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विजयादशमी पर विशेष:दशानन दहन तो— कहीं सम्मान—-!

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                    -सुसंस्कृति परिहार

दशानन जिसे रावण नाम से जाना जाता है। भारत के एक बड़े इलाके में उनके दहन का कार्यक्रम विजयादशमी के दिन किया जाता इस दिन राम ने रावण की जीवनलीला समाप्त कर रावण राज का खात्मा किया था।तभी से दशरथनन्दन राम की लोकप्रियता बहुत बढ़ी।यह अहंकार और अन्यान्य पर विजय थी।भगवान राम के बारे में आधिकारिक रूप से जानने का मूल स्रोत महर्षि वाल्मीकि द्वारा रचित रामायण है। इस गौरव ग्रंथ के कारण वाल्मीकि दुनिया के आदि कवि माने जाते हैं। खास बात ये श्रीराम-कथा केवल वाल्मीकीय रामायण तक सीमित न रही बल्कि मुनि व्यासरचित महाभारत में भी ‘रामोपाख्यान’ के रूप में आरण्यकपर्व (वन पर्व) में यह कथा वर्णित हुई है। इसके अतिरिक्त ‘द्रोण पर्व’ तथा ‘शांतिपर्व’ में रामकथा के सन्दर्भ उपलब्ध हैं।

बौद्ध परम्परा में श्रीराम से संबंधित दशरथ जातक, अनामक जातक तथा दशरथ कथानक नामक तीन जातक कथाएँ उपलब्ध हैं। रामायण से थोड़ा भिन्न होते हुए भी ये ग्रन्थ इतिहास के स्वर्णिम पृष्ठ हैं। जैन साहित्य में राम कथा सम्बन्धी कई ग्रंथ लिखे गये, जिनमें मुख्य हैं- विमलसूरि कृत ‘पउमचरियं’ (प्राकृत), आचार्य रविषेण कृत ‘पद्मपुराण’ (संस्कृत), स्वयंभू कृत ‘पउमचरिउ‘ (अपभ्रंश), रामचंद्र चरित्र पुराण तथा गुणभद्र कृत उत्तर पुराण (संस्कृत)। जैन परम्परा के अनुसार राम का मूल नाम ‘पद्म’ था। हमारे देश में बाल्मीकि रामायण और तुलसीदास कृत रामचरितमानस ही आमतौर पर पढ़ें जाते हैं इसकेअलावा देश में और विदेश में कई भाषाओं में रामायण मिलती हैं ।

यहां महत्वपूर्ण बात यह है कि जितनी भी रामायण हैं उनमें वैविध्य है लेकिन राम और रावण ज़रुर हैं भले उनके नाम भी अलग हों। इनमें विमलसूरि कृत पउमचरियं जैन रामायण है जिसमें राम की कहानी बिल्कुल अलग है। जैन रामायण में राम, सीता तथा रावण को विभिन्न स्थान पर प्रदर्शित किया गया है। जैन रामायण के अनुसार प्रत्येक समय चक्र में एक बलदेव, वासुदेव एवं प्रतिवासुदेव का जन्म होता है। जैन धर्म में श्री राम को बलदेव, लक्ष्मण को वासुदेव और रावण को प्रतिवासुदेव बताया गया है।

जैन शास्त्रों में रावण को प्रति‍-नारायण माना गया है। जैन धर्म के 64 शलाका पुरुषों में रावण की गिनती की जाती है। जैन पुराणों अनुसार महापंडित रावण आगामी चौबीसी में तीर्थंकर की सूची में भगवान महावीर की तरह चौबीसवें तीर्थंकर के रूप में मान्य होंगे।भगवान ने रावण को वरदान दिया कि वह जैन धर्म के 24 तीर्थंकरों में से एक होगा। ” कृष्ण भगवान को भी चौबीसी तीर्थंकरों में शामिल किया गया है।

कुछ जैनियों का मानना ​​था कि रावण के नेक कर्म उसे तीर्थंकर भी बना सकते थे। “रावण की पूजा करना समुदाय में एक आम प्रथा नहीं है हालाँकि आने वाले वर्षों में वे हमारे अगले तीर्थंकर होंगे।रावण को लक्ष्मण ने मार डाला (हिंदू महाकाव्य से विचलन जहां राम ने रावण को मार डाला) और वे दोनों नरक में चले गए। राम जैन मुनि बन गए और उनकी आत्मा को मोक्ष (जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्ति) प्राप्त हुई।

