
विमला देवी
जयपुर, राजस्थान
राजस्थान की राजधानी जयपुर में स्थित हवा महल, अपनी भव्यता और ऐतिहासिक महत्व के लिए प्रसिद्ध है. इसे देखने के लिए दूर-दूर से पर्यटक आते रहते हैं, जिसकी वजह से यह पूरा इलाका हमेशा गुलज़ार रहता है. पर्यटकों की वजह से यहां की व्यापारिक गतिविधियां भी खूब रहती हैं. जिससे बड़ी संख्या में महिलाओं और पुरुषों को रोज़गार हासिल होता है. लेकिन कुछ महिलाएं और पुरुष ऐसे भी हैं जो अपनी आजीविका के लिए यहां रेहड़ी-पटरी पर दुकान लगाते हैं, संघर्ष करते हैं और अपनी मेहनत के बलबूते पर परिवार के लिए दो वक़्त की रोटी की व्यवस्था करते हैं. अस्थाई दुकान होने की वजह से इन्हें प्रतिदिन कई प्रकार की चुनौतियों का भी सामना करना पड़ता रहता है. इसके बावजूद यह अपनी मेहनत और संघर्ष से रोज़ एक नई कहानी लिखते हैं.

इन्हीं में एक 60 वर्षीय मदीना बानो भी हैं, जिनकी आंखों में संघर्ष की झलक और आत्मनिर्भरता की चमक साफ देखी जा सकती है. उनके दो बेटे और बहुएं हैं, लेकिन वे उनका ख्याल नहीं रखते हैं. बुढ़ापे में जब इंसान को अपने परिवार के सहारे की सबसे ज्यादा जरूरत होती है, तब मदीना बानो को अपने ही परिवार से उपेक्षा झेलनी पड़ रही है. लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी. पति की मौत के बाद मदीना बनो किसी पर निर्भर रहने से बेहतर खुद ही रोज़ी रोटी कमाने निकल पड़ी. वह रोज़ाना हवा महल के पास एक कोने में बैठकर मिट्टी के खिलौने बेचती हैं. रंग-बिरंगे खिलौने न केवल बच्चों का मन मोहते हैं, बल्कि उनकी जीविका का एकमात्र साधन भी हैं.
दिनभर तपती धूप में बैठकर वे राहगीरों को अपनी दुकान की ओर आकर्षित करने का प्रयास करती हैं. कभी-कभी बिक्री अच्छी होती है, तो दिन आराम से कटता है, लेकिन कई बार उन्हें खाली हाथ भी घर लौटना पड़ता है. बावजूद इसके, वे उम्मीद का दामन कभी नहीं छोड़ती हैं. सांगानेरी गेट की रहने वाली मदीना बनो बताती हैं कि वह होलसेल दुकानों से इन खिलौनों को खरीदती हैं. एक खिलौने पर उन्हें 20 रुपए तक मिल जाते हैं. इस तरह प्रतिदिन उन्हें 200 रुपए तक मिल जाते हैं. लेकिन प्रचंड गर्मी के दिनों में उन्हें एक दिन में 50 रूपए भी नहीं मिल पाते हैं. इसके बावजूद वह हिम्मत नहीं हारती हैं.
संघर्ष की इस कहानी में 41 वर्षीय ममता भी हैं, जो अपने परिवार के भरण पोषण के लिए कपड़े की फेरी लगाती हैं. उनके पति एक कपड़ा मिल में कर्मचारी के रूप में काम करते हैं. ममता बताती हैं कि बच्चों के उज्जवल भविष्य के लिए पांच वर्ष पूर्व उन्होंने खुद का रोज़गार शुरू करने का निर्णय लिया. हालांकि उनके पति ने उनका साथ दिया लेकिन पुरानी विचारधारा वाले उनके सास ससुर ने इसका काफी विरोध किया. लेकिन धीरे धीरे जब आमदनी होने से परिवार की आर्थिक स्थिति अच्छी होने लगी तो उन्होंने ममता का विरोध करने की जगह उनका हौसला बढ़ाने लगे. हवा महल से करीब 11 किमी दूर दुर्गापुर की रहने वाली ममता स्वयं सहायता समूह से भी जुड़ी हुई हैं. इसके बावजूद उन्हें आजीविका के लिए रोज़ संघर्ष करनी पड़ती है.

