अग्नि आलोक
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कहानी : वास्तविक दर्द

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 सुधा सिंह 

स्कूल प्रिंसिपल ने बहुत ही कड़े शब्दों मे जब किसान की बेटी ख़ुशी से पिछले एक साल की स्कूल फीस मांगी ,तो ख़ुशी ने कहा मैडम मे  घर जाकर आज पिता जी से कह दूंगी , घर जाते ही बेटी ने माँ से पूछा पिता जी कहाँ है ?

      तो माँ ने कहा तुम्हारे पिता जी तो रात से ही  खेत मे है  बेटी दौड़ती हुई खेत मे जाती है और सारी बात अपने पिता को बताती है ! ख़ुशी का पिता बेटी को गोद मे  उठाकर प्यार करते हुए कहता है की इस बार हमारी फसल बहुत अच्छी हुई है अपनी मैडम को कहना  अगले हफ्ता सारी  फीस आजाएगी,  क्या हम मेला भी जाएंगे ?? ख़ुशी पूछती है.

       हाँ हम मेला भी जाएंगे और पकोड़े, बर्फी भी खाएंगे ख़ुशी के पिता कहते है. ख़ुशी इस बात को सुनकर नाचने लगती है और घर आते वक्त रस्ते मे अपनी सहेलियों को बताती  है की मै अपने माँ पापा के साथ मेला देखने जाउंगी,पकोड़े बर्फी भी खाउंगी.

         ये बात सुनकर पास ही खड़ी एक बजुर्ग कहती है ,बेटा ख़ुशी मेरे लिए क्या लाओगी मेले से ??

काकी हमारी फसल बहुत अच्छी हुई है मे आपके लिए नए कपडे लाऊंगी  ख़ुशी कहती हुई घर दौड़ जाती है ! 

अगली सुबह ख़ुशी स्कूल जाकर अपनी मैडम को बताती है की मैडम इस बार हमारी फसल बहुत अच्छी हुई है. अगले हफ्ते सब फसल बिक जाएगी  और पिता जी आकर सारी फीस भर देंगें.

      प्रिंसिपल : चुप करो तुम, एक साल से तुम बहाने बाजी कर रही हो 

ख़ुशी चुप चाप क्लास मे  जाकर बैठ जाती है और मेला घूमने के सपने देखने लगती है.

      तभी  ओले पड़ने लगते है 

तेज बारिश आने लगती है बिजली कड़कने लगती है पेड़ ऐसे हिलते है मानो अभी गिर जाएंगे. ख़ुशी एकदम  घबरा जाती है.

     ख़ुशी की आँखों मे आंसू आने लगते है वोही डर फिर सताने लगता है डर  सब खत्म होने का , डर फसल बर्बाद होने का ,डर फीस ना दे पाने का ,स्कूल खत्म होने के बाद वो धीरे धीरे कांपती हुई घर की तरफ बढ़ने लगती है। हुआ भी ऐसा कि सभी फसल बर्बाद हो गई और खुशी स्कूल में फीस जमा नही करने के कारण ताना सुनने लगी। 

    उस छोटी सी बच्ची को मेला घुमने और बर्फी खाने का शौक मन में ही रह गया।      

     छोटे किसान और मजदूरों के परिवार में जो दर्द है उसे समझने में पूरी उम्र भी गुजर जाएगी तो भी शायद वास्तविक दर्द को महसूस नही कर सकते आप।

भारत के आम किसान का वास्तविक दर्द यह है।

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