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एसकेएम ने किया जनविरोधी और कॉरपोरेटपरस्त बजट की प्रतियां जलाने का आह्वान

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संयुक्त किसान मोर्चा ने प्रेस विज्ञप्ति जारी कर 23 जुलाई 2024 को वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण द्वारा संसद में पेश किए गए केंद्रीय बजट 2024-25 की कड़ी आलोचना की है, और इस वजट की प्रतियों को जलाने का आह्वान किया है. एसकेएम ने बताया कि किसानों और मजदूरों की कीमत पर कृषि के निगमीकरण और राज्य सरकारों के अधिकारों को हड़पने की बात कही गई है, जिससे भारत के संविधान के संघीय चरित्र के मूल अवधारणा का उल्लंघन होता है.

यह बजट अंतर्राष्ट्रीय वित्त पूंजी के दबाव में तैयार किया गया है और इसमें बहुराष्ट्रीय कंपनियों के लिए करों में 5% की छूट की घोषणा की गई है, और कॉरपोरेटों और अति धनिकों (सुपर रिच) पर भी वह न तो कोई संपत्ति कर और न ही उत्तराधिकार कर लगाने के लिए तैयार है, जबकि अप्रत्यक्ष कर के रूप में एकत्र किए गए जीएसटी का 67% हिस्सा 50% गरीब आबादी से आता है. इससे इस सरकार का किसान विरोधी, मजदूर वर्ग विरोधी पूर्वाग्रह स्पष्ट रूप से सामने आ रहा है. यह देश के किसानों को स्वीकार्य नहीं है.

बजट में किसानों की लंबे समय से लंबित मांग एमएसपी @सी-2+50% और गारंटीकृत खरीद की अनदेखी की गई है. वित्त मंत्री ने बजट भाषण में कहा है कि ‘अन्नदाता के लिए, सरकार ने एक महीने पहले सभी प्रमुख फसलों के लिए उच्च न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा की थी, जो लागत पर कम से कम 50 प्रतिशत मार्जिन के वादे को पूरा करता है.’ यह दावा झूठा है. वादा सी-2+50% का था और वर्तमान एमएसपी ए-2+एफएल+50% है. एसकेएम वित्त मंत्री से एमएसपी पर एक श्वेत पत्र लाने और आम जनता के समक्ष चीजें को स्पष्ट करने की मांग करती है, ताकि शासन में पारदर्शिता और औचित्य को बनाए रखा जा सके.

भले ही रिज़र्व बैंक ने लेखा वर्ष 2023-24 के लिए केंद्र सरकार को अधिशेष के रूप में 2,10,874 करोड़ रुपये हस्तांतरित किए हों, बजट ने किसानों और मजदूरों की सर्वसमावेशी ऋण माफी की लंबे समय से की जा रही मांग की क्रूरतापूर्वक उपेक्षा की है, जबकि रिकॉर्ड के अनुसार भारत में प्रतिदिन 31 किसान आत्महत्या कर रहे हैं. केंद्र सरकार ने पिछले दस वर्षों के दौरान कॉर्पोरेट घरानों के 14.46 लाख करोड़ रुपये का कर्ज माफ किया था और वर्तमान में दिवाला और दिवालियापन संहिता के माध्यम से 10.2 लाख करोड़ रुपये और माफ करने की प्रक्रिया चला रही है.

केंद्रीय बजट 2024-25 के 48.25 लाख करोड़ रुपयों में से केवल 1,51,851 करोड़ रुपये या मात्र 3.15% ही कृषि और संबद्ध क्षेत्र के लिए आबंटित किया गया पॉप है. पिछले बजटों के दौरान इस क्षेत्र का हिस्सा वर्ष 2019-20 में 5.44% था, जो 2020-21 में घटकर 5.08%, 2021-22 में 4.26% और 2022-23 में 3.23% हो गया है.

