाने पर था. इसके लिए वे पार्टी फोरम और अनौपचारिक रूप से भी लगातार सक्रिय रहते थे. पांचवीं अनुसूची, सीएनटी एक्ट और एसपीटी एक्ट जैसे मुद्दों के बारे में लगातार फोन कर वे जानकारी लेते रहते थे. इस दिशा में पार्टी की राज्य ईकाई को लगातार पहल करने का भी आग्रह करते थे.

  दलादली भूमि-संघर्ष में लिया था हिस्सा

सीताराम येचुरी ने दलादली में एक स्थानीय जमींदार के खिलाफ हुए भूमि-संघर्ष में भी हिस्सा लिया था. प्रकाश विप्लव बताते हैं कि उस संघर्ष में कुछ लोग मारे गए थे. साल 2000 में हुई इस घटना के बाद नगड़ी प्रखंड कार्यालय परिसर में एक बड़ी सभा हुई थी. इस सभा को सीताराम येचुरी ने भी संबोधित किया था. उन्होंने उस समय झारखंड में राज्य सरकार से भूमि सुधार को लागू करने की भी मांग की थी. 

कैसे वामपंथी बने सीता राम येचुरी

सीताराम येचुरी ऐसे घर में पैदा हुए जो अधिकारियों का घर था यानी उनके माता पिता दोनों अधिकारी थे. वह खुद पढ़ने लिखने में विलक्षण थे. घर की स्थिति काफी अच्छी… ऐसी बैकग्राउंड का शख्स कैसे वामपंथी बन गया. फिर अपनी सारी जिंदगी वामपंथी बनकर गुजार दी. मिलने वाले उनकी सहजता और साधारण जीवनशैली की तारीफ करते थे. वह ऐसे खांटी वामपंथी दौर के पुरोधा थे, जो पीढ़ी धीरे धीरे विदा हो रही है.

अगर उनके फेसबुक पेज पर जाइए तो वह लगातार उस पर सक्रिय रहते थे. अपने विचार, सहमति और असहमति के लिए वह उनका मंच था. ट्विटर यानी एक्स पर एक्टिव रहते थे. अब इन सारी जगहों पर सन्नाटा छा जाएगा. उनकी कमी सियासत से लेकर इन सभी मंचों पर खलेगी.

ये मुश्किल से बीस दिनों पहले की बात थी. वह एम्स में भर्ती हो चुके थे. बंगाल के पूर्व मुख्यमंत्री बुद्धदेव दासगुप्ता का निधन हुआ. उन्होंने वहीं से अपना शोक संदेश वीडियो के जरिए भेजा. उसमें वह काफी दुबले लग रहे थे. धीरे धीरे बोल रहे थे. हां ये हैरानी थी कि तेलुगु राज्य में पैदा हुआ शख्स कैसे इतनी धाराप्रवाह बंगला बोल रहा है.

वह काफी दुबले हो गए थे
जिन लोगों ने उन्हें बीस दिन पहले और हाल में एम्स में देखा उनका यही कहना था कि वह आधे हो चुके थे. कोविड के बाद वह बदल गए थे, ऐसा कुछ लोगों का कहना था, लेकिन वह खुद इस बात को फीकी हंसी में उड़ाने की कोशिश करते . तीन साल पहले कोविड में उनके 34 साल के बेटे की मृत्यु गुरुग्राम के एक अस्पताल में हो गई थी. उसका शायद उन्हें बड़ा झटका लगा.

वामपंथ के मजबूत सिपाही
वह बेहद प्रबुद्ध नेताओं में गिने जाते थे. विषयों की समझ रखते थे. वामपंथी उन्हें मध्य मार्गी कहते थे और वह खुद को वामपंथ का मजबूत सिपाही. हालांकि वामपंथी नेताओं से उनकी कुछ विचारों की टकराहट होती रहती थी. लेकिन उनके कामकाज और पार्टी के प्रति वफादारी पर कोई कभी अंगुली नहीं उठा सका.

कैसा था परिवार
वह तीन बार भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) के महासचिव रहे. 1992 से सीपीआई (एम) के पोलित ब्यूरो के सदस्य थे. 2005 से 2017 तक पश्चिम बंगाल से राज्यसभा के सांसद थे. ये बड़ा सवाल हो सकता है कि तेलुगु परिवार में पैदा होने वाले कम वामपंथी नेता बनते हैं. परिवार भी उनका ऐसा नहीं था. पिता सर्वेश्वर सोमयाजुला येचुरी बड़े इंजीनियर थे. सरकारी महकमे में थे. मां कल्पकम येचुरी सरकारी अधिकारी थीं. अब भी आंंध्र प्रदेश में काकीनाडा में रहती हैं.

कैसे बन गए वामपंथी
ऐसे परिवार में पैदा होकर वह वामपंथ की ओर कैसे गए और ऐसे गए कि वामपंथ उनका सोना, जागना और जीवन बन गया. वह तो हैदराबाद में पढ़ रहे थे. हैदराबाद में ऑल सेंट्स हाई स्कूल दसवीं कक्षा में थे. 60 के दशक के आखिर में वहां तेलंगाना आंदोलन शुरू हो गया. आंध्र में स्कूल और पढ़ाई पर असर पड़ा. लिहाजा उनका एडमिशन दिल्ली में करा दिया गया.

बीए और एमए इकोनॉमिक्स में फर्स्ट क्लास
तो कहना चाहिए कि दिल्ली में रहने के दौरान यहां की संगत और संगत से मिली आबोहवा ने उन्हें कामरेड बना दिया. वह पहले प्रेसिडेंट्स एस्टेट स्कूल, नई दिल्ली में पढ़ने गए. आप जरा सोचिए कि वह ऐसे स्टूडेंट थे कि केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड उच्चतर माध्यमिक परीक्षा में अखिल भारतीय स्तर पर प्रथम स्थान हासिल किया. दिल्ली के सेंट स्टीफंस कॉलेज से अर्थशास्त्र में बीए (ऑनर्स) में फर्स्ट क्लास में पास हुए. असल में जेएनयू ने उन्हें खांटी कामरेड बनाया., जहां से उन्होंने अर्थशास्त्र में एमए प्रथम श्रेणी में किया. ​​उन्होंने अर्थशास्त्र में पीएचडी करने के लिए जेएनयू में दाखिला लिया. हालांकि ऐसा कर नहीं पाए, क्योंकि उनकी पीएचडी को आपातकाल के दौरान गिरफ्तारी के साथ रद्द कर दिया गया.

इस तरह सियासत में पड़े पहले कदम
उनकी राजनीति की पहली सीढ़ी 1974 में स्टूडेंट्स फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) में शामिल होना रहा. एक साल बाद वह भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) में शामिल हो गए.

आपातकाल में गिरफ्तार हुए
येचुरी को 1975 में आपातकाल के दौरान गिरफ़्तार किया गया था, तब वह जेएनयू में छात्र थे. गिरफ़्तारी से पहले वह भूमिगत भी रहे. आपातकाल के ख़िलाफ विरोध में हिस्सा भी लिया. आपातकाल के बाद वह जेएनयू छात्रसंघ के अध्यक्ष चुने गए. लोग कहते हैं कि जेएनयू में लाल झंडा असल में उन्हीं के दौर में खासा गाढ़ा हुआ.

एसएफआई से सीपीएम
फिर वह साथ साथ एसएफआई के अखिल भारतीय संयुक्त सचिव चुने गए. फिर इसके अखिल भारतीय अध्यक्ष बने. वह एसएफआई के पहले अध्यक्ष थे जो केरल या बंगाल से नहीं थे.
1984 में वह सीपीआई (एम) की केंद्रीय समिति के लिए चुने गए. 1985 में, पार्टी संविधान को संशोधित किया गया. पांच सदस्यीय केंद्रीय सचिवालय चुना गया, जिसमें वह और प्रकाश करात दोनों शामिल थे. 1992 में पोलित ब्यूरो में चुने गए. 2015 में पहली बार पार्टी के महासचिव बने. वह अब भी पार्टी के महासचिव थे, जिस पर तीसरी बार लगातार चुने गए थे.

कई किताबें लिखीं
उन्होंने हमेशा लोगों के मौलिक अधिकारों के लिए लड़ाई लड़ी. “विविधता में एकता” में विश्वास रखा. हमेशा हिंसा के खिलाफ आवाज उठाई. लेखक के तौर पर कई किताबें लिखीं.,हिंदुस्तान टाइम्स के लिए पाक्षिक कॉलम लेफ्ट हैंड ड्राइव लिखते रहे. 20 वर्षों से पार्टी के पाक्षिक समाचार पत्र पीपुल्स डेमोक्रेसी का संपादन कर रहे थे.

राज्यसभा में काम
येचुरी जुलाई 2005 में पश्चिम बंगाल से राज्यसभा के लिए चुने गए. उन्हें संसद के ध्यान में कई लोकप्रिय मुद्दे लाने और महत्वपूर्ण मुद्दों पर सवाल उठाने के लिए जाना जाता है. वह संसद में व्यवधानों को लोकतंत्र में एक वैध प्रक्रिया बताकर उचित ठहराते थे. जब भारत-अमेरिका परमाणु समझौते के दौरान उनका प्रकाश करात से मतभेद भी हुआ. ऐसा कहा जाता है कि इससे येचुरी “नाराज और असहाय” हो गए.

3 मार्च 2015 को संसद सत्र के दौरान येचुरी ने संसद के बजट सत्र के उद्घाटन के दिन राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के अभिभाषण में संशोधन पेश किया, जिसे राज्यसभा में मत विभाजन से पारित कर दिया गया , जिससे मोदी सरकार को भारी शर्मिंदगी उठानी पड़ी.

कहते थे उनकी पत्नी करती हैं उनका भरण पोषण
आखिर में उनके व्यक्तिगत जीवन की बात करनी चाहिए. हालांकि उसमें व्यक्तिगत जैसा कुछ था नहीं. उनका दूसरा विवाह पत्रकार सीमा चिश्ती से हुआ. वह द वायर की संपादक हैं. बीबीसी हिंदी सेवा की दिल्ली में संपादक रहीं. इंडियन एक्सप्रेस दिल्ली की रेजिडेंट एडिटर थीं. एक जमाने में सीमा चिश्ती ने चुनाव भी लड़ा था. वह अक्सर हंसी में कहते थे कि उनकी पत्नी आर्थिक रूप से उनका भरण-पोषण करती हैं.

वामपंथ किला और दरक गया
उनकी पहली शादी वीना मजूमदार की बेटी इंद्राणी मजूमदार से हुई थी. जिससे उनके एक बेटा और बेटी हैं. बेटे के निधन के बाद यकीनन वह अंदर तक कहीं व्यथित रहने लगे थे. उनकी बेटी अखिला येचुरी इतिहास की विद्वान हैं. एडिनबर्ग विश्वविद्यालय और सेंट एंड्रयूज विश्वविद्यालय में पढ़ाती हैं. एक खांटी कामरेड के तौर पर और अपने सहज सरल अंदाज और हर किसी के साथ दोस्ताना हो जाने वाले सीताराम येचुरी का जाना वाकई भारत में वामपंथ के लगातार कमजोर होते किले का और दरक जाना है.

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