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परिसीमन विवाद पर दक्षिण के राज्यों ने बनाई अलग रणनीति. संसद से सड़क तक उठाएंगे मुद्दा

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परिसीमन विवाद को लेकर तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने शनिवार को एक बैठक बुलाई थी. इसमें इंडिया गठबंधन के नेताओं (विशेषकर द. भारत) को बुलाया गया था. बैठक में उन्होंने सात सूत्रीय प्रस्ताव पारित किया गया है. इनमें उन्होंने परिसीमन की तारीख को 25 साल टालने की अपील की है. इस समय 1971 की जनगणना के आधार पर परिसीमन निर्धारित है.

बैठक में भाग लेने वाले नेताओं ने परिसीमन की प्रक्रिया में और अधिक पारदर्शिता की मांग की है. उन्होंने जिन मांगों को सामने रखा है, वे इस तरह से हैं.

पारदर्शिता की जरूरत – बैठक में इस पर विचार किया गया कि सरकार पूरे मुद्दे पर पारदर्शिता नहीं बरत रही है. सरकार ने बहुत सारे ऐसे निर्णय लिए हैं, जिनमें सभी राज्यों की भागीदारी आवश्यक थी, खासकर वे राज्य जो प्रभावित हो रहे हैं, लेकिन उनसे विचार विमर्थ नहीं किया गया. इसलिए बेहतर होगा कि सरकार सभी राज्यों के साथ मिलकर चर्चा करे.

संविधान संशोधन पर जोर- विपक्षी दलों के नेता इस बात पर सहमत हुए कि पहले की सरकारों ने 42वां (इंदिरा सरकार), 84वां और 87वां संशोधन (वाजपेयी सरकार) इसलिए किया था, ताकि उन राज्यों के हितों की रक्षा हो सके, जिन्होंने ईमानदारी से आबादी पर नियंत्रण लगाया था.

कोई भी राज्य प्रभावित न हो– इन नेताओं का कहना है कि जिन राज्यों ने अऩुशासित तरीके से विकास किया और आबादी पर नियंत्रण लगाया, उन्हें प्रभावित न होने दिया जाए. इस समय अगर परिसीमन किया जाएगा, तो उत्तर भारत के राज्यों का प्रतिनिधित्व अधिक हो जाएगा, जबकि दक्षिण के राज्यों की सीटें या तो पहले जैसी रहेंगी, या फिर मामूली बढ़ोतरी होगी. सरकार को संवैधानिक संशोधन का सहारा लेना पड़ेगा.

संसदीय रणनीति – संसद में सभी विपक्षी दल मिलकर इस मुद्दे पर रणनीति बनाएंगे और सरकार की किसी भी जबरन कोशिश का विरोध करेंगे, इसके लिए जो भी आवश्यक होगा, सभी दल मिलकर आगे बढ़ेंगे. इस मुद्दे पर किसी भी दल के बीच कोई मत भिन्नता नहीं है.

विधानसभा प्रस्ताव– सभी राज्य यह कोशिश करेंगे कि वे अपने विधानसभा में इस संबंध में एक-एक प्रस्ताव लाएं, और उसे केंद्र सरकार के पास भेजें, ताकि सरकार एक तरफा फैसला न ले सके.

जागरूकता अभियान– जनता के बीच जागरूकता अभियान चलाया जाएगा और उन्हें बताया जाएगा कि इन राज्यों ने किस तरह से काम किया है, और यदि इस समय परिसीमन को लागू किया गया, तो दक्षिण के राज्य किस तरह से प्रतिनिधित्व के मामलों में पिछड़ सकते हैं.

संयुक्त प्रतिनिधित्व – बैठक में भाग लेने वाले नेताओं ने निर्णय लिया कि वे एक प्रतिनिधिमंडल लेकर प्रधानमंत्री से मिलेंगे और उनके सामने पूरी बात रखेंगे. उन्होंने कहा कि वे पीएम को इस बात के लिए राजी करेंगे कि परिसीमन को टाला जाए.

क्या है परिसीमन विवाद –

किसी भी राज्य की कितनी जनसंख्या है, इसके आधार पर विधायकों और सांसदों की संख्या के तय करने को परिसीमन कहा जाता है. इसका मुख्य मकसद यह है कि प्रत्येक संसदीय क्षेत्र या विधानसभा क्षेत्र के बीच समान प्रतिनिधित्व बरकरार रहे.