बजट में बीज, खाद, मशीनरी, स्पेयर पार्ट्स और ट्रैक्टर सहित कृषि इनपुट पर जीएसटी को निरस्त नहीं किया गया है, जिससे किसानों को उत्पादन की लागत कम करने में मदद मिल सकती थी. यह मोदी सरकार का उस महत्वपूर्ण क्षेत्र के प्रति रवैया है, जो 45.76% कार्यबल और 58% आबादी को सहारा देता है. एसकेएम ने केंद्रीय बजट में पर्याप्त हिस्सेदारी के साथ कृषि और ग्रामीण विकास के लिए अलग बजट की मांग की है.

पीएमएफबीवाई और एनडीआरएफ जैसी असफल योजनाओं को सार्वजनिक क्षेत्र में बीमा योजना के साथ बदलने तथा किसानों को ब्याज मुक्त ऋण प्रदान करने की सबसे महत्वपूर्ण मांगों को बजट में नजरअंदाज कर दिया गया है. तापमान में वैश्विक वृद्धि (ग्लोबल वार्मिंग) के कारण प्राकृतिक आपदाओं में वृद्धि हो रही है, इसके बावजूद 9.3 करोड़ में से 1 करोड़ भूमिधारी किसानों को प्राकृतिक खेती में ले जाने का निर्णय कृषि उत्पादन बढ़ाने के लिए हानिकारक है और इससे खाद्य संकट पैदा होगा. उर्वरक सब्सिडी में कटौती ने उत्पादन की लागत बढ़ा दी है और यह देश की खाद्य सुरक्षा को नुकसान पहुंचाएगा और भविष्य में श्रीलंका जैसे देशों के सामने आने वाली भारी सामाजिक आपदा जैसा रास्ता तैयार करेगा.

कृषि में भूमि और फसलों के पंजीकरण के लिए डिजिटल सार्वजनिक अधोसंरचना (डीपीआइ) और राष्ट्रीय सहयोग नीति की घोषणा का उद्देश्य राज्य सरकारों के अधिकारों का अतिक्रमण करना है, क्योंकि भारत के संविधान के अनुसार कृषि, भूमि और सहकारिता राज्य के विषय हैं. एसकेएम राज्य के विषय के रूप में सहकारिता के संवैधानिक प्रावधान को बनाए रखने के पक्ष में है और 2019 में गठित केंद्रीय सहकारिता मंत्रालय को समाप्त करने की पुरजोर मांग करता है.

बजट का दीर्घकालिक उद्देश्य कॉरपोरेट्स और बहुराष्ट्रीय कंपनियों के सीधे नियंत्रण में अनुबंध तैयार करने को बढ़ावा देना है. आईसीएआर ने बेयर और सिजेंटा सहित बहुराष्ट्रीय कंपनियों के साथ समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं. कृषि व्यवसाय, अनुसंधान एवं विकास क्षेत्र में काम करने वाले निजी क्षेत्र को वित्त मंत्री द्वारा अनुसंधान एवं विकास को बढ़ावा देने के लिए धन मुहैया कराने की घोषणा, काले कृषि कानूनों को पीछे के दरवाजे से लागू करने के प्रयासों का हिस्सा है.

एसकेएम ने केंद्र सरकार से जीएसटी अधिनियम में संशोधन करने और राज्य सरकारों के कराधान के अधिकार को बहाल करने की मांग की थी, जिससे ‘मजबूत राज्य: मजबूत भारत’ का सिद्धांत का पालन हो सके. कराधान के लिए राज्यों के अधिकार को नकारना और फिर राज्यों को आबंटन का हिस्सा तय करने में भेदभाव करना राजनीतिक चिंता का गंभीर विषय बन गया है.

भाजपा और एनडीए धन की कमी से जूझ रहे राज्यों को एक-दूसरे के खिलाफ खड़ा कर रहे हैं और सत्ता में बने रहने के लिए कुछ राज्यों को अतार्किक आवंटन के साथ खुश कर रहे हैं, जो विनाशकारी और खतरनाक है. यह भविष्य में राष्ट्रीय एकता और भारत का निर्माण करने वाली विभिन्न राष्ट्रीयताओं की विविधता का सम्मान करते हुए संघीय ढांचे में बने रहने की एकजुटता को नुकसान पहुंचाएगा. एसकेएम सभी राज्य सरकारों और सभी राजनीतिक दलों से इस गंभीर मुद्दे पर स्पष्टता के साथ मोदी सरकार के खिलाफ लामबंद होने की अपील करती है. आम जनता और देश के हितों की रक्षा के लिए सत्ता के केंद्रीकरण करने की नीति में रोक लगनी चाहिए, ताकि राज्यों के कराधान अधिकारों को सुनिश्चित किया जा सके.

