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मोदी के सामने मजबूत विपक्ष बड़ी चुनौती!

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विवेक रंजन सिंह 

संसद सत्र आरंभ हो चुका है। राष्ट्रपति का अभिभाषण भी हो चुका है। अभिभाषण भी ऐसा कि राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ‘ हमारी सरकार, हमारी सरकार के कार्यों ‘ को गिनाते ही दिखीं। एक मजबूत विपक्ष के रूप में इंडिया गठबंधन अपनी कमर कसकर नए संसद भवन में बैठ चुका है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को भी यह अंदाजा नहीं रहा होगा कि नए संसद भवन में उन्हें एक मजबूत विपक्ष से भिड़ना होगा। उनके दो कार्यकाल प्रधानमंत्री और उससे पहले गुजरात के मुख्यमंत्री के तौर पर शायद ही उन्हें इस तरह के विपक्ष का सामना कभी करना पड़ा हो। आज जब संसद की कार्यवाई शुरू हो चुकी है और उसमे छह दिन बीत गए हैं, ऐसे में रोज विपक्ष की ओर से एन डी ए सरकार को विभिन्न मुद्दों पर ललकारा जाना और सत्ता पक्ष द्वारा ‘ संरक्षित ‘ किए जाने की बात से लगता है कि बीते दो कार्यकालों में मोदी सरकार और उनके मंत्री जिस तेवर के साथ संसद में बैठते थे और विपक्ष की बातों को अनसुना करते थे, वो अब कमजोर पड़ रहा है। राहुल गांधी के भाषण के बीच गृह मंत्री,रक्षा मंत्री और संसदीय कार्य मंत्री का बार बार खड़े होकर नेता प्रतिपक्ष की बातों का खण्डन करना,अप्रत्याशित दृश्य था।

राहुल गांधी नेता प्रतिपक्ष के रूप में मोदी के सामने बड़ी चुनौती बनकर उभरे हैं। वो पहले भी प्रधानमंत्री के साथ खुली बहस को तैयार हो चुके हैं। अब संसद में राहुल गांधी की वक्तव्य शैली में जो सुधार हुआ है उससे सत्ता पक्ष में चिंता जरूर बढ़ी है। अखिलेश यादव का भी संसद भवन में पहुंचना,मोदी सरकार के लिए बड़ी चुनौती है जिसे उन्हें आगे भी स्वीकारना पड़ेगा। कांग्रेस पार्टी और उनके सहयोगी दलों को लेकर पहले ये बात कही जाती रही है कि विपक्ष को अपने ऊपर लग रहे आरोपों का खंडन करना नहीं आता। विपक्ष सही से सत्ता की बातों को डिकोड नही करना जानती,मगर अभी चल रही संसदीय कार्यवाइयों को देखकर ये बात नहीं कही जा सकती।

अठारहवीं लोकसभा का पहला संसद सत्र ही काफी गर्म जोशी के साथ शुरू हुआ है। अखिलेश यादव, राहुल गांधी, महुआ मोइत्रा के भाषणों से सत्ता पक्ष में खलबली का माहौल है। लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला भी काफी पशोपेश में नजर आ रहे हैं। चुनाव खतम होने के बाद जो बात कही जा रही थी कि ओम बिड़ला भले ही लोकसभा स्पीकर बन जाएं मगर इस बार की संसद पहले जैसे नहीं चलने वाली, वही बात सच होती दिख रही है। अखिलेश यादव ने पहले ही दिन कहा था कि माननीय लोकसभा अध्यक्ष महोदय को सत्ता पक्ष पर भी अंकुश लगाने की आवश्यकता है,उन्हें सिर्फ विपक्ष पर लगाम नहीं लगाना चाहिए। इधर राहुल गांधी ने भी खुलकर ये बात बोल दी कि बतौर लोकसभा अध्यक्ष,उन्हें निष्पक्ष होना चाहिए। संसद के भीतर कोई बड़ा छोटा नहीं होता। बड़ा सिर्फ अध्यक्ष होता है। राहुल गांधी ने ये भी हवाला दिया कि अध्यक्ष महोदय मोदी के सामने झुककर नमस्कार करते हैं और उनसे ( राहुल गांधी) सीधे तनकर हाथ मिलाते है। सत्ता पक्ष ने इस बात पर हंगामा करने की कोशिश की मगर तुरंत बाद ही राहुल गांधी ने ताश का नया पत्ता निकाला जिसपर खुद प्रधानमंत्री को खड़ा होना पड़ा। राहुल गांधी ने कहा कि जो लोग ( सत्ता पक्ष की ओर इशारा करते हुए) खुद को हिंदू कहते हैं वो हिंसा करते हैं,वो असत्य बोलते हैं। अब जब बात हिंदू को लेकर हो तो ऐसे में भाजपा चुप कैसे रह सकती है। मोदी ने तुरंत खड़े होकर इस विषय को गंभीर बताया और कहा कि राहुल गांधी पूरे हिंदू समाज को हिंसक नहीं कह सकते हैं। राहुल गांधी ने तुरंत इसका जवाब दिया। वो भी ऐसा जवाब जो अब तक भाजपा और मोदी को कभी सुनने को नहीं मिला था। राहुल गांधी का यह कहना कि भाजपा पूरा हिंदू समाज नहीं है, नरेंद्र मोदी पूरा हिंदू समाज नहीं हैं, आर एस एस पूरा हिंदू समाज नहीं है, इस बात ने नरेंद्र मोदी के माथे पर पसीना ला दिया। 

