अट्ठारहवीं लोकसभा के लिए चुनावी प्रक्रिया पुरी हो गई हैं और नये सांसदों का चयन भी हो गया हैं। अभी इस अट्ठारहवीं लोकसभा का गठन बाकी हैं जिसमें सबसे पहले चुने हुए सभी सदस्य विधिवत रूप से शपथ लेकर इसके सदस्य बनते हैं | इसके पश्चात् सभी मिलकर लोकसभा के नेता का चयन करते हैं जो प्रधानमंत्री के संवैधानिक पद की शपथ का मूल रूप से हकदार होता हैं। अभी प्रधानमंत्री पद के लिए शपथ को देखा जाये तो अजीब-गरीब प्रक्रिया को करा जाता है ऐसा प्रतित होता हैं जो असंवैधानिक, अनैतिक, अतार्किक व व्यवस्था की अन्य प्रक्रियाओं को गलत साबित करने का विश्वास दिल नहीं दिमाग से भी कराता है। लोकतंत्र के नजरिये से देखें तो यह उसकी छाती पर मूंग दलने जैसा है और देश की जनता पर बोझ डालकर उसका शोषण करना व दुनिया भर के दुसरे राष्ट्राध्यक्षों को बुलाकर उनके सामने अपनी पगडी स्वयं उछालने व ईज्जत एवं संवैधानिक मर्यादाओं की भद्द पीटकर मूर्खता का नंगा नाच करने जैसा हैं।
इसके लिए महामहिम राष्ट्रपति द्वारा सबसे बडे़ राजनैतिक दल के नेता या सबसे बडे़ गठबंधन के नेता को आमंत्रित किया जाता हैं। इस आमंत्रण में राष्ट्रपति अपने सचिवालय द्वारा सरकार गठन का निमंत्रण होता हैं या कार्यपालिका के प्रमुख प्रधानमंत्री की शपथ का यह हमें नहीं मालुम हैं। संवैधानिक व विज्ञान के सिद्धांत के आधार पर यह दोनों गलत व लोकतंत्र के रूप में जनता के साथ भद्दा मजाक है, उसकी पीठ में छुरा घोंपने जैसा है जिसने अभी-अभी अपना वोट देकर संविधान के अनुसार अपने प्रतिनिधियों, जनसेवकों का चयन अपनी सरकार बनाने के लिए किया है। अधिकांश मीडिया व विशेष रूप से न्यूज़ चैनलों के ऐंकर इसे नई भारत सरकार गठन का दसों दिशा में फट्टे बांस की तरह ढोल पीट रहे हैं जबकि यह भारत सरकार का गठन नहीं बल्कि उसके एक हिस्से कार्यपालिका का गठन मात्र हैं।
राजनैतिक दल जिनका कोई एक धर्म, सिद्धांत, नैतिकता व आदर्श नहीं होता जो कब पलट कर किस खेमे में चले जाये उसे खुद पता नहीं होता है। यह राजनैतिक संगठन संसद व उसकी लोकसभा से कब बडे़ व प्रभावी बना कर भारत के संविधान में थोप दिये गये हमें नहीं पता। अभी तो चुने हुए सांसदों ने शपथ लेकर विधिवत रूप से लोकसभा के सदस्य भी नहीं बने हैं। इसलिए संविधान के अनुसार चुने हुये जनप्रतिनिधि अपने नेता का चयन करते हैं वो ही कार्यपालिका के प्रमुख प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने का हकदार होता है, यह बहुत दूर के कोडी की बात हो गई।
वर्तमान में तो संविधान के नियमों को ताक पर रख कर एक व्यक्ति को बुलाकर सीधे प्रधानमंत्री के संवैधानिक पद की शपथ दिलाई जा रही है और सारे कानूनी अधिकार व ताकत देकर उसे अपना बहुमत साबित करने का कहा जा रहा है। इस प्रक्रिया को आदर्श माने तो सभी छात्रों को बोर्ड व अपनी अपनी डिग्रियों के सर्टिफिकेट पहले दे देना चाहिए और उन्हें फिर कहना चाहिए की अब परिक्षा में पास होकर दिखाओ। इससे सैकड़ों छात्र मानसिक अवसाद से आत्महत्या करने से बच सकते है।
यदि प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने वाला व्यक्ति लोकसभा में अपना बहुमत साबित नहीं कर पाया तो वो अपना इस्तीफा दे देगा परन्तु अन्य मंत्रियों के साथ हमेशा के लिए सवर्णिम ईतिहास, पेंशन के रूप में जनता के ऊपर बोझ, दुसरे राष्ट्राध्यक्षों को राजकीय मेहमानों के रूप में बुलाकर व शपथ लेने के प्रोग्राम के नाम पर भव्य आयोजन के रूप में करोडों रूपये जो टैक्स के रूप में जनता के मुंह के निवाले में से छीना गया वो पानी की तरह बहा दिया जायेगा।
हमें आज तक यह समझ नहीं आया की राष्ट्रपति को प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाने की इतनी जल्दी क्यों रहती हैं उनकी कौन सी भैंस किवाड़ तोड़ रही है। यहा नये समय के रूप में कौनसा विरोधी नेता लोगों के साथ उनकी भैंस छिनकर ले जायेगा। संविधान के अनुसार लोकसभा के स्पीकर या अध्यक्ष को वो चयन के बाद शपथ दिलाते हैं न कि पहले शपथ दिलाकर कहते हैं कि जाओं लोकसभा में अपना बहुमत साबित करो।
भारतीय संविधान के अनुसार राष्ट्रपति स्वयं फैसला नहीं ले सकते हैं तो प्रधानमंत्री पद की शपथ के लिए व्यक्ति का चयन वो किस नियम व कानून के आधार पर ले रही हैं यह सबसे बडा यक्ष प्रश्न है। अभी कार्यपालिका मौजूद नहीं है और मुख्य न्यायाधीश से कोई सलाह मांगी नहीं गई जिसके आधार पर फैसले को संवैधानिक रूप से सही ठहराया जा सके। यदि लोकसभा अपने नेता का चयन करे और लोकसभाध्यक्ष उसके नाम को राष्ट्रपति के पास भेजकर उसे प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलाने का अनुरोध व सिफारिश करे तभी व संवैधानिक नियमों के रूप से पूर्णतया सही व लोकतंत्र को मजबूत करने वाला कहलायेगा।
संवैधानिक पदों की शपथों के नियमों व प्रक्रियाओं में इतना दौगलापन संविधान में डा.भीमराव अंबेडकर की अध्यक्षता वाले संविधान सभा ने रखा होगा यह हमे विश्वास नहीं होता है। यह किसने करा, कब करा, कैसे करा यह भूतकाल की बातों को खोदना व अपनी अपनी डेढ होशियारी को बताना जैसा लगता है। जब जागो तभी सवेरा के सिद्धांत पर तत्काल प्रभाव से प्रधानमंत्री पद की शपथ लोकसभा द्वारा नये नेता के चयन का पत्र लोकसभा अध्यक्ष द्वारा सौंपने के बाद दिलानी चाहिए। गांधी को किसने मारा की तरह लोकतन्त्र को किसने बर्बाद किया का प्रश्न स्वयं से न पूछकर दुसरों से पूछना सबसे बडा मानवीय अपराध हैं।
Shailendra Birani