असंगठित क्षेत्र में 90% मजदूर काम करते हैं, लेकिन इन मजदूरों के लिए 26000 रुपये प्रति माह न्यूनतम वेतन की कोई घोषणा नहीं है, सार्वजनिक क्षेत्र के साथ-साथ सरकारी क्षेत्र में मौजूदा 30 लाख से अधिक रिक्तियों में कोई भर्ती की कोई योजना नहीं है और न ही मनरेगा में न्यूनतम 600 रुपये प्रति दिन की मजदूरी और 200 दिनों का काम देने की घोषणा है.

वास्तव में, मनरेगा के लिए आबंटन को दोगुना करने के बजाय इसे कम कर दिया गया है. वाटरशेड प्लानिंग और कृषि विकास के साथ मनरेगा को जोड़ने की मांग की भी उपेक्षा की गई है. न्यूनतम समर्थन मूल्य और मनरेगा पर गलत नीति से पता चलता है कि मोदी सरकार में किसानों की आत्महत्या, संकटपूर्ण पलायन और बेरोजगारी के गंभीर संकट को समाप्त करने के लिए कृषि और लघु उत्पादन को पुनर्जीवित करने की कोई ईमानदारी नहीं है.

एसकेएम ने वन्य जीवन के खतरे के कारण फसल और जीवन के नुकसान के गंभीर मुद्दे के बारे में अपने बजट भाषण में वित्त मंत्री की चुप्पी की कड़ी निंदा की. गन्ना किसानों का बकाया भुगतान, मूल्य स्थिरीकरण कोष की घोषणा तथा रबर किसानों के लिए 250 रुपये प्रति किलो का समर्थन मूल्य, सेब पर 100% आयात शुल्क, प्याज, आलू तथा सब्जी किसानों के लिए बाजार संरक्षण, नरेगा को डेयरी तथा पशुपालन क्षेत्र में विस्तारित करना, मवेशियों के लिए बाजार मूल्य तथा फसलों और मानव जीवन के लिए आवारा पशुओं के खतरे को समाप्त करना आदि फसलवार मांगों को भी बजट में संबोधित नहीं किया गया है.

एसकेएम शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार तथा मूल्य नियंत्रण पर बजट के नकारात्मक रवैये की कड़ी निंदा करता है. सरकार 4 श्रम संहिताओं को निरस्त करने तथा पुरानी पेंशन योजना को पुनः लागू करने के लिए तैयार नहीं है. कौशल विकास तथा निजी क्षेत्र में एक महीने का वेतन जैसी योजनाएं अपर्याप्त हैं तथा देश के युवाओं के सामने खड़ी बेरोजगारी की समस्या की गंभीरता को संबोधित नहीं करती. ऐसी योजनाएं केवल केंद्र सरकार द्वारा बेरोजगारी की तीखी समस्या के समाधान के काम से मुंह मोड़ने को दर्शाती हैं.

एसकेएम किसानों, मजदूरों, महिलाओं, युवाओं, छात्रों आदि सभी तबकों से व्यापक एकता बनाने की अपील करती है, क्योंकि यह समय की मांग है और सभी लोगों को एकजुट होकर संघर्ष करना होगा, ताकि कॉर्पोरेटपरस्त नीतियों को बदलने और लोगों के हितों की रक्षा करने के लिए मोदी सरकार को सत्ता से बाहर किया जा सके.

एसकेएम पूरे भारत के किसानों से अपील करती है कि वे व्यापक अभियान चलाएं और पूरे देश में गांव-गांव में विरोध प्रदर्शन करें और इस जनविरोधी, कॉरपोरेटपरस्त बजट की प्रतियां जलाएं. अभियान और विरोध के तरीके और तारीख का विवरण एसकेएम की संबंधित राज्य समन्वय समितियों द्वारा तय किया जाएगा.

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