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लगातार बढ़ रहे हैं खुदकुशी के मामले, आखिर चूक कहां हो रही?

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नदीम

पिछले हफ्ते लखनऊ यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाली एक लड़की ने खुदकुशी कर ली। उसकी खुदकशी की खबर इसलिए खास बनी कि हास्टल में अपने दोस्त से वीडियो कॉल पर उसने अपनी जिंदगी को खत्म करने का फैसला लिया और देखते-देखते वह फंदे पर झूल गई। इस उम्र में जब कोई युवा अपनी जान देता है, तो वह सिर्फ एक जीवन का अंत नहीं होता बल्कि एक साथ कई सपनों का मर जाना होता है। एक वह सपना दम तोड़ता है जो वह खुद वह युवा देख रहा होता है, दूसरा सपना वह होता जो उसके जरिए से उसके मां-बाप, भाई-बहन और परिवार के तमाम दूसरे सदस्य देख रहे होते हैं, तीसरा सपना वह होता है जो समाज हर नवजवान से देखता है। प्रारंभिक जांच में इस तरह के संकेत मिल रहे हैं कि खुदकुशी की वजह दोस्ती में नाइत्तेफाकी का ज्यादा जगह घेर लेना था। ऐसा मुमकिन भी हो सकता है।

वैसे अगर एनसीआरबी के आंकड़ों पर जाएं तो हाल के वर्षों में इस तरह के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। यहीं से बात सोचने की होती है कि आखिर चूक कहां हो रही है? खुदकुशी की जो वजह सामने दिख रही होती है, वह बहुत सतही होती हैं- शादी की जो बात चल रही थी, वह टूट गई। लड़की या लड़के में से कोई भरोसे की कसौटी पर खरा नहीं उतरा या मां-बाप युवा जोड़े के किसी फैसले पर राजी नहीं थे….बस कुछ इस तरह की वजहें ही ऐसे खुदकुशी के मामलों में देखी जाती हैं। वैसे यह ऐसी वजहें हैं, जो मौत का सबब नहीं बननी चाहिएं थीं।

दरअसल एक मनोवैज्ञानिक का लेख पढ़ रहा था। लेख में उसने अपने अनुभवों का साझा किया था। उसने लिखा था कि ‘मेरे पास काउंसिलिंग के लिए जो भी युवा आते हैं, उनमें मानसिकता दृढ़ता की कमी होती है। उनके पास तर्क नहीं होते हैं। जब मैं उनसे कहता हूं कि ठीक है, आप जिस लड़की या लड़के को प्यार करते हैं, अगर आपको नहीं मिल पा रहा है या नहीं मिल पाई तो इसमें जिंदगी को खत्म को कर लेने की बात कहां से आ जाती है? उस लड़के या लड़की को आप पैदाइश से तो जानते नहीं। हाल फिलहाल के कुछ वर्षों में ही आप उससे मिले होंगे, एक-दूसरे को एक-एक दूसरे की कुछ बातें अच्छी लगी होंगी और वह दोस्ती प्रगाढ़ होती गई होगी। अगर ब्रेकअप हो गया है, ऐसा तो नहीं उस ब्रेकअप के साथ दोस्त बनाने के तमाम दूसरे विकल्प भी खत्म हो गए होंगे। उससे अच्छा दोस्त मिलेगा। मैं उनको तैयार करता हूं कि किसी दोस्त का बिछड़ जाना या कोई फैसले का पूरा न होने जिंदगी का खत्म हो जाने जैसा नहीं होता है। और उन्हें तर्कों के साथ नई जिंदगी शुरू करने में बड़ी मशक्कत करनी पड़ती है।’

लेकिन बहुत सारे परिवार ऐसे होते होंगे जो अपने बेटे-बेटी को निराशा के भंवर से बाहर निकालने के लिए किसी मनोवैज्ञानिक की मदद नहीं ले पाते होंगे और बहुत सारे मां-बाप तो ऐसे भी होते हैं जिन्हें पता ही नहीं चल पाता है कि उनके बेटे-बेटी के अंदर इनदिनों क्या मथ रहा है? उन्हें तो बहुत सारी बातें किसी हादसे के बाद पता चलती हैं। इसीलिए ऐसी घटनाओं की सतही वजह जानने के बजाय उसके मूल में जाना ज्यादा जरूरी हो जाता है। एक विशेषज्ञ का मत है कि वक्त आ गया है कि हमें अपने एजूकेशन सिस्टम के भीतर झांकना ज्यादा जरूरी हो गया है। कहीं ऐसा तो नहीं कि हमारा एजूकेशन सिस्टम नई पीढ़ी को कामयाब ‘रटटू तोता’ बनाने में तो कामयाब हो रहा हो लेकिन वह दिमागी रूप से मजबूत पीढ़ी का निर्माण न कर पा रहा हो?