वहीं उत्तर प्रदेश के जौनपुर के रहने वाले 38 वर्षीय प्रकाश, पिछले कई वर्षों से हवा महल के सामने चने और नमकीन बेचकर अपने परिवार का पालन-पोषण कर रहे हैं. उनके दो बच्चे अभी स्कूली शिक्षा प्राप्त कर रहे हैं. घर की आमदनी और बच्चों की अच्छी शिक्षा के लिए उनकी पत्नी मुन्नी आसपास के घरों में घरेलू सहायिका के रूप में काम करती हैं. इस तरह दोनों मिलकर परिवार की जरूरतों को पूरा करने का प्रयास करते हैं. प्रकाश का जीवन आसान नहीं है. अस्थाई दुकान होने के कारण हमेशा उनकी रोजी-रोटी पर संकट मंडराता रहता है. उनके लिए हर दिन एक नई चुनौती के रूप में आता है, लेकिन वह हर मुश्किल का सामना करते हुए अपने परिवार के लिए संघर्षरत करते हैं.
हालांकि रोजगार की जद्दोजहद से अलग 75 वर्षीय कमला देवी, हवा महल के पास ही एक प्याऊ चलाती हैं. जहां वह लोगों को सेवाभाव से पानी पिलाती हैं. उनकी झुर्रियों से भरा चेहरा अनुभव और सेवा की भावना से ओतप्रोत होता है. गर्मी के दिनों में जब हवा महल घूमने आये लोग प्यास से बेहाल होते हैं, तब उनकी प्याऊ एक वरदान साबित होती है. कमला देवी बिना किसी स्वार्थ के राहगीरों को शुद्ध और ठंडा पानी पिलाती हैं. इसके बदले में वह कभी पैसे की मांग नहीं करती हैं. लेकिन जब कोई उन्हें पैसा देता है तो वह मना भी नहीं करती हैं.
वह मानती हैं कि सेवा ही सबसे बड़ा धर्म है. उनका यह निस्वार्थ भाव हर किसी को प्रेरित करता है. हालांकि उनकी अपनी आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं है, फिर भी वे दूसरों की मदद करने से पीछे नहीं हटतीं हैं. वह सुबह आठ बजे से शाम सात बजे तक लोगों को शीतल जल पिलाने का काम करती हैं. वह बताती हैं कि उनका केवल एक बेटा है जो घर पर गौशाला चलाता है, जिसका दूध बेचकर घर का राशन आ जाता है. इसके अतिरिक्त उन्हें वृद्धा पेंशन भी मिलती है. जिससे मां बेटे का गुज़ारा चल जाता है. इसीलिए वह पानी पिलाने का पैसा नहीं मांगती हैं.
हवा महल के पास पर्यटक अपनी यादों को संजोने के लिए तस्वीरें खिंचवाते हैं, वहीं दूसरी ओर मदीना बानो, ममता और प्रकाश जैसे कई ऐसे लोग हैं, जो अपनी रोजमर्रा की जिंदगी की जद्दोजहद में लगे रहते हैं. उनकी दुनिया पर्यटकों की चमक-दमक से दूर एक अलग ही हकीकत बयां करती है. इनका जीवन अस्थिरता से भरा हुआ है. जहां इनकी मुश्किलें कभी खत्म नहीं होती हैं. वे सर्दी, गर्मी और बरसात में भी अपने व्यवसाय को चलाने की कोशिश करते हैं. अस्थाई दुकान होने की वजह से कई बार उन्हें आर्थिक रूप से बहुत नुकसान भी उठाना पड़ता है. इन तमाम मुश्किलों के बावजूद, इन लोगों के चेहरे पर एक अलग ही चमक होती है. यह चमक संघर्ष की है, मेहनत की है और कभी हार न मानने की भावना की है.
लेखिका संघर्ष संस्थान, दूदू से जुड़ी हैं
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