चुनाव आयोग की वेबसाइट पर दी गई जानकारी के मुताबिक – परिसीमन आयोग भारत में एक उच्चाधिकार निकाय है जिसके आदेशों को कानून के तहत जारी किया गया है और इन्हें किसी भी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती है. इस संबंध में ये आदेश भारत के राष्ट्रपति द्वारा निर्दिष्ट तारीख से लागू होते हैं. आदेशों की प्रतियां संबंधित लोकसभा और राज्य विधानसभा के सदन के समक्ष रखी जाती हैं, लेकिन उनमें उनके द्वारा कोई संशोधन करने की अनुमति नहीं है.

कब-कब हुआ परिसीमन

सबसे पहला परिसीमन 1950-51 में किया गया था. लेकिन उस समय बहुत कुछ निर्धारित नहीं किया गया था. इसलिए पहली जनगणना, 1951, के बाद से परिसीमन की मुख्य रूप से शुरुआत हुई. उसके बाद कोशिश की गई कि प्रत्येक जनगणना के बाद इसे लागू किया गया. इसके बावजूद राजनीति इतनी अधिक हावी हो गई, कि इसे आगे बढ़ाना मुश्किल हुआ.

पहला परिसीमन – 1951 की जनगणना के आधार पर 1952 में – लोकसभा में सीटों की संख्या – 489

दूसरा परिसीमन – 1961 की जनगणना के आधार पर 1963 में – लोकसभा में सीटों की संख्या – 522

तीसरा परिसीमन – 1971 की जनगणना के आधार पर 1973 में – लोकसभा में सीटों की संख्या – 543

1981– कोई परिसीमन नहीं

1991– कोई परिसीमन नहीं

चौथा परिसीमन – 2001 की जनगणना के आधार पर 2002 में- हालांकि, इस परिसीमन का गठन नहीं किया जा सका.

इंदिरा गांधी ने 1976 में एक संशोधन पारित किया था, जिसके अनुसार 2001 तक परिसीमन को स्थगित कर दिया गया था. बाद में इस सीमा को बढ़ाकर 2026 कर दिया गया. ऐसा वाजपेयी के कार्यकाल में हुआ. अब यह कार्यकाल अगले साल खत्म होने वाला है.

क्या कहता है कानून – अनुच्छेद 82 के तहत कहा गया है कि प्रत्येक जनगणना के बाद संसद परिसीमन अधिनियम लागू करेगी. इसके बाद परिसीमन आयोग की नियुक्ति की जाती है. नियुक्ति राष्ट्रपति करते हैं. आयोग इलेक्शन कमीशन के साथ मिलकर आगे का कार्य करता है.

इसी तरह से अऩुच्छेद 170 में विधानसभा सीटों के परिसीमन के बारे में लिखा गया है.

संविधान में यह उल्लिखित है कि परिसीमन का आधार जनसंख्या होगा.

2011 के बाद जनगणना नहीं हुई है. जनगणना के बाद कुछ क्षेत्रों में जनसंख्या बढ़ जाती है या कम हो जाती है तो परिसीमन के तहत लोकसभा व विधानसभा क्षेत्रों की सीमाओं का पुननिर्धारण किया जाता है. इसमें समय के साथ शहरों और कस्बों की सीमाओं में बदलाव होता है.

अलग-अलग राज्यों की क्या हो सकती है स्थिति

  • एक अनुमान के मुताबिक कर्नाटक की लोकसभा सीटें 28 से बढ़कर 36 हो सकती हैं.
  • तेलंगाना की लोकसभा सीटें 17 से बढ़कर 20 हो सकती हैं.
  • आंध्र प्रदेश की लोकसभा सीटें 25 से बढ़कर 28 हो सकती हैं.
  • तमिलनाडु की लोकसभा सीटें 39 से बढ़कर 41 हो सकती हैं.
  • केरल की लोकसभा सीटें 20 से घटकर 19 हो सकती हैं.
  • उत्तर प्रदेश की लोकसभा सीटें 80 से बढ़कर 128 हो सकती हैं.
  • बिहार की लोकसभा सीटें 40 से बढ़कर 70 हो सकती हैं.

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