श्रवण यादव रतलामी
स्वागत है आपका, एन्टी-कम्युनिज़्म प्रोपगंडा कोचिंग इंस्टीटूट में। आपको बता दें, यह प्रोपगंडा कोचिंग इंस्टीटूट आपको न सिर्फ पूँजीवादी सत्ता प्रतिष्ठानों में, साथ ही पत्रकारिता, सिनेमा, NGO जैसे तमाम क्षेत्रों में प्लेसमेंट और मलाईदार करियर बनाने में मददगार साबित होगा। पहली कक्षा के कुछ प्रमुख बिंदु जो हर कम्युनिज्म-विरोधी प्रोपगंडाबाज को याद रखना चाहिए:
1. लगातार इस बात पर जोर दो कि मार्क्सवाद बदनाम हो चुका है, आउटडेटेड है, मर चुका है, दफन हो चुका है। फिर उसी कथित मरे हुए घोड़े पर चाबुक चलाने में ही अपनी सारी जिंदगी भी लगा दो और इसी जुगत में अपना करियर चमका लो।
2. याद रखो, कोई भी अप्राकृतिक मौत जो एक कम्युनिस्ट शासित मुल्क में होती हो, उसका ठीकरा बिना सोचे समझे उस सत्ता के नेताओं पर डाल दो, न सिर्फ नेताओं पर बल्कि मार्क्सवादी विचारधारा पर ही देश में होने वाली हर मौत का ठीकरा फोड़ दो। दूसरी तरफ इन्हीं कारणों से गैर कम्युनिस्ट राज्यों में होने वाली मौतों को बड़े आराम से बेशर्मी के साथ इग्नोर करो।
3. “कम्युनिज़्म” और “मार्क्सवाद” क्या है? वही है, जैसी तुम्हारी मर्ज़ी। बेझिझक अपने मन मुताबिक देशों, आंदोलनों और सत्ताओं पर “कम्युनिस्ट” होने का लेबल चस्पा कर दो, बिना उनके वास्तविक लक्ष्य, घोषित विचारधारा, कूटनीतिक संबंधों, आर्थिक नीति या संपत्ति संबंधों की परवाह किये। फिर उन देशों और सत्ताओं को पंचिंग बैग की तरह इस्तेमाल करो अपने कम्युनिज्म-विरोधी प्रोपगंडा वॉर में।
4. इतिहास में कभी कहीं किसी टकराव में एक पक्ष अगर कम्युनिस्ट रहे, तो उस टकराव और उसमें होने वाली हर मृत्यु का ठीकरा कम्युनिस्टों पर फोड़ दो। उदाहरण स्वरूप बोल्शेविकों ने रूसी क्रांति के बाद सामंतों और भूस्वामियों की ज़मीनें छीन कर किसानों में बाँट दी, तो सामंतों, भूस्वामियों ने अपने खोए हुए स्वर्ग को दोबारा हासिल करने के लिये सोवियत सरकार और मेहनतकश जनता के ख़िलाफ़ खूनी गृहयुद्ध छेड़ दिया, जिसमें लाखों लोग मारे गए, इसका ठीकरा कम्युनिस्टों पर फोड़ दो, कह दो कि यह गृहयुद्ध बोल्शेविकों के रैडिकल भूमि-सुधार की देन थी, अगर उन्होंने सामंतों की जागीरें न छीनी होती तो गृहयुद्ध न होता और सब लोग शांति से रह रहे होते। वैसे इस वाली ट्रिक को द्वितीय विश्वयुद्ध के संदर्भ में थोड़ा संभलकर इस्तेमाल करना। यूरोप के तमाम फ़ासिस्ट आंदोलन जो सोवियत संघ और कम्युनिस्ट कार्यकर्ताओं के ख़िलाफ़ लड़े, उन्हें भी अगर कम्युनिज़्म का ‘विक्टिम’ घोषित कर दोगे तो नंगे हो जाओगे। नाज़ी जर्मनी के प्रति अपने प्रेम को ‘अपने’ लोगों के बीच पर्दे के पीछे होने वाले गुप्त वार्तालापों के लिये बचा कर रखो।