नदीम

पिछले हफ्ते लखनऊ यूनिवर्सिटी में पढ़ने वाली एक लड़की ने खुदकुशी कर ली। उसकी खुदकशी की खबर इसलिए खास बनी कि हास्टल में अपने दोस्त से वीडियो कॉल पर उसने अपनी जिंदगी को खत्म करने का फैसला लिया और देखते-देखते वह फंदे पर झूल गई। इस उम्र में जब कोई युवा अपनी जान देता है, तो वह सिर्फ एक जीवन का अंत नहीं होता बल्कि एक साथ कई सपनों का मर जाना होता है। एक वह सपना दम तोड़ता है जो वह खुद वह युवा देख रहा होता है, दूसरा सपना वह होता जो उसके जरिए से उसके मां-बाप, भाई-बहन और परिवार के तमाम दूसरे सदस्य देख रहे होते हैं, तीसरा सपना वह होता है जो समाज हर नवजवान से देखता है। प्रारंभिक जांच में इस तरह के संकेत मिल रहे हैं कि खुदकुशी की वजह दोस्ती में नाइत्तेफाकी का ज्यादा जगह घेर लेना था। ऐसा मुमकिन भी हो सकता है।

वैसे अगर एनसीआरबी के आंकड़ों पर जाएं तो हाल के वर्षों में इस तरह के मामले लगातार बढ़ रहे हैं। यहीं से बात सोचने की होती है कि आखिर चूक कहां हो रही है? खुदकुशी की जो वजह सामने दिख रही होती है, वह बहुत सतही होती हैं- शादी की जो बात चल रही थी, वह टूट गई। लड़की या लड़के में से कोई भरोसे की कसौटी पर खरा नहीं उतरा या मां-बाप युवा जोड़े के किसी फैसले पर राजी नहीं थे….बस कुछ इस तरह की वजहें ही ऐसे खुदकुशी के मामलों में देखी जाती हैं। वैसे यह ऐसी वजहें हैं, जो मौत का सबब नहीं बननी चाहिएं थीं।

दरअसल एक मनोवैज्ञानिक का लेख पढ़ रहा था। लेख में उसने अपने अनुभवों का साझा किया था। उसने लिखा था कि ‘मेरे पास काउंसिलिंग के लिए जो भी युवा आते हैं, उनमें मानसिकता दृढ़ता की कमी होती है। उनके पास तर्क नहीं होते हैं। जब मैं उनसे कहता हूं कि ठीक है, आप जिस लड़की या लड़के को प्यार करते हैं, अगर आपको नहीं मिल पा रहा है या नहीं मिल पाई तो इसमें जिंदगी को खत्म को कर लेने की बात कहां से आ जाती है? उस लड़के या लड़की को आप पैदाइश से तो जानते नहीं। हाल फिलहाल के कुछ वर्षों में ही आप उससे मिले होंगे, एक-दूसरे को एक-एक दूसरे की कुछ बातें अच्छी लगी होंगी और वह दोस्ती प्रगाढ़ होती गई होगी। अगर ब्रेकअप हो गया है, ऐसा तो नहीं उस ब्रेकअप के साथ दोस्त बनाने के तमाम दूसरे विकल्प भी खत्म हो गए होंगे। उससे अच्छा दोस्त मिलेगा। मैं उनको तैयार करता हूं कि किसी दोस्त का बिछड़ जाना या कोई फैसले का पूरा न होने जिंदगी का खत्म हो जाने जैसा नहीं होता है। और उन्हें तर्कों के साथ नई जिंदगी शुरू करने में बड़ी मशक्कत करनी पड़ती है।’

लेकिन बहुत सारे परिवार ऐसे होते होंगे जो अपने बेटे-बेटी को निराशा के भंवर से बाहर निकालने के लिए किसी मनोवैज्ञानिक की मदद नहीं ले पाते होंगे और बहुत सारे मां-बाप तो ऐसे भी होते हैं जिन्हें पता ही नहीं चल पाता है कि उनके बेटे-बेटी के अंदर इनदिनों क्या मथ रहा है? उन्हें तो बहुत सारी बातें किसी हादसे के बाद पता चलती हैं। इसीलिए ऐसी घटनाओं की सतही वजह जानने के बजाय उसके मूल में जाना ज्यादा जरूरी हो जाता है। एक विशेषज्ञ का मत है कि वक्त आ गया है कि हमें अपने एजूकेशन सिस्टम के भीतर झांकना ज्यादा जरूरी हो गया है। कहीं ऐसा तो नहीं कि हमारा एजूकेशन सिस्टम नई पीढ़ी को कामयाब ‘रटटू तोता’ बनाने में तो कामयाब हो रहा हो लेकिन वह दिमागी रूप से मजबूत पीढ़ी का निर्माण न कर पा रहा हो?

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