अग्नि आलोक
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जिद्दी राम ईकबाल? 

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उमेश प्रसाद सिंह पटना 

               एकबार  राम ईकबाल  जी और सच्चिदानंद  सिंह  दोनो आरा से सासाराम  छोटी लाईन की ट्रेन से जा रहे थे। बीच राह में सूर्यास्त  हो गया। पूरी ट्रेन में बिजली नहीं जल रही थी। एक स्टेशन पर जब गाड़ी रूकी तो दोनो उतरकर स्टेशन मास्टर  से गुजारिश किये कि रात के अंधेरे में बिजली जलवाओ? महिला – बच्चे हैं? स्टेशन मास्टर  के कान पर जूॅ नहीं रेंग रहा था। इस बीच गाड़ी खुल गयी ।दोनों दौड़े तबतक गार्ड  का डब्बा गुजर रहा था और वह हरी झंड़ी दिखा रहा था ।दोनो ने गार्ड का हाथ पकड़कर खींच दिया और गार्ड  प्लेटफार्म  पर गिर गया।गाड़ी बहुत आगे बढ़ गयी। कुछ दूर के बाद  जब गाड़ी रूकी ; इधर प्लेटफार्म  पर गुत्थमगुत्थी।इन लोगों का तर्क  था ; गाड़ी को प्लेटफार्म  पर लाओ और बिजली जलाओ ? ट्रेन को आना पड़ा – बिजली जली ; फिर गाड़ी गंतव्य की ओर चली।

                   नियम कायदे का अनुपालन  करो; वरना नियम हम पालन करायेंगे? शासन किसी का है;  बात हमारी चलेगी ; नियम से चलेगी? यह थे राम ईकबाल  वरसी।

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