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खतरे में अस्तित्व : एवरेस्ट पर ट्रैफ़िक जाम

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पुष्पा गुप्ता 

     कोरोना से पहले 2019 के सीजन में दुनिया के सबसे ऊँचे पहाड़ माउंट एवरेस्ट पर इतने लोग चढ़ने आ गए कि जाम लग गया। उस जाम के कारण दुर्घटना हुयी और ११ लोग मारे गए .उनमे २ भारतीय भी हैं । ४ दिन पहले एक ही दिन 250 से जयादा लोग एवरेस्ट शिखर पर चढ़ने के लिए लाइन लगाए हुए थे। ये जाम लगने की घटनाये पहले भी हुयी हैं

      1953 में जब एडमंड हिलेरी एवं तेनजिंग नोरगे एवरेस्ट के शिखर पर चढे थे तो उन्होनंे सोचा नहीं होगा कि उनके इस अभियान के मात्र चार दशक बाद एवरेस्ट पर चढना एक महंगी हॉबी और धंधे में बदल जाएगा। आज माउंट एवरेस्ट पर पर्वतारोहियों द्वारा फैलाया गया कूडा इस महान पर्वत को दूषित कर रहा है।

        एवरेस्ट पर्वत महान हिमालय की महालंगूर श्रंखला में स्थित है। इसकी स्थिति चीन एवं नेपाल सीमा पर है लेकिन एवरेस्ट पर्वत मुख्यतया नेपाल में ही है। 1850 के दशक में राधानाथ सिकदर नाम के एक बंगाली सर्वेयर ने एवरेस्ट के सबसे उंचे पहाड होने का पता लगाया था।

       तत्कालीन, सर्वे