5. निरंतर जॉर्ज ऑरवेल की बात करो, ऐनिमल फार्म और 1984 को तोते की तरह उद्धृत करो, बिना इस तथ्य की परवाह किये कि ये दोनों फिक्शन उपन्यास हैं और उन फ़िक्शन उपन्यासों में सोवियत समाज का चित्रण करने वाले जॉर्ज ऑरवेल ने खुद अपने जीवन में कभी सोवियत संघ में पैर तक न रखा।
6. धड़ल्ले से मौत के आँकड़े उद्धृत करो, बिना जनसांख्यिकी की संगतता को चवन्नी भर भी भाव दिये। अकाल से होने वाली 30 लाख मौतें, 70 लाख मौतें, 1 करोड़ मौतें, कुल मौतें 10 करोड़, कुछ भी फेंक दो, किसके पास टाइम है प्रूफ मांगे, हर दस साल में इस आँकड़े में एक ज़ीरो जोड़ दो ! मल्लब रूस की आबादी भी न चेक करो, पूरी आबादी को ही अकाल से मार दो, सब मर गए बस स्तालिन बचा, फिर उसने मरे हुए लोगों के भूतों पर राज किया। फिर भी जादू से सोवियत संघ की जनसंख्या हमेशा से ज्यादा तेज गति से बढ़ती रही। यमराज की लीला अपरंपार!
7. स्तालिन और माओ की बात करते हुए कुछ खास विशेषणों को अपना तकिया कलाम बना लो, मसलन – खूनी, खूँखार, दरिंदा, रक्तपिपासु, आदमखोर, तानाशाह, इन विशेषणों को इतनी बार, इतनी जगह तोते की तरह रिपीट करो कि किसी भी नए व्यक्ति के अवचेतन मष्तिष्क में उनकी एक खास किस्म की छवि बन जाए। इससे वह व्यक्ति सर्वहारा समाजवाद के उस दौर में मानव सभ्यता और जीवनस्तर के क्षेत्र में हुई इंसानी तारीख की महानतम उपलब्धियों को और पूँजीवादी व्यवस्था के दायरे में तो असंभव सी प्रतीत होती चमत्कारी छलांगों को भी संदेह और पूर्वाग्रह की निगाह से देखेगा और अपने समकालीन समाज में लागू करने की कल्पना तक करने से बचेगा। वैसे भी तुम्हारे ताऊ गोएबेल्स जिसे कम्युनिस्टों की लाल सेना ने ‘नरकलोक’ डिस्पैच किया था, उसने सत्ता में हिटलर का प्रचारमंत्री रहते हुए कहा था कि एक झूठ को बार बार दोहराने से वह सच हो जाता है।
8. कम्युनिस्ट सत्ताओं को उन एक्शनों के लिये रोज़ कोसो, जो हर पूँजीवादी सत्ता में आज तक धड़ल्ले से होती हैं। पूँजीवादी मुल्कों में जेल होते हैं, जिसका अंग्रेज़ी शब्दार्थ है Prison , पर कम्युनिस्ट शासित देशों में उसे “prison camps” कह दो। “Prison” के आगे ऐवेंईं “Camp” शब्द जोड़ दोगे तो ज्यादा खतरनाक लगेगा। “Gulag” का जिक्र करते हुए उसे इस तरह प्रस्तुत करो मानो