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PK की एंट्री और भाजपा से मुकाबले की रणनीति में दिग्विजय शामिल, अहम फैसलों में राय ले रहीं सोनिया

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नई दिल्ली

5 राज्यों के विधानसभा चुनाव में करारी हार के बाद कांग्रेस हाईकमान पार्टी में बड़े फेरबदल की तैयारी में जुटा है। पार्टी में चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर की एंट्री को लेकर सोनिया गांधी के आवास 10 जनपथ पर पिछले एक हफ्ते से बैठक हो रही है। इस मीटिंग में सोनिया और प्रियंका गांधी समेत कई नेता शामिल हैं। दिग्विजय सिंह को भी सोनिया ने इस मीटिंग में बुलाया है।

2017 के बाद दिग्गी की 10 जनपथ में वापसी को लेकर सियासी गलियारों में चर्चा शुरू हो गई है। दरअसल, पूरे पांच साल बाद दिग्विजय कांग्रेस के किसी बड़े फैसले में शामिल हो रहे हैं। दिग्गी की वापसी की वजह और इसके क्या मायने हैं, आइए इसे विस्तार से समझते हैं…

2017 में महासचिव पद से दिया था इस्तीफा
2017 में गोवा के प्रभारी रहते हुए कांग्रेस की सरकार न बना पाने के बाद दिग्विजय सिंह ने कांग्रेस महासचिव पद से इस्तीफा दे दिया था। इस्तीफे के बाद से ही दिग्विजय कांग्रेस के किसी बड़े फैसले में शामिल नहीं रहे। वे इसके बाद से ही मध्य प्रदेश की पॉलिटिक्स में सक्रिय थे, जहां 2018 में कांग्रेस की सरकार बनी थी।

10 जनपथ में दिग्गी की वापसी क्यों हुई?
दिग्विजय 1993 से लेकर 2003 तक मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। इस दौरान 1999 तक मध्य प्रदेश में छत्तीसगढ़ भी शामिल था। ऐसे में इन दोनों राज्यों में दिग्विजय सिंह की संगठन में मजबूत पकड़ है।

प्रशांत किशोर के प्रेजेंटेशन मीटिंग में शामिल होने 10 जनपथ पहुंचे दिग्विजय सिंह और जयराम रमेश।

प्रशांत किशोर के प्रेजेंटेशन मीटिंग में शामिल होने 10 जनपथ पहुंचे दिग्विजय सिंह और जयराम रमेश।

इसके अलावा दिग्विजय यूपी, बिहार, कर्नाटक, आंध्र, तेलंगाना और असम जैसे राज्यों के कांग्रेस प्रभारी रह चुके हैं। इन राज्यों में लोकसभा की करीब 250 सीटें हैं, जिसके सियासी गणित से दिग्विजय सिंह वाकिफ है। ऐसे में पस्त पड़ी कांग्रेस को उम्मीद है कि दिग्गी की संगठनात्मक पकड़ का फायदा अगले चुनाव में कांग्रेस को मिल सकता है।

  • दिग्विजय सिंह सड़क से लेकर सोशल मीडिया तक पर भाजपा सरकार पर लगातार हमलावर रहते हैं। हिंदुत्व से लेकर सरकार के वादों पर सवाल उठाते रहते हैं।
  • दिग्गी को संगठन और सरकार दोनों में काम करने का अनुभव है। वे मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री के साथ पार्टी में राष्ट्रीय महासचिव और प्रदेश अध्यक्ष भी रह चुके हैं।
  • UPA-2 की सरकार में संकटमोचक की भूमिका निभा चुके हैं। जब भी पार्टी संकट में फंसती थी, दिग्विजय सिंह विवादित बयान देकर मुद्दे को मोड़ देते थे।
  • अहमद पटेल के निधन और G-23 गुट बनने के बाद कांग्रेस हाईकमान के पास पुराने और भरोसेमंद नेताओं की कमी है। इसका फायदा दिग्विजय सिंह को मिला है।

विवादित बयान देकर अक्सर सुर्खियों में रहते हैं दिग्गी राजा
दिग्विजय सिंह अपने काम से ज्यादा विवादित बयानों की वजह से सुर्खियों में रहते हैं। UPA-2 सरकार के दौरान उनके दिए विवादित बयान की वजह से कई बार पार्टी बैकफुट पर भी आई। एक इंटरव्यू में दिग्विजय सिंह ने कहा था कि मैंने जो भी काम किए और जो भी बयान दिए, वो हाईकमान के कहने पर दिए। हालांकि दिग्विजय के निजी बयान बताकर हाईकमान इनसे पल्ला भी झाड़ता रहा। दिग्विजय सिंह के विवादित बयानों के बारे में जानिए…

हिंदू आतंकवाद पर: दिग्विजय सिंह ने 2016 में कहा था कि हिंदुत्व कोई शब्द नहीं है और न ही मैं हिंदुत्व को मानता हूं। दिग्विजय ने एक अन्य बयान में हिंदू आतंकवाद का जिक्र किया था। हालांकि विरोध के बाद उन्होंने कहा था- मैंने हिंदू आतंकवाद नहीं, संघ आतंकवाद कहा था।

