,मुनेश त्यागी
कविता शोषण, अन्याय, धर्म, भेदभाव पर सवाल उठाती आई है। विश्व युद्ध प्रथम और विश्व युद्ध द्वितीय के दौरान कविता ने मनुष्यता के विनाश पर सवाल उठाए। मनुष्यता के अकाल पर प्रेमचंद ने सवाल उठाए। समकालीन कविता में न्याय की पक्षधरता है। वह युद्धों का, पर्यावरण विनाश का विरोध करती है। उन पर सवाल उठाती है। नोमान शौक़ लिखते हैं,,,,
बढ़ते रक्षा बजट के साथ
असुरक्षित होती दुनिया में
छतों पर बैठे हुए तेंदुए
देख रहे हैं चुपचाप
जंगलों को उजड़ते हुए।
आज की कविता भूख, गरीबी, कुपोषण प्रदूषण और बेरोजगारी के खिलाफ आवाज उठाती है। आज की कविता और कवि मनुष्य को अपना नायक बनाता है। वह दुनिया भर में जनसाधारण के साथ हो रही क्रूरताओं, असहिष्णुता और ज्यादतियों और जबरदस्तियों के खिलाफ आवाज उठाता रहता है। आज भी बहुत सारे कवि प्रेम और करुणा की बात करते हैं। वह दलित, अल्पसंख्यक, आदिवासी, औरत और पिछड़े वर्गों की समस्याओं से अवगत हैं। आज की कविता उनके लिए लड़ती मरती और आवाज उठाती है। वह एक न्याय पूर्ण, समानता, और समता की दुनिया बनाने के लिए आवाज उठाती है।
आज की कविता सांप्रदायिक व जातिवाद का प्रतिरोध करती है। वह दुनिया को अपना उपनिवेश बना देने वाले साम्राज्यवाद के षडयंत्रों को बेनकाब करने का काम कर रही है। मुक्तिबोध के शब्दों में आज की कविता एक बेहतर न्याय और समाजवादी दुनिया के निर्माण की पक्षधर है वह पूछती है,,,” पार्टनर तुम्हारी पॉलिटिक्स क्या है?” जैसा जरूरी सवाल उठाती है।
आज की कविता घनघोर अंधेरों में रोशनी की बात करती है। वह कहती है,,,,
इस अंधकार के मौसम में
हम चंदा तारे दिनमान बने,
यह मारकाट की नगरी है
हम होली और रमजान बने।
आज की कविता जाति धर्म के झगड़े छोड़कर समानता समता और जन एकता की बात करती है। वह कहती है कि,,,
जात धर्म के झगड़े छोड़ो
समता ममता की बात करो,
बहुत लिए अलग-अलग अब
मिलने जुलने की बात करो।
आज की कविता शोषण, जुल्म, अन्याय और बढ़ती असमानताओं के बीच संगठित होने, एकजुट होने और इंकलाब की बात करती है, पूरे बात करती है। वह कहती है,,,,,
सारे ताने-बाने को बदलो
खुद भी बदलने की बात करो,
हारे थके आधे अधूरे नहीं
पूरे इंकलाब की बात करो।
आज की कविता सिर्फ पिछलग्गू बनने की बात नहीं करती। वह साथ साथ चलने की बात करती है, वह पिछलग्गू नहीं बल्कि आगे बढ़कर मशाल वाहक और समाज को बदलने की बात करती है। देखिए वह क्या कहती है,,,,
करेंगे हम शुरुआत जमाना बदलेगा
दे दो हाथों में हाथ जमाना बदलेगा।
तुम आओ मेरे साथ जमाना बदलेगा
हम चलेंगे मिलकर साथ जमाना बदलेगा।
आज की कविता टुकडखोर रचनाकारों की मुखालफत करती है, देश को बर्बाद करने वालों और देश को बेचने वालों की आंख में आंख डाल कर बात करती है और देश बेचने वालों से जनता को आगाह करती है देखिए वह क्या कहती है,,,,
कसम बेच देंगे शपथ भेज देंगे
ये नेता हमारे वतन बेच देंगे।
सुनो मेरे यारो यह नेता हमारे
शहीदों के सपने कफन बेच देंगे।
आज की कविता सिर्फ सवाल ही नहीं करती बल्कि वह समाधान की भी बात करती है और इस अन्याय और मक्कारी भरे समाज को भी बदलने का हौसला प्रदान करती है। देखिए जरा,,,,
हो गई पीर पर्वत सी पिघलनी चाहिए
इस हिमालय से कोई गंगा निकलनी चाहिए,
सिर्फ हंगामा खड़ा करना मेरा मकसद नहीं
मेरी कोशिश है यह सूरत बदलनी चाहिए।
आज की कविता जातिवादी या हिंदू मुसलमान बनने की बात नहीं करती, बल्कि वह आदमी से इंसान बनने की बात करती है। जरा देखिए,,,,
तू हिंदू बनेगा न मुसलमान बनेगा
इंसान की औलाद है इंसान बनेगा।
आज की कविता नेताओं की पिछलग्गू ही नहीं है, बल्कि वह उनसे आंखें मिलाते हुए उन्हें लुटेरा और राहजन बताती है। देखिए जरा,,,,
मालो दौलत ही नहीं लूट लिए सपने भी
ऐसे तो रहजन भी न थे जैसे ये रहबर निकले
और
वतन को कुछ नहीं खतरा निजामे जर है खतरे में।
हकीकत में जो रहजन है वही रहबर है खतरे में।
आज की कविता सिर्फ देश, समाज और मानव की ही बात नहीं करती बल्कि वह सारी दुनिया की बात करती है, सारे मेहनतकशों की बात करती है। देखिए जरा,,,,
हम मेहनतकश जग वालों से
जब अपना हिस्सा मांगेंगे
एक खेत नहीं एक देश नहीं
हम सारी दुनिया मांगेंगे ।
और आज की कविता सिर्फ़ ब्योरा देने की ही बात नहीं करती है बल्कि इस दुनिया को बदलने की बात करती है और इस दुनिया को बदलने वाले हौंसले की बात करती है। देखिए जरा,,,,,
गंगा की कसम जमना की कसम
यह ताना बाना बदलेगा बदलेगा,
तू खुद तो बदल तू खुद को बदल
बदलेगा जमाना बदलेगा।
रवि की रवानी बदलेगी
सतलज का मुहाना बदलेगा,
गर शौक में तेरे जोश रहा
तस्बीह का दाना बदलेगा।