दरअसल बात ये है कि नरेंद्र मोदी को मजबूत विपक्ष का सामना करने की आदत नहीं पड़ी है। मोदी इस बात को हमेशा कहते रहे हैं या जताते रहे हैं कि वो ही अकेले सत्ता है। एक अकेला सब पर भारी जैसे उनके बयानों से तो यही अंदाज़ा लगाया जाना चाहिए। चार सौ पार का नारा देने के पीछे नरेंद्र मोदी की मंशा साफ साफ यही थी कि संसद के भीतर से समूचे विपक्ष को खतम कर दिया जाए, मगर ऐसा हो नहीं पाया। परिणाम उनकी मंशा के बिलकुल विपरीत निकले और इस परिणाम से सत्ता पक्ष के तेवर ढीले पड़े हैं।

विपक्ष इस बात को अच्छे से जान चुका है कि मोदी और उनकी सरकार के फैलाए मायाजाल को उन्हीं की बातों से काटना है। मोदी के हिंदुत्व एजेंडे की चाल पर  विपक्ष ने अपना हिंदू कार्ड फेंका है। शिव की तस्वीर को बार बार दिखाकर राहुल गांधी यही साबित करना चाहते थे कि ‘ हर हर महादेव ‘ के नारे लगाने से ज्यादा जरूरी है कि भगवान शिव के जीवन दर्शन को समझा जाए। राहुल गांधी ने अहिंसा की बात की और बोला कि शिव ने कहा है ‘ न डरो न डराओ, उनकी अभय मुद्रा ‘ यही बताती है। ऐसा लगता है कि बार बार अयोध्या का जिक्र करके संसद के माध्यम से राहुल गांधी और विपक्ष देश में बड़ा संदेश देने की तैयारी में है। इसी बीच महुआ मोइत्रा का यह कहना कि ‘ जय श्री राम ‘ के नारे से राम ही गायब हैं। ये सब बातें संसद में उठने के पीछे विपक्ष की बड़ी रणनीति नजर आती है। जैसे विपक्ष ने यह ठान लिया हो कि हिंदू वोट बैंक की राजनीति करने वाली मोदी सरकार को ही हिंदू विरोधी साबित कर दे !

पहले ही संसद सत्र में ऐसा माहौल देखकर लगता है कि आने वाले दिनों में सत्ता के लिए विपक्ष नई नई मुसीबतें खड़ा करने वाला है। अब तो राहुल गांधी की भागीदारी कई बड़े निर्णयों को लेने में भी है। मोदी ने संसद में भले ही मजाकिया अंदाज में ये कहा हो कि ‘ विपक्ष की बात को गंभीरता से लेना होगा ‘ मगर उन्हें सच में विपक्ष को गंभीरता से लेने की अब जरूरत है। मोदी को यह समझ लेना होगा कि इस बार की संसद पहले जैसी संसद नहीं है। पहले ये देखा जाता रहा है कि विपक्ष के लोग हंगामा करते हुए संसद भवन से वॉकआउट कर जाते थे और कोई भी बिल ध्वनिमत से पास हो जाया करता था मगर इस बार तो एकदम विपरीत स्थिति है। महुआ मोइत्रा के भाषण शुरू होते ही संसद भवन से सभापति और प्रधानमंत्री का वाकआउट करना क्या दर्शाता है?

इतना तो साफ है कि संसद में बहुत कुछ बदला बदला सा लग रहा है। अभी इस शुरुआत के माहौल से आने वाले दिनों में क्या होगा,ये साफ साफ नहीं कहा जा सकता मगर इतना तो साफ है कि अब विपक्ष वॉकआउट तो नहीं करने वाली। उधर राज्यसभा में जगदीप धनगढ़ ने भी कांग्रेस अध्यक्ष खरगे के भाषण के दौरान जिस तरह का रवैया अपनाया उससे लगता वो भी कहीं न कहीं विपक्ष की बातों से अंदर ही अंदर संतुष्ट हैं। अब उन्हें कुछ कड़वी घूंटें पीनी ही पड़ेंगी। लोकसभा में अध्यक्ष ओम बिड़ला ने भी विपक्ष को बोलने को ठीक ठाक छूट दी। इसपर भाजपा को आपत्ति भी हुई। गृह मंत्री अमित शाह ने दो बार खड़े होकर खुद को संरक्षित करने की बात कही। अमित शाह का व्यवहार ऐसा बदलेगा, ये किसी को उम्मीद थी क्या ? अब विपक्ष उनके ही फैलाए रायते को उन्हीं के ऊपर उड़ेलने में लग गई है। अग्निवीर, पेपर लीक, युवाओं के मुद्दों को उठाकर राहुल गांधी ने सत्ता पक्ष के कई मंत्रियों को बीच सदन में उठने को विवश कर दिया।

अब जरूरत है कि नरेंद्र मोदी एक मजबूत विपक्ष को स्वीकार करें। उन्हें यह आदत डालनी पड़ेगी कि उनके सामने नेता प्रतिपक्ष के रूप में वो राहुल गांधी नहीं है जिन्हें दस सालों में ‘ पप्पू ‘ घोषित करने का काम उनकी सरकार ने किया है। विपक्ष भी आवाम की एक मजबूत आवाज है ये बात एन डी ए की सरकार को समझना होगा। दस सालों के बाद एक स्वस्थ लोकतंत्र की झलक संसद भवन में देखने को मिल रही है इसे नकारा नहीं जाना चाहिए। 

विवेक रंजन सिंह 

छात्र, पत्रकारिता विभाग 

महात्मा गांधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय वर्धा महाराष्ट्र

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