अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

समाजवादी दुनिया की बात 

Share

प्रेमकुमार मणि

कुछ रोज पहले मित्र गंगा प्रसाद जी ने वाणी मंजरी दास जी की आत्मकथा ‘ ख़ामोशी तोड़ते वे दिन ‘ भिजवाई ,जिसे मिलते ही पढ़ गया . उसी रोज भाई शिवानंद जी को फ़ोन किया तब पता चला किताब उन्हें भी मिल गई है . फिर हमलोग देर तक समाजवादी दुनिया पर बात करते रहे ,जिसमें लोहिया जी से लेकर किशन पटनायक और उनकी पूरी दुनिया थी . पटना में अब शिवानंद जी और उमेश जी ही रह गए हैं ,जिनसे समाजवादी दुनिया पर बात की जा सकती है . पत्रकार सुरेंद्र किशोर जी के पास भी कहने को बहुत कुछ हो सकता है. लेकिन दुर्भाग्य से अब उनकी चिंताएं दूसरी हैं. इसके अलावे समाजवादी दुनिया पर बात करने वाले इस शहर में मुश्किल से मिलेंगे .

स्त्री होने का दुख–सुख - समता मार्ग

वाणी जी समाजवादी चिंतक नेता किशन पटनायक की पत्नी हैं . 2004 में किशन जी के दिवंगत होने के बाद वह अकेली रह गई हैं और अपना समय पढ़ने -लिखने और समाजवादी विचारों के संभव प्रसार में लगाती हैं . उनकी आत्मकथा से मैं थोड़ा उत्साहित हुआ कि कुछ दुर्लभ चीजें जानने को मिलेंगी . यही कारण था कि किताब मिलते ही पढ़ गया.

कुल जमा डेढ़ सौ पृष्ठों की इस किताब का संपादन पत्रकार मित्र गंगा प्रसाद जी ने किया है . मुजफ्फरपुर के अच्युतानंद किशोर नवीन जी ने भूमिका लिखी है . गंगा प्रसाद जी के सम्पादकीय का शीर्षक है ‘ असुंदर सुन्दर ‘ . यह यदि इस किताब का नाम होता तो और अच्छी बात होती.

वाणी जी ओडिसा के एक कायस्थ परिवार में जन्मीं और पली-बढ़ीं . पिता छोटे सी सरकारी नौकरी में थे. विवाह बचपन में ही होने को था ,लेकिन एक अपशकुन हो गया . विवाह की जो वेदी बनी थी ,उस पर इनकी चाची से राख गिर गया . इसे अपशकुन माना गया और फिर विवाह की सारी उम्मीदें सदा सदा केलिए समाप्त हो गईं. यहां तक कि घर -समाज में रहना मुश्किल हो गया. इसके बाद वाणी जी का जीवन, संघर्षों का एक सिलसिला बन गया . अंततः वह संगीत शिक्षक बनीं. वह समाजवादी आंदोलन से लगातार जुडी रहीं. किशन जी से 11 जून 1969 को स्पेशल मैरिज एक्ट के तहत विवाह किया .
आत्मकथा में वाणी जी का जीवन संघर्ष तो है ही ; समाजवादी आंदोलन की भी दुर्लभ जानकारियां हैं . दिन रात नर -नारी समता की बात करने वाले सोशलिस्ट लोग स्त्रियों के प्रति हिकारत की नजर रखते थे . सहजीवन और स्त्री -पुरुष मैत्री को सहज रूप में नहीं स्वीकार किया जाता था . लोहिया जी की महिला मित्र रमा जी के प्रति भी सोशलिस्ट साथी अभद्र टिप्पणियां करते थे . उन्हें लोहिया जी की रखैल कहा जाता था. वाणी जी के बारे में भी ऐसी ही टिप्पणियां होती थी . यह समाजवादियों का आतंरिक संसार था . रमा जी काफी पढ़ी -लिखी महिला थी और दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रतिष्ठित मिरांडा कॉलेज में प्रोफ़ेसर थीं . लेकिन समाजवादी ” वानर सेना ” जो गाँव -कस्बों से आती थी ,उनके अपने संस्कार होते थे . उनका अपना मन मिजाज होता था . भाषण वे चाहे जो दे लें अपने संस्कारों में वे महिलाओं के प्रति सामंती नजरिया ही पालते थे.

इसी किताब से मालूम हुआ कि 1985 में रमा जी की मृत्यु अत्यंत कारुणिक स्थितियों में हुई. वह अपनी चिकित्सा केलिए अकेली निकलीं . टैक्सी लिया . लेकिन अस्पताल जाने के रास्ते में ही दम तोड़ दिया. टैक्सी वाला टैक्सी लौटा कर उस स्थान पर लाया जहाँ से उन्होंने टैक्सी पकड़ी थी. फिर किसी तरह उनकी पहचान हुई . लावारिस रूप में उनकी अंत्येष्टि की गई. लोहिया की विरासत पालने वाले पता नहीं इस घटना से अवगत हैं या नहीं .

सामाजिक -राजनीतिक कार्यकर्ताओं को इस किताब को पढ़ना चाहिए. इससे उन्हें समाजवादी आंदोलन का वह इतिहास मालूम होगा ,जो दूसरी किताबों में अनुपलब्ध है . इसके लिखने के लिए वाणी जी और संपादन केलिए भाई गंगा प्रसाद जी का धन्यवाद करना चाहूंगा.

ख़ामोशी तोड़ते वे दिन
वाणी मंजरी दास
सम्पादन -गंगा प्रसाद
दाम -दो सौ रुपए
सूत्रधार प्रकाशन ,कांचरापाड़ा 743145
उत्तर 24 परगना ( पश्चिम बंगाल )
मोबाइल 9748891717

उमेशप्रसाद सिंह

Recent posts

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें