अग्नि आलोक
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कहानी :*अतरंगी आँटी

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मीना राजपूत

 _बटन दबाते ही नीचे जाती लिफ्ट अचानक से रुक गयी। दरवाजा खोला तो चौंक गई! 604 वाली आँटी थी। ऐसे मैं उनसे मिली नहीं हूं पर जानती हूं अच्छे से! पूरे अपार्टमेंट में फेमस है ये आँटी।_
क्यों? 

बताती हूँ!
पहले हाय हैल्लो तो कर लूं!

“नमस्ते आँटी कैसी हैं आप?”
“नमस्ते नमस्ते! अच्छी हूँ।”
वो चहक कर कभी मुझे..कभी मेरे पति को देख रही थी।
;मेरे पति ने उन्हें एक बार ऊपर से नीचे देखा फिर आँखों मे ही मुझसे जैसे सवाल किया हो…यही है?
मैंने कंजूसी वाली स्माइल देकर सिर हां में हिला दिया।
लिफ्ट नीचे आ गयी थी।
निकलते हुए पति ने मुस्कुराकर कहा-
“देखो यहां आँटी लोग रोज वॉक पर जाती है एक तुम हो। सीखो कुछ!”
“नहीं बेटा! मैं तो नीचे बैठती हूँ बस, बच्चे लोग खेलते हैं तो उन्हें देखती रहती हूं। जो मिल गया उससे गप्पें लड़ा लेती हूं, नही तो अपने बिल्डिंग का गार्ड है न भुवन। उसका सुख-दुख सुनकर वापस अपने घर.. और ये तो वैसे ही इत्ती प्यारी है डॉल सी! इसे क्या जरूरत एक्सरसाइज की।”
कहकर उन्होंने मेरे गालों की हल्के से छुआ और किनारे रखी एक चेयर पर जाकर बैठ गयी।

कार पार्किंग से निकालते हुए मेरी नज़र गार्ड रूम के बाहर गयी। आँटी, भुवन के साथ बात करते हुए खूब खिलखिलाकर हंस रही थी। निर्दोष..निष्कपट निश्छल हँसी!
“अच्छी-भली लेडी लगती हैं फिर ऐसे क्यों रहती है?”
पतिदेव ने पूछा।
“छोड़ो न सबका अपना स्टाइल है जीने का। हमें क्या!”
मैंने कह तो दिया पर बात तो सही थी। मेरी मेड और पड़ोसन जब इनके बारे में बताती तो मुझे लगा था कहीं दिमाग से पैदल तो नहीं!”
“पर बातचीत से भली लगती है न! मैं इनके बारे में सुनती थी तो समझती थी क्रैक होंगी!”

मेरे कहने पर पति ने तिरछी नज़र से मुझे देखते हुए कहा–“वैसे सही ही कहती थी तुम। शायद क्रैक ही है तभी तो तुम्हें डॉल कह दिया!”
फिर हंसने लगे “अरे मज़ाक कर रहा हूँ! गुस्सा मत हो जाना मेरी डार्लिंग।”
;मैं हंसकर खिड़की के बाहर देखने लगी। दिमाग उस आँटी पर ही अटका था। कुछ अलग था उनकी आंखों में।
अतरंगी! अतरंगी आँटी! मैं बुदबुदाई!
आज पता चला क्यों लोग उन्हें इस नाम से पुकारते हैं!

मुझे उनका आज का गेटअप याद आ गया। पतली सी बनियान के तरह की टॉप..शॉर्ट्स.. मेहंदी रंगे छोटे कर्ली बाल…नीले मोतियों की लम्बी बालियां,बीड्स की लाल माला और स्पोर्ट्स शूज़!
इन सबके साथ रंग-बिरंगी चूड़ियों से भरे उनके हाथ!
ओह गॉड! विचित्र ही वेशभूषा! तभी तो पूरा अपार्टमेंट उन्हें अतरंगी आँटी कहता है। सुना है कभी-कभी मिनी स्कर्ट और पतली सी क्लीवेज दिखती टॉप में भी घर से निकल जाती है। उनके बाल सीधे हैं, सारा दिन कर्लर लगाकर उन्हें घुँघराले करती है। पति को गुजरे हुए सालों बीत गए.. बेटा अपनी फैमिली के साथ दूसरे शहर में रहता है। साल में एक-दो बार आता है। कभी खास जरूरत पड़ गयी तो हाज़िर! पर अकेले! बहु की बनती नहीं।

सबका कहना है, बने भी कैसे इस अतरंगी सास से!
;मैं कम ही नीचे उतरती हूँ जाना भी होता तो दिन में। तो उनसे मुलाकात नहीं होती। लेकिन हसबैंड कभी-कभी बोलते–“आज मिली थी तुम्हारी अतरंगी आँटी।”
“मेरी क्यों भई?”
“मेरी बेली फैट वाली, चब्बी बीबी में डॉल वाली खासियत तो उन्हीं को दिखी! तो पक्का तुम्हारी फेवरेट हो गयी होगी अबतक!”
पतिदेव चिढ़ाने का कोई मौका नहीं चूकते।

एक दिन सुबह-सबेरे अतरंगी आँटी आ गयी मेरे घर। थाई तक की छोटी सी ब्लैक फ्रॉक और रेड कैपरी पहने। बालों में कलरफुल बीड्स! लिपस्टिक, ब्लशर, कानों में रेशम की लम्बी बालियां!
हुलिया देखकर मेरी हँसी छूटते-छूटते रुकी।
मेरे हाथों पर एक बड़ा मिठाईयों का डब्बा रखा और बोली-
“भगवान का प्रसाद। आज मेरे रासु बेबी का जन्मदिन है न।”
“रासु?कौन?”
“मेरा पोता है! बहुत क्यूट है! रसगुल्ले उसे बहुत पसंद हैं इसीलिए यहीं बांटती हूँ सबको। चबा नहीं पाता था पर इसका सारा रस चूस लेता था। पूरे कपड़े रस से तरबतर।”
–बोलते हुए उनका लाड़ उमड़ रहा था।
“चूस लेता था! ये था का मतलब आँटी?”
मैं सिहर गयी थी ‘था’ सुनकर।

अचानक वो चुप हो गयी..फिर ठहरकर बोली–अब बड़ा हो गया है 9 साल का हो गया आज..पर मैंने जब आखिरी बार देखा था तो छः महीने का था!
“अरे इतने सालों तक आप नहीं मिली पोते से! क्यों? बहुत दूर रहते हैं क्या? विदेश में?”
“नहीं बेटा इंडिया में ही रहता है पर बहु..छोड़ो मैं भी क्या लेकर बैठ गयी! तुम मिठाई खा कर बताओ कैसा है!”
बोलते हुए उन्होंने मेरे मुंह में रसगुल्ले का एक टुकड़ा डाल दिया। पर उस रसगुल्ले की मिठास में टूटे रिश्तों की कड़वाहट घुली थी। मुंह कड़वा हो गया!

एक दिन मैं नीचे उतरी तो गेट के पास ही भुवन मिल गया। हाथों में सब्जी-दूध के थैले लटकाए।
“नमस्ते मैंम”
“क्या हाल भुवन?”
“सब ठीक है मैंम!”
मैंने उसके हाथों में पकड़े थैलों को देखा तो वो बरबस बोल पड़ा-
“604 वाली आँटी ने मंगाया। तबियत थोड़ी सुस्त है उनकी तो इसीलिए..”
“अरे क्या हो गया..फिर कुछ सोचकर मैंने कहा-चलो मैं भी चलती हूँ उन्हें देख लूँगी”