जैन धर्म सभी मुक्त आत्माओं को भगवान मानता है। उन्हें सिद्ध कहा जाता है । जैन धर्म यह भी मानता है कि सभी आत्माओं में जन्म और मृत्यु के चक्र से मुक्त होने और सिद्ध (भगवान) बनने की शक्ति होती है।

जैन धर्म में रामायण को पौमाचरिता कहा गया है इस रामायण की भाषा प्राकृत है. जिसे विमलासूरी ने लिखा है जो बहुत बड़े संत थे इन्होंने जैन महाभारत भी लिखी थी। जानकार मानते हैं कि विमलासूरी ने तीसरी या चौथी शताब्दी में लेखन कार्य किया।रावण महाकाव्य रामायण में कट्टर खलनायक हो सकता है, लेकिन जैन समुदाय के कुछ लोगों के लिए वह भगवान आदिनाथ (या ऋषभदेव) का एक उत्साही अनुयायी, उनका पहला धार्मिक शिक्षक या तीर्थंकर और हिमालय में एक पवित्र मंदिर जाने वाला है।

विजयादशमी पर, जब बहुसंख्यक लोग राक्षस राजा रावण के पुतले जलाते  हैं, तो कई जैन अपने घरों में रंगोली या उसकी छवि बनाकर उसका सम्मान करते हैं। “हम गेहूं के आटे और घास से फर्श पर एक छोटा सा चित्र बनाते हैं। दिगंबर संप्रदाय के जैनम शाह ने बताया था, फिर हम अनजाने में या जानबूझकर की गई किसी भी गलती के लिए माफी मांगने के लिए पूजा करते हैं।

जैन विद्वानों का कहना है कि रावण को सम्मान देने की परंपरा किंवदंतियों में भी मौजूद है। “रावण और उसकी पत्नी मंदोदरी, पहले तीर्थंकर ऋषभदेव के कट्टर अनुयायी थे किंवदंती है कि दंपति अष्टापद गए थे, जो कैलाश पर्वत के पास रत्न मंदिर के नाम से प्रसिद्ध है, जहां केवल कुछ ही लोग जा सकते हैं,” 

मुंबई विश्वविद्यालय में जैन दर्शन के शिक्षक डॉ. बिपिन दोशी ने कहा- “भगवान ने रावण को वरदान दिया कि वह जैन धर्म के 24 तीर्थंकरों में से एक होगा।”कुछ जैनियों का मानना ​​था कि रावण के नेक कर्म उसे तीर्थंकर भी बना सकते थे। “रावण की पूजा करना समुदाय में एक आम प्रथा नहीं है हालाँकि आने वाले वर्षों में वे हमारे अगले तीर्थंकर होंगे। उन्हें उत्कृष्ट ज्ञान प्राप्त था और वे जो कुछ भी करते थे उसके प्रति समर्पित रहते थे।

कुल मिलाकर रावण दुनिया का सबसे बड़ा पंडित, महाविद्वान किंतु महा अभिमानी था ।ब्रह्माजी के पुत्र पुलस्त्य ऋषि थे और उनके पुत्र का नाम विश्रवा था विश्रवा की दो पत्नियां थीं। उनकी पहली पत्नी भारद्वाज की पुत्री देवांगना थी जिसका पुत्र कुबेर था। विश्रवा की दूसरी पत्नी दैत्यराज सुमाली की पुत्री कैकसी थी। रावण, कुंभकर्ण, विभीषण और सूर्पणखा इन्हीं की संतानें थीं. ज्योतिषाचार्य डॉ. अजय भाम्बी कहते हैं कि रावण दो अलग संस्कृतियों की संतान था और इसीलिए वह अद्वितीय है और महाशक्तिशाली था।यही वजह है दक्षिण भारत के साथ हिंदुस्तान के कई  इलाकों में वे पूज्य हैं मध्यप्रदेश के भोपाल एवं सागर रोड पर ग्यारसपुर रावण की ससुराल मानी जाती है वहां के लोग भी अपने दामाद का आज भी सम्मान करते हैं। लेकिन इस परम्परा की शुरुआत जैन पद्मपुराण से होती है।कहां भी कहा विद्वान की पूजा सर्वत्र होती है।मोक्ष प्राप्त करने के बाद उसके सद्गुण ही धरा पर शेष रह जाते हैं।देश की वैविध्य पूर्ण संस्कृति का यह एक महत्वपूर्ण अध्याय है।

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