वह कोई पाताललोक की दानवी सी चीज़ है, बिना यह बताए कि Gulag शब्द का सीधा अर्थ होता है जेल जिसमें सश्रम कारावास होता है। भारत, अमेरिका, ब्रिटेन में तो जैसे सश्रम कारावास होते ही नहीं, यहाँ तो कैदियों को जेल में पिकनिक मनाने, पिज़्ज़ा खाने भेजा जाता होगा। उनमें और ग़ुलाग में फर्क बस इतना है कि गुलाग आधुनिक युग की सबसे मानवीय जेल हुआ करती थी, जिसमें श्रम करते हुए 8 घंटे कार्यदिवस, मिनिमम वेज, लाइब्रेरी, खेलकूद, पढ़ाई, म्यूजिकल प्रशिक्षण, सब बुनियादी मानवीय सुविधाएं उपलब्ध थीं, उत्तम स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध थीं। शादीशुदा कैदियों को अपने जीवनसाथी और बच्चों के साथ रहने तक का प्रावधान था। भारत और अमेरिका के जेल रूपी यातनागृहों से तो कोई तुलना ही नहीं जहाँ एक बूढ़े लकवाग्रस्त फादर स्टेन स्वामी को पानी पीने के लिए स्ट्रॉ तक मुहैया नहीं कराया गया और उसने उन अमानवीय हालातों में दम तोड़ दिया। 90% विकलांग प्रोफेसर जीएन साईबाबा को बुनियादी स्वास्थ्य उपकरण तो दूर, जाड़े के मौसम में कंबल और गरम कपड़ों तक से दूर रखा गया। कभी सेंट्रल जेलों के अंडा सेल में कैद कैदियों का वृत्तांत पढ़ लेना। सॉरी पढ़ाई-वढाई प्रोपगंडाबाजों में सख्त वर्जित है, वही पढ़ो जो तुम्हारे प्रोपगंडा और पूर्वाग्रहों को बल दे।
9. दावा करो कि मार्क्सवाद तो यूटोपिया है क्योंकि वह एक दूर भविष्य के समाज का चित्रण करता है। साथ ही दूसरी तरफ ये भी दावा करो कि मार्क्सवाद फेल हो गया, क्योंकि उसने कभी इसका विस्तृत चित्रण नहीं प्रस्तुत किया कि एक कम्युनिस्ट समाज कैसा होगा। इन दोनों वाक्यों के बीच मौजूद आपसी अंतर्विरोधों की खाई को नापें तो प्रशांत महासागर के मारियाना ट्रेंच की गहराई छोटी पड़ जाएगी, पर की फर्क पैंदा है , प्रोपगंडा कब तर्क की कसौटी पर खरा उतरने के उद्देश्य से अस्तित्व में आया था।
10. दो शब्द याद रखो: “ह्यूमन नेचर”। “ह्यूमन नेचर” क्या है? तुम्हारे उद्देश्य पूर्ति के लिये, ह्यूमन नेचर और कुछ नहीं, हर उस सवाल का रेडीमेड जवाब है जो तुम्हें नापसंद राजनीतिक विचार या व्यवस्था को बिना तर्क खारिज करने या गलत घोषित करने के लिये इस्तेमाल करना है।
11. बार बार रटो कि बोल्शेविक क्रांति में हिंसा हुई थी, खून बहा था। पूँजीवादी क्रांतियां – फ्रांसीसी क्रांति, अमेरिकी क्रांति, इंग्लिश क्रांति तो शायद जनतांत्रिक रेफरेंडम के ज़रिए संपन्न हुईं होंगी, खून तो उनमें गिरा ही न होगा, क्यों ?