घुटने तक की फीके रंग की ढीली सी फ्रॉक! बिखड़े बाल और श्रृंगार विहीन मुरझाया चेहरा। आज वो अपने प्रचलित नाम से अलग एकाकीपन झेल रही प्रौढा दिख रही थी।
मुझे देखकर स्मित हँसी छिटकी।
“आज ये डॉल मेरे घर! आओ अंदर।”
भुवन सामान रखकर चला गया। आँटी ने आवभगत की औपचारिकता निभाने की कोशिश की पर मैंने हाथ पकड़कर बिठा लिया।
“कुछ नहीं चाहिए मुझे। आज बस आपसे बात करने आई हूं। बल्कि आप मुझसे कहिए कुछ बनाना है तो मैं बना दूँ। नाश्ता किया आपने? चाय पियेंगी? क्या बना दूँ?”

“बाल! मेरे बाल बना दो हाथ पीछे नहीं जा रहे, बहुत दर्द है। आज कुछ नहीं कर पाई। कुछ न कुछ खाकर पेट भर लिया पर बाल नहीं बना पा रही।”
मुझे हँसी आ गयी।
“आप भी न आँटी हद ही हैं! यहां तबियत खराब है और आपको बाल की पड़ी है! कौन देखने आ रहा?”
“मैं देखती हूँ न अपने आप को..और यहीं सब करके खुश हो लेती हूं। जब पहनने-ओढ़ने का शौक था बाबूजी ने ब्याह कर दिया! कहा- जो शौक पूरे करने हैं ससुराल में करना।
ससुराल आयी तो सास ने साड़ी के अलावा कुछ औऱ पहनने न दिया। ऊपर से सर पर पल्लू! जरा सा खिसकता तो दिन खराब कर देती मेरा। फिर सास गुजर गई, तो मैने सोचा अब..पर तब तक शरीर फूल गया था, दो-तीन मिसकैरेज के बाद मेरा बेटा हुआ था इतने तनाव में रही कुछ ध्यान नही दिया शरीर पर। पति उलाहना मारते..जोकर लगती हो ये सब मत पहनो। साड़ी और पूरे हाथ की रंग-बिरंगी चूड़ियाँ!

 उन्हें मैं बस ऐसे ही भाती। मैंने मन को मार लिया। पति सब समझते पर कभी बोला नहीं। एक अकेली औरत न बेटा! घर के हर सदस्य की खुशियों का ख्याल रखती है पर उसकी मनमर्जी कोई मायने नहीं रखती! बस यही उम्मीद की जाती है कि हम परिवार के हर चमकते  चेहरे में अपनी भी चमक तलाशें। सब्जी तक खरीदने में सबके जायके का ख्याल रखती है बस खुद की जीभ छोड़कर..पति गुजर गए..बेटे को पढ़ाया-लिखाया शादी की पर तब तक सोच लिया था अपनी बची जिंदगी अपने हिसाब से जिऊंगी भले किसी को जोकर ही क्यों न लगूं! पर एक 'काश' लेकर मरना नहीं था। बेटा-बहु अलग रहते है उनके संसार मे मैं फिट नहीं! मैं पूछती हूँ क्या पहनावे से कोई किसी को अपनाता है? ये बहाना है बेटा! इंसान अपनी मर्जी किसी पर थोपकर आत्ममुग्ध होता है। बेटे-बहु अपनी दुनिया में खुश हैं तो मैं अपनी इस अतरंगी दुनिया में!"
    मैं निर्विकार सी उन्हें एकटक देखती रही। आज मेरे सामने कोई जोकर सी..दिमाग से पैदल..क्रैक या शौकीन बुढ़िया नहीं..जीवन भर अपनी खुशियों को तरसती..अपने होने की सार्थकता तलाशती एक स्त्री थी! 

मैंने कंघी उठाई और सात रंगों वाला चमकीला क्लिप बालों में जड़ दिया।
हर स्त्री को मिलना चाहिए न अपने हिस्से का इंद्रधनुष! बिल्कुल मिलना चाहिए!
[चेतना विकास मिशन]

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