टीएमसी नेता महुआ मोइत्रा को लोकसभा की सदस्यता से निष्कासित कर दिया गया है। उन पर आरोप लगा था कि उन्होंने संसद वाली ‘लॉग-इन आईडी’ और पासवर्ड, किसी दूसरे व्यक्ति से साझा किया था। संसद की कार्यप्रणाली के जानकारों की मानें, तो इस संबंध में जो कानून है, वह लचीला भी है और कठोर भी है। इसमें स्व:विवेक की एक बड़ी भूमिका है। भले ही किसी सांसद ने ‘लॉग-इन आईडी’ और पासवर्ड को लेकर, जिम्मेदार अथॉरिटी को कोई शपथ पत्र नहीं दिया है, कोई अंडरटेकिंग भी नहीं दी है। इसके बावजूद, सांसदों को ‘लॉग-इन आईडी’ और पासवर्ड की गोपनीयता बरकरार रखनी होती है। वजह, जिम्मेदार अथॉरिटी द्वारा उन्हें इस बाबत लिखित तौर पर सूचित किया जाता है। संसद में अगर ‘लॉग-इन आईडी’ के इधर-उधर होने की बात है, तो कई सांसद ‘महुआ मोइत्रा’ की कतार में खड़े मिल जाएंगे। वजह, बहुत से सांसद ‘लॉग-इन आईडी’ के लिए निजी सहायक या किसी अन्य व्यक्ति की मदद लेते हैं।
लोकसभा के पूर्व सेक्रेटरी जनरल, पीडीटी आचार्य भी कह चुके हैं, संविधान के अनुच्छेद 20 में स्पष्ट है कि किसी व्यक्ति को तब तक सजा नहीं दी जा सकती, जब तक उसने तत्कालीन किसी कानून के तहत कोई अपराध न किया हो। टीएमसी सांसद पर ‘लॉग-इन आईडी’ और पासवर्ड शेयर करने का आरोप लगा था। लोकसभा के नियमों में इस बाबत कुछ स्पष्ट नहीं लिखा है…
‘पासवर्ड’ किसी के साथ साझा नहीं होगा
लोकसभा के पूर्व महासचिव और संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप के साथ संसद भवन में कई वर्षों तक काम कर चुके दिल्ली विधानसभा के पूर्व सचिव एसके शर्मा ने बताया, पहले सांसदों द्वारा अगर कोई सवाल पूछना होता था, तो वे लिखकर देते थे। अब ऑनलाइन सवाल भेजने की व्यवस्था हो गई है। यहां पर हर सांसद से यह उम्मीद की जाती है, तो वह अपना ‘पासवर्ड’ किसी के साथ साझा नहीं करेगा। वह पर्सनल होता है। ऐसी सुविधा, सांसदों को मुहैया कराई गई है। संसद सदस्य को अपना कोड नंबर, सीक्रेट रखना होता है। कई सांसद इस संबंध में खुद ही अंडर टेकिंग दे देते हैं कि वह उक्त नियमों का पालन करेगा। यानी गोपनीयता बनाए रखेगा। पावर ग्रुप या लॉबी तो हर देश में होते हैं। कई संगठन, अपने हितों के लिए सांसदों के माध्यम से संसद में अपना पक्ष रखवाते हैं। मौजूदा समय में कई ऐसी बातें हो चली हैं, जिन्हें सार्वजनिक करना ठीक नहीं होगा। बिजनेस हाउसेज और संसद सदस्यों के बीच संबंध तो रहते ही हैं।
भरोसे के व्यक्ति से अकाउंट खुलवा लेते हैं
संसद में कमेटी की रिपोर्ट हो या कोई सवाल, वह सदन के पटल पर आने से पहले पूरी तरह गोपनीय रहे, सांसदों से ऐसी उम्मीद की जाती है। यह संसद का एक नियम भी है। महुआ मोइत्रा ने खुद यह बात स्वीकार की है कि उन्होंने ‘लॉग-इन आईडी’ और पासवर्ड, शेयर किया है। संभव है कि ऐसा कई दूसरे सांसद भी कर रहे हों। ये भी कहा जा सकता है कि कई सांसदों को आईटी की उतनी जानकारी न हो। ऐसे में वे अपने निजी सहायक या भरोसे के व्यक्ति से अपना अकाउंट खोल लेते हैं। चाहे वे अपनी आंखों के सामने ही ऐसा करते हों, मगर जब ऑनलाइन तरीके से सवाल भेजना हो तो ऐसी परिस्थितियों का होना, सामान्य बात है। किसी को पासवर्ड बताना, यह सांसदों को अपने जोखिम पर करना होता है। बतौर शर्मा, देखिये बहुत सी चीजों के नियम नहीं होते। इसे यूं भी कह सकते हैं कि हर बात का कोई नियम नहीं होता। सांसदों को जब ‘लॉग-इन आईडी’ और पासवर्ड दिया जाता है, तो उसमें लिखकर बताया जाता है कि ये आपका कोड नंबर है। इसे सीक्रेट रखना होगा। ये खुद समझने वाली बात है। इसके लिए जरूरी नहीं है कि शपथ पत्र ही लिया जाए। जब सांसद को उक्त नियमों के बारे में बताया जाता है तो एक तरह से यह उनकी अंडर टेकिंग ही होती है। ये जरुरी नहीं है कि इस बाबत लिखकर ही दिया जाए।
लोकसभा के नियमों में कुछ स्पष्ट नहीं लिखा है