आतंकी को ओसामाजी कहा: दिग्विजय सिंह ने आतंकवादी ओसामा बिन लादेन की हत्या के बाद उसके शव को समंदर में फेंके जाने पर सवाल उठाया था। दिग्गी राजा ने इस दौरान लादेन को ओसामाजी कहकर संबोधित किया था। इस पर काफी विवाद हुआ था।

दिग्विजय के विवादित बयानों की वजह से पार्टी कई बार बैकफुट पर आ चुकी है। हालांकि विवादित बयान देने की वजह से उन पर कभी कार्रवाई नहीं हुई।

दिग्विजय के विवादित बयानों की वजह से पार्टी कई बार बैकफुट पर आ चुकी है। हालांकि विवादित बयान देने की वजह से उन पर कभी कार्रवाई नहीं हुई।

100 टका टंच माल: दिग्विजय सिंह ने अपने ही पार्टी की नेता मीनाक्षी नटराजन को एक मंच से 100 टका टंच माल कह दिया था। उनके इस बयान पर काफी हंगामा हुआ। हालांकि बाद में वे इस पर सफाई देते रहे।

बाटला हाउस एनकाउंटर: अपनी ही सरकार में हुए बाटला हाउस एनकाउंटर का मुद्दा भी दिग्विजय ने जोर-शोर से उठाया था। दिग्गी राजा ने इस एनकाउंटर को फर्जी बताया था।

दिग्गी की 10 जनपथ में वापसी के मायने क्या हैं?
5 साल बाद 10 जनपथ में दिग्विजय सिंह की वापसी के सवाल पर वरिष्ठ पत्रकार निर्मल पाठक कहते हैं, इसे दो तरीके से देखिए।

पहला, टीम राहुल की लगातार आलोचना के बाद फिर से टीम सोनिया सक्रिय हो गई है। ऐसे में उन्होंने अपने पुराने वफादार नेताओं से सलाह-मशविरा करना शुरू कर दिया है। इसी कड़ी में दिग्विजय सिंह की कांग्रेस में वापसी हुई है।

दूसरा, दिग्विजय सिंह के पास संगठन और सत्ता का बेहतर अनुभव है। हालांकि विवादित बयानों की वजह से उनके बारे में पॉलिटिकल परसेप्शन खराब हो गया था, जिस वजह से हाईकमान उन्हें फ्रंटफुट पर नहीं ला रहा था। पिछले कुछ साल में उन्होंने धारणाओं को बदलने का काम किया है। उसका फायदा उन्हें मिला है।

सन्नाटे में गए दिग्गी ने कैसे की वापसी?
दिग्विजय सिंह ने लगातार आलोचना के बाद 2017 में कांग्रेस महासचिव पद से इस्तीफा दे दिया था। इसके बाद दिग्गी पॉलिटिकल सन्नाटे में चले गए, लेकिन उन्होंने 2018 की शुरुआत में नर्मदा यात्रा निकालकर फिर से कांग्रेस संगठन में पकड़ बनाने की कोशिश शुरू कर दी, उसमें वे सफल भी रहे। इस यात्रा के बाद कांग्रेस ने उन्हें मध्य प्रदेश में कॉऑर्डिनेशन का जिम्मा सौंपा। 2018 में एमपी में सरकार बनी, तो इसका भी क्रेडिट दिग्विजय सिंह को ही मिला।

दिग्विजय सिंह ने 2018 में नर्मदा यात्रा शुरू की थी। इस यात्रा में करीब 6 महीने तक उन्होंने नर्मदा नदी की परिक्रमा की।

दिग्विजय सिंह ने 2018 में नर्मदा यात्रा शुरू की थी। इस यात्रा में करीब 6 महीने तक उन्होंने नर्मदा नदी की परिक्रमा की।

पत्रकार निर्मल पाठक कहते हैं- नर्मदा यात्रा से दिग्विजय सिंह अपने बारे में बनी धारणा को बदलने में कामयाब रहे। पॉलिटिक्स में परसेप्शन का बड़ा खेल होता है। विपक्ष दिग्विजय को बंटाधार नेता बताकर प्रचारित करता था।

पॉलिटिक्स में एंट्री के 24 साल बाद ही दिग्विजय सिंह मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बन गए।

दिग्विजय सिंह का राजनीतिक करियर
मध्य प्रदेश के राजगढ़ जिले की राघोगढ़ रियासत के राजा दिग्विजय सिंह ने राजनीति में औपचारिक एंट्री साल 1969 में की थी। तब राघोगढ़ नगरपालिका का चुनाव जीतकर वे उसके अध्यक्ष बने थे। दिग्गी पहली बार 1977 में कांग्रेस के टिकट पर विधायक बने। 1980 में अर्जुन सिंह की सरकार में वे कैबिनेट मंत्री बने। 1984 में लोकसभा चुनाव में दिग्गी राजगढ़ सीट से जीतकर लोकसभा पहुंचे।

1993 में कांग्रेस की मध्य प्रदेश की सत्ता में वापसी के बाद दिग्विजय सिंह को मुख्यमंत्री बनाया गया। 2003 में करारी हार के बाद दिग्विजय सिंह ने 10 साल तक कोई भी सरकारी पद नहीं लेने का ऐलान किया था। कांग्रेस ने 2008 में दिग्विजय सिंह को पार्टी में राष्ट्रीय महासचिव बनाया था, जिस पर वे 2017 तक पद पर बने रहे।

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