पुष्पा गुप्ता
_सबसे पहले गैलीलियो ने बताया था कि पृथ्वी सूर्य के चारों ओर चक्कर लगाती है. इसे चर्च ने अपनी धार्मिक पुस्तकों का अपमान माना। उसके बाद 22 जून, 1633 को गैलीलियो को धर्मद्रोही ठहराकर नजरबंद कर दिया गया। उसी नजरबंदी के दौरान ही 8 जनवरी, 1642 को उसकी मृत्यु घोषित की गई।_
इस घटना के करीब 350 वर्ष बाद 31 अक्टूबर, 1992 को चर्च ने गैलीलियो को दंडित करना अपनी गलती माना और कहा कि गैलीलियो का सिद्धांत सही था।
यानी एक सच को स्वीकार करने में ईसाई समाज को 350 साल लग गए। इतनी लंबी समयावधि में गैलीलियो के अपराधियों में से किसी एक ईसाई धर्मगुरु के भीतर सत्य और न्याय को लेकर सदाशयता का अंकुरण नहीं हुआ। यह वैचारिक रूप से विकलांग बन गये एक समाज का उदाहरण है।
दरअसल, दुनियाभर में धर्म को पाखंडियों ने ब्रांड बनाकर धंधा चालू कर दिया जिससे जुड़े समस्त विचार और गतिविधियां व्यावसायिक लाभ-हानि पर आधारित होती हैं।
_हमारे देश में इस्राइल से आये यहूदियों ने चितपावन ब्राह्मण बनकर सनातन धर्म को अपने हित-लाभ के लिए ‘हिंदुत्व’ के रूप में नये सिरे से पारिभाषित कर विभाजित कर दिया। फलस्वरूप आज एक तरफ समाज का एक हिस्सा अपने सनातन धर्म को भूलकर सावरकर-गोलवलकर की असहिष्णु और आतंकवादी विचारधारा वाला रासस द्वारा तैयार किया गया हिंदू है और दूसरी ओर परंपरागत सनातन संस्कृति को मानने वाले लोग हैं।_
यह विभाजन इस स्तर तक पहुंच गया है कि भाई-भाई के बीच लकीरें खिंच गई हैं। रासस की भरसक कोशिश है कि लोग सत्य से दूर रहकर वह सब स्वीकार कर लें जो वह कहता है। यानी पौराणिक कथाएं ही सच और इतिहास हैं।
अर्थात वह लोगों को कूपमंडूक बनाये रखना चाहता है क्योंकि उसका अपना हित-लाभ इसी में है।
_इसीलिए रासस के प्रचार-तंत्र से प्रभावित लोग तार्किक और सत्य को सामने लाने की हर कोशिश आज धर्मद्रोही बता देते हैं।_
गैलीलियो से पहले ब्रूनो, सुकरात और ईसा मसीह को तथाकथित धर्म के विरुद्ध आवाज उठाने के लिए मृत्युदंड दिया गया था। भारत में भी आज बिल्कुल वैसा ही वातावरण बना दिया गया है।
यहां तक कि देश के सुप्रीम कोर्ट ने तमाम तथ्यों को दरकिनार कर केवल बहुसंख्यक समाज की भावनाओं को ध्यान में रखते हुए अयोध्या के मंदिर मामले में ब्रूनो, सुकरात, ईसा मसीह और गैलीलियो गैलीली के मामलों की तरह आदेश (निर्णय नहीं, बल्कि आदेश) दिया।
धर्म की गलत व्याख्या कर उसे अपने हित-लाभ के लिए इस्तेमाल करने वाले चालाक लोग समाज को गुमराह करते हैं जिससे धार्मिक उन्माद बढ़ता है और इसके दुष्परिणाम लंबे समय तक समाज को भुगतने पड़ते हैं।
_आज जिस तरह दक्षिणपंथियों द्वारा सनातन परंपरा को विभाजित कर धर्मांधता और उग्रता फैलाई जा रही है उसके दुष्परिणाम जल्दी ही वैश्विक स्तर पर दिखाई देंगे।_