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परिवार नियोजन की पहुंच से दूर राजस्थान की महिलाओं की स्थिति

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मंशा गुर्जर
जयपुर, राजस्थान

“मेरी शादी 17 साल की उम्र में हो गई थी, फिर एक के बाद एक तीन बच्चे हो गए. अब न मेरी सेहत ठीक रहती है और न बच्चे की. परिवार नियोजन के बारे में सुना था, लेकिन पति ऐसा नहीं करने देते हैं. एक बार उन्हें बिना बताये अस्पताल भी गई थी, लेकिन आवश्यक दस्तावेज़ नहीं होने के कारण उन्होंने गर्भनिरोधक टीका लगाने से मना कर दिया.” यह कहना है 23 वर्षीय लक्ष्मी का, जो राजस्थान के जयपुर स्थित रावण मंडी में रहती है. मानसरोवर इलाके में आबाद इस कच्ची बस्ती में लक्ष्मी जैसी कई महिलाएं हैं जो परिवार नियोजन की पहुंच से दूर हैं. जिसका नकारात्मक असर न केवल उनमें बल्कि उनके बच्चों में भी नज़र आता है. इस बस्ती की अधिकतर महिलाएं और बच्चे कुपोषित हैं. कम आमदनी और परिवार में अधिक सदस्य होने की वजह से सभी को उचित पौष्टिक आहार उपलब्ध नहीं हो पाता है.

राजस्थान की राजधानी होने के कारण जयपुर अपने आप में एक व्यापक सुविधाओं से लैस है. परंतु इसी शहर में आबाद रावण मंडी के निवासी मूलभूत सुविधाओं की कमी के बीच जीवन यापन करने पर मजबूर हैं. करीब 300 लोगों की आबादी वाले इस बस्ती में अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति समुदाय के परिवार निवास करते हैं. जिनमें जोगी, कालबेलिया और मिरासी समुदाय शामिल है. इस बस्ती के लोगों का मुख्य कार्य पुतला तैयार करना है. प्रति वर्ष विजयदशमी के दिन रावण दहन के लिए यहां रावण, मेघनाद और कुंभकरण के पुतलों की मंडी लगती है. जिसे खरीदने के लिए जयपुर के बाहर से भी लोग आते हैं. लेकिन साल के अन्य दिनों में यहां के निवासी आजीविका के लिए रद्दी बेचने, बांस से बनाये सामान अथवा दिहाड़ी मज़दूरी करते हैं. यहां आजीविका के साथ साथ स्वास्थ्य एक बहुत बड़ा मुद्दा है. विशेषकर महिलाओं और बच्चों में स्वास्थ्य और पोषण की कमी सबसे अधिक देखने को मिल जाती है.

इस संबंध में 27 वर्षीय गंगा देवी बताती हैं कि “इस बस्ती में सभी बच्चों का जन्म घर पर ही होता है क्योंकि परिवार के पास निवास स्थान से संबंधित कोई प्रमाण नहीं है, इसलिए अस्पताल वाले उन्हें भर्ती नहीं करते हैं. बच्चों का जन्म घर में होने के कारण नगर निगम से उनका जन्म प्रमाण पत्र नहीं बन पाता है. इस तरह इस बस्ती के लगभग सभी बच्चों के जन्म का कोई प्रमाण पत्र नहीं है. इसके नहीं होने से उन्हें स्वास्थ्य की कोई सुविधा भी नहीं मिल पाती है. वहीं दूसरी ओर महिलाओं को भी निवास और अन्य दस्तावेज़ नहीं होने के कारण अस्पताल से कोई सुविधा नहीं मिलती है. यहां तक कि जो महिला परिवार नियोजन के तहत गर्भ नियोजन इंजेक्शन भी लगाना चाहती हैं, उन्हें इसका लाभ नहीं मिल पाता है.” वह बताती हैं कि इस बस्ती में सभी परिवारों में दो से अधिक बच्चे हैं जबकि आमदनी का माध्यम बहुत ही सीमित है. परिवार नियोजन की पहुंच नहीं होने के कारण अधिकतर महिलाएं जल्दी जल्दी गर्भवती हो जाती हैं, जिससे उनके स्वास्थ्य पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है. अधिकतर बच्चों में एक से डेढ़ वर्ष का ही अंतर होता है.

बस्ती की 27 वर्षीय शहनाज़ मिरासी बताती हैं कि उनके सात बच्चे हैं. जिनके बीच एक वर्ष का भी अंतराल नहीं है. जल्दी जल्दी गर्भवती होने के कारण वह शारीरिक रूप से काफी कमज़ोर और कुपोषित हो चुकी हैं और उनका वज़न भी काफी कम है. वह बताती हैं कि उनके पति रद्दी का काम करते हैं. जिसमें बहुत कम आमदनी होती है. ऐसे में उनके और बच्चों के लिए पौष्टिक भोजन का उपलब्ध होना मुमकिन नहीं है. शहनाज़ कहती हैं कि उनके समुदाय में परिवार नियोजन का विरोध किया जाता है. इसके बावजूद वह इसका टीका लगाने के लिए अस्पताल गई थी, परंतु आवश्यक दस्तावेज़ नहीं होने के कारण अस्पताल वालों ने उन्हें गर्भनिरोधक टीका लगाने से मना कर दिया. वह कहती हैं कि एक के बाद एक बच्चों के जन्म की वजह से वह स्वयं को शारीरिक रूप से बहुत कमज़ोर महसूस करती हैं. जिसकी वजह से वह अक्सर बीमार रहती हैं. इसी हालत में उन्हें बच्चों की देखभाल और घर का काम भी करना होता है.

वहीं 21 वर्षीय रेशमा मिरासी बताती है कि 17 वर्ष में ही उसकी शादी हो गई और अभी हाल में ही उसने तीसरे बच्चे को जन्म दिया है. जो बहुत ही कमज़ोर है. स्वयं रेशमा भी कुपोषण का शिकार है. कम उम्र में शादी और बच्चों की ज़िम्मेदारी के कारण वह अपनी सेहत का ख्याल नहीं रख पाती है. रेशमा कहती है कि घर की आमदनी को देखते हुए वह और बच्चे नहीं चाहती है. स्वास्थ्य के मुद्दे पर बस्ती में काम करने वाली स्वयंसेवी संस्था की महिलाओं ने उसे परिवार नियोजन के बारे में बताया था. इस संबंध में जब उसने पति से बात की तो उसने ऐसा करने से मना कर दिया. वह बताती है कि संस्था की दीदियों ने पुरुष नसबंदी के बारे में भी बताया था, लेकिन कोई भी पुरुष ऐसा करने को तैयार नहीं होते हैं. बस्ती के ही दिहाड़ी मज़दूरी का काम करने वाले 25 वर्षीय राहुल जोगी के 3 बच्चे हैं. जिनमें एक से डेढ़ वर्ष का अंतराल है. राहुल की पत्नी और तीनों बच्चे कुपोषण का शिकार हैं. वह कहते हैं कि जानकारी के अभाव के कारण न तो उनकी पत्नी और न ही बच्चों को आज तक कोई टीका लगा है. वहीं कम आमदनी होने के कारण वह उन्हें अच्छा खाना भी नहीं खिला सकते हैं. राहुल के अनुसार पुरुषों को परिवार नियोजन नहीं कराना चाहिए, इससे उनमें कमज़ोरी आ जाती है.

पुरुषों में नसबंदी का विरोध करने वाले राहुल अकेले नहीं हैं. जागरूकता के अभाव में आज भी हमारे समाज में अधिकतर मर्द पुरुष नसबंदी को कमज़ोरी से जोड़ कर देखते हैं. वहीं दूसरी ओर कई बार धर्म और संस्कृति का हवाला देकर महिलाओं को भी परिवार नियोजन के तरीके अपनाने से रोका जाता है. हालांकि आवश्यक दस्तावेज़ की कमी के कारण रावण मंडी की महिलाएं चाह कर भी परिवार नियोजन के तरीके अपनाने से वंचित हैं. जबकि महिलाओं के लिए परिवार नियोजन के साधन की सुलभ सेवाएं सुनिश्चित करने के लिए वर्ष 2022 में राजस्थान को देश भर में द्वितीय स्थान मिल चुका है. ऐसे में रावण मंडी की महिलाओं का इस सुविधा की पहुंच से दूर होना भविष्य में इसकी कामयाबी पर ग्रहण लगा सकता है. (चरखा फीचर)

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