लोकसभा के पूर्व सेक्रेटरी जनरल, पीडीटी आचार्य भी कह चुके हैं, संविधान के अनुच्छेद 20 में स्पष्ट है कि किसी व्यक्ति को तब तक सजा नहीं दी जा सकती, जब तक उसने तत्कालीन किसी कानून के तहत कोई अपराध न किया हो। टीएमसी सांसद पर ‘लॉग-इन आईडी’ और पासवर्ड शेयर करने का आरोप लगा था। लोकसभा के नियमों में इस बाबत कुछ स्पष्ट नहीं लिखा है। अगर किसी सांसद ने पासवर्ड अपने भरोसे के व्यक्ति के साथ साझा किया है, तो वह एक अपराध हो जाएगा, ऐसा उल्लेख तो कहीं नहीं है।
महुआ मोइत्रा के मामले में इसी अपराध पर कार्रवाई हो गई है। जब इस संबंध में कोई स्पष्ट कानून नहीं है, तो उसकी अवहेलना पर कार्रवाई कैसे हो सकती है। हां, पैसे लेकर सवाल पूछना, ऐसे मामले की जांच के लिए विशेषाधिकार कमेटी के पास पर्याप्त अधिकार हैं। इसे विशेषाधिकारों का उल्लंघन माना जाता है। संसद में विशेषाधिकार कमेटी और एथिक्स कमेटी होती हैं। ये कमेटी यह भी देखती हैं कि किसी सांसद ने सदन की मर्यादा तो नहीं तोड़ी है। संसद की गरिमा को ठेस तो नहीं पहुंचाई है। सदन में कोई दुर्व्यवहार तो नहीं हुआ है। ऐसे मामलों में निष्पक्षता से कार्रवाई होती है। संबंधित पक्ष को अपनी बात रखने का पूरा मौका दिया जाता है।
प्रत्यक्ष सवाल-जवाब नहीं करने दिए गए
लोकसभा की सदस्यता से निष्कासित किए जाने के बाद महुआ मोइत्रा ने कहा था, उनके साथ न्याय नहीं हुआ है। वजह, इस प्रक्रिया को ठीक से अंजाम नहीं दिया गया। उन्हें दर्शन हीरानंदानी से सवाल-जवाब नहीं करने दिए गए। जब उन पर दर्शन हीरानंदानी से रिश्वत लेने के आरोप लगे हैं, तो उनके साथ प्रत्यक्ष सवाल जवाब तो होने ही चाहिए थे। जिन्होंने आरोप लगाया, यानी अनंद देहाद्रई से भी सवाल-जवाब नहीं करने दिए गए। झारखंड के गोड्डा से भाजपा सांसद निशिकांत दुबे ने इस मामले का खुलासा किया था। उन्होंने आरोप लगाया था कि महुआ मोइत्रा के संसद वाला अकाउंट में दुबई से लॉगिन होता था। कुछ पैसे के लिए एक सांसद ने देश की सुरक्षा को गिरवी रख दिया। दुबई से उस वक्त संसद की आईडी खोली गई, जब महुआ मोइत्रा भारत में ही थीं। मोइत्रा का कहना था कि दो शिकायतकर्ताओं में से एक मेरा पूर्व प्रेमी था। वह गलत इरादे से आचार समिति के सामने एक आम नागरिक बनकर पेश हुआ था। यह निष्कर्ष पूरी तरह से दो निजी नागरिकों की लिखित गवाही पर आधारित है। मुझे दोनों में से किसी से भी जिरह करने की अनुमति नहीं दी गई।
सवाल पूछने के दो तरीके होते हैं
सांसदों द्वारा सवाल पूछने के दो तरीके होते हैं। मैनुअल तरीके में संसद के नोटिस ऑफिस से फॉर्म लेना होता है। उसमें सवाल लिखकर देना होता है। सवाल में 150 से अधिक शब्द नहीं होने चाहिए। लोकसभा स्पीकर यह निर्णय लेते हैं कि सदन में कौन से सवाल जाएंगे और कौन से नहीं। दूसरा तरीका ऑनलाइन है। आजकल सांसदों को ‘लॉग-इन आईडी’ और पासवर्ड मुहैया कराया गया है। वे इसके जरिए अपना सवाल भेज सकते हैं। ‘रूल्स ऑफ प्रोसीजर एंड कंडक्ट ऑफ बिजनेस इन लोकसभा’ के नियम 32-54 के तहत और ‘डायरेक्शन बाय स्पीकर, लोकसभा’ के दिशानिर्देश 10-18 के अंतर्गत भी लोकसभा में सवाल पूछा जा सकता है। इसके लिए सबसे पहले लोकसभा के सेक्रेटरी जनरल को नोटिस देना होता है। इसमें सवाल लिखा रहता है और साथ उस विभाग के मंत्री का नाम भी लिखा जाता है। सवाल का जवाब कब मिलेगा, यह भी लिखा रहता है। अगर एक ही दिन में कोई सांसद एक या उससे ज्यादा प्रश्न पूछ रहा है तो उन्हें ‘ऑर्डर ऑफ प्रेफरेंस’ के बारे में बताना होता है। मौखिक या लिखित रूप से जवाब के लिए कोई सांसद एक दिन में अधिकतम पांच सवाल पूछ सकता है। लोकसभा में प्रश्नकाल में दौरान सवालों का जवाब दिया जाता है। सवाल पूछने के लिए जो नोटिस दिया जाता है, उसकी अवधि सामान्यतः 15 दिन से कम नहीं होना चाहिए।