12. “फ्रीडम” और “डेमोक्रेसी” जैसे शब्दों को तोते की तरह रटते रहो, बिना इन शब्दों की कोई स्थायी परिभाषा तय किये। किसका फ्रीडम, किस तबके की डेमोक्रेसी।
13. स्तालिन को लगातार मोलोतोव-रिब्बेनट्रॉप समझौते के लिये कोसो, इस बात को आराम से इग्नोर करते हुए कि किस तरह अमेरिका, ब्रिटेन, फ्रांस की सरकारों और कंपनियों ने युद्ध शुरू होने के बहुत पहले से नाज़ियों को सत्तासीन करने, हिटलर को चंदा देने, और अपने खुद के देशों में हिटलर के श्वेत वर्चस्ववादी आंदोलन के लिये वैश्विक जनसमर्थन जुटाने के कुकर्म किये। सोवियत संघ के द्वारा बार बार नाज़ी-जर्मनी विरोधी साझा मोर्चा बनाने की अपीलों को नज़रंदाज़ किया और नाज़ी जर्मनी के साथ वित्तीय व आर्थिक रिश्ते मजबूती से जारी रखे। मोलोतोव-रिब्बेनट्रॉप समझौते की परिस्थितियों पर तो सामने वाले को बोलने ही न दो कि यह उस वक्त समय खरीदने और एक नवनिर्मित सेना और अर्थव्यवस्था को आने वाले आसन्न भयंकर युद्ध के लिये तैयार होने के लिये कितना जरूरी टैक्टिकल कदम था।
14. सोवियत विघटन के बाद से “इतिहास के अंत” का दो दशकीय जश्न और उन्माद खतम हो जाने के बाद, आज जब पूँजीवादी दुनिया न तो गरीबी, न भुखमरी, न बीमारी से पार पाने के कहीं करीब भी ठहर रही है, दुनिया भर में धुर दक्षिणपंथी, फ़ासिस्ट, अर्धफासिस्ट, पुनरुत्थानवादी तत्वों के उभार और अनेक देशों की सत्ता पर काबिज़ होने के बाद “इतिहास के अंत” की तो हवा निकल गयी, लेकिन हर मर्ज की एक दवा तुम्हारे पास है, ज़ोर से बोलो “FREEDOM”, वो अलग बात है कि इस शब्द का अर्थ तुम्हें भी नहीं मालूम, बस सेक्सी लग रहा था तो तोते की तरह रटना है FREEDOM ।
15. “TOTALITARIAN” , इस जादुई शब्द को हर जगह जुबानी जमाखर्च में इस्तेमाल करो, और इसके जरिये नाज़ियों की निरंकुश पूँजीवादी तानाशाही और सोवियतों के मज़दूर वर्गीय अधिनायकत्व के बीच बेसिरपैर का मेल स्थापित करने की कोशिश करो। एक व्यवस्था जिसमें पूँजीपति वर्ग के इजारेदार हिस्से द्वारा अन्य वर्गों पर निरंकुश दमन के शासन की तुलना एक ऐसे व्यवस्था से करो जिसमें मज़दूर वर्ग ने खुद सत्ता में काबिज होकर मेहनतकश तबके का दीमक की तरह शोषण करते आए परजीवी वर्गों – जमीनदारों, भूस्वामियों और पूँजीपतियों का दमन कर के उनकी सारी संपत्ति का सामूहिकीकरण व उसके प्रबंधन का जनवादीकरण कर दिया था।
16. HUMAN RIGHTS , एक और जादुई और तिलिस्मी शब्द, जिसका इस्तेमाल बिना इसे परिभाषित किये मनमुताबिक करते रहो, अपने फेवरिट पक्षी, तोते की तरह। भोजन, रोजगार, स्वास्थ्य, आवास, जीवन का अधिकार, ये सब तो खैर HUMAN RIGHTS हैं ही नहीं, क्योंकि ये सब तो उसे ही मयस्सर होगा जो अपने शरीर और अपनी श्रमशक्ति के लिये बाज़ार में खरीददार ढूंढने में सफल हो जाए, न सिर्फ इतना, उसे वाज़िब दाम पर बेच सकने में सक्षम हो, तभी उसे भोजन, स्वास्थ्य, आवास, जीवन का अधिकार मयस्सर होगा, ये ह्यूमन राइट्स थोड़ी हैं, ये तो बाज़ार के उत्पाद हैं, जिसकी जेब में रोकड़ा हो उसे इन चीजों को खरीदने का पूरा FREEDOM है!
फिलहाल के लिये एन्टी-कम्युनिज़्म प्रोपगंडा कोचिंग की पहली कक्षा में इतना ही। जल्द ही दूसरी कक्षा में कुछ नए प्रोपगंडा टिप्स के साथ दोबारा उपस्थित होंगे, तबतक के लिये नमस्कार
*श्रवण यादव रतलामी*