*सुसंस्कृति परिहार
15फरवरी का दिन एक ऐतिहासिक दिन में दर्ज होगा जब सरकार की लूट का पर्दाफाश हुआ है।आगे बढ़ने से पहले ये समझ लिया जाए चुनावी बांड होता क्या है देखिए नौयह एक वचन पत्र की तरह होता था जिसे भारत का कोई भी नागरिक या कंपनी भारतीय स्टेट बैंक की चुनिंदा शाखाओं से खरीद सकता था और अपनी पसंद के किसी भी राजनीतिक दल को गुमनाम तरीके से दान कर सकता था। इन पर कोई ब्याज भी नहीं लगता था। यह 1000 ,10000 एक लाख दस लाख और एक करोड़ रुपयों के मूल्य में उपलब्ध थे।
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार (15 फरवरी) को एक एतिहासिक फैसले में विवादास्पद चुनावी बॉन्ड को असंवैधानिक करार दिया। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पांच-जजों की पीठ ने फैसला सुनाते हुए कहा कि किसी राजनीतिक दल को वित्तीय योगदान देने से बदले में उपकार करने की संभावना बन सकती है।पांच जजों की पीठ ने कहा कि राजनीतिक दलों को गुमनाम चंदे वाली चुनावी बॉन्ड योजना संविधान के अनुच्छेद 19(1)(ए) के तहत प्रदत्त मतदाताओं के सूचना के अधिकार का उल्लंघन करती है। चुनावी बॉन्ड योजना की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर फैसला सुनाते हुए सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा, “इस बात की भी वैध संभावना है कि किसी राजनीतिक दल को वित्तीय योगदान देने से धन और राजनीति के बीच बंद संबंध के कारण प्रति-उपकार की व्यवस्था हो जाएगी। यह नीति में बदलाव लाने या सत्ता में राजनीतिक दल को वित्तीय योगदान देने वाले व्यक्ति को लाइसेंस देने के रूप में हो सकती है।” यह कहते हुए कि राजनीतिक चंदा योगदानकर्ता को मेज पर एक जगह देता है, यानी यह विधायकों तक पहुंच बढ़ाता है और यह पहुंच नीति निर्माण पर प्रभाव में भी तब्दील हो जाती है। सीजेआई चंद्रचूड़ ने कहा कि राजनीतिक दलों की फंडिंग की जानकारी मतदान का विकल्प के प्रभावी अभ्यास के लिए आवश्यक है। “राजनीतिक असमानता में योगदान देने वाले कारकों में से एक, आर्थिक असमानता के कारण व्यक्तियों की राजनीतिक निर्णयों को प्रभावित करने की क्षमता में अंतर है। उन्होंने कहा, ”आर्थिक असमानता के कारण धन और राजनीति के बीच गहरे संबंध के कारण राजनीतिक जुड़ाव के स्तर में गिरावट आती है।”ये बांड भारत सरकार ने जनवरी जनवरी 18 में जारी किए गए थे। अक्टूबर 2023 में इस के खिलाफ याचिका संवैधानिक पीठ पहुंची । नवम्बर 2023 में इस निर्णय को सुरक्षित रखा गया और 15 फरवरी 2024 को इसे असंवैधानिक करार करते हुए इस पर रोक लगाई गई है।सुप्रीम कोर्ट ने इलेक्टोरल बॉन्ड योजना की आलोचना की और कहा कि राजनीतिक पार्टियों को हो रही फंडिंग की जानकारी मिलना बेहद जरूरी है इसके लिए 6मार्च तक अवधि दी गई है।
विदित हो,भाजपा को 2022-23 में चुनावी बॉन्ड के माध्यम से लगभग 1300 करोड़ रुपये मिले।यह राशि इसी अवधि में इस माध्यम (चुनावी बॉन्ड) से विपक्षी दल कांग्रेस को प्राप्त धनराशि से सात गुना अधिक है. निर्वाचन आयोग को सौंपी गई पार्टी की वार्षिक ऑडिट रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 2022-23 में भाजपा को कुल 2120 करोड़ रुपये मिले जिसमें से 61 प्रतिशत चुनावी बॉन्ड से प्राप्त हुए. वित्त वर्ष 2021-22 में पार्टी को कुल 1775 करोड़ रुपये का चंदा प्राप्त हुआ था। वर्ष 2022-23 में पार्टी की कुल आय 2360.8 करोड़ रुपये रही, जो वित्त वर्ष 2021-22 में 1917 करोड़ रुपये थी. दूसरी ओर, कांग्रेस को चुनावी बॉन्ड के जरिये 171 करोड़ रुपये की आय हुई, जो वित्त वर्ष 2021-22 में 236 करोड़ रुपये से कम थी।ये बताता कि इस गुमनाम फंडिंग के ज़रिए कारपोरेट के हित में सामंजस्य पूर्वक चुनाव प्रभावित किया गया।
सुब्रमण्यम स्वामी ने चुनावी बॉन्ड स्कीम रद्द किए जाने के बाद सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर अपनी प्रतिक्रिया दी है।स्वामी ने पीएम मोदी से भी इस्तीफे की मांग की है.सुब्रमण्यम स्वामी ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म X पर लिखा, ”मुझे लगता है कि मोदी को इस्तीफा देने के लिए कहना चाहिए क्योंकि य चुनावी बांड पागलपन भरा विचार था और एक बड़ा घोटाला बन गया, जिसने भ्रष्टाचार से लड़ने के भाजुपा के दावे को नुकसान पहुंचाया. पार्टी की खातिर मोदी को इस्तीफा दे देना चाहिए।”
इससे पूर्व भी कोरोना के दौरान प्रधानमंत्री केयर फंड का घोटाला हुआ उसमें जिस तरह लूट हुई और उसका ब्यौरा आज तक जनता को नहीं दिया गया।जबकि इस फंड में आमजन के दान के अलावा बड़ी संख्या में विदेशी एजेंसियों ने मदद की थी।जनता के पैसों की इस भारी भरकम लूट का हिसाब भी जनता को मांगना चाहिए।सुको के इस निर्णय से लोगों ने राहत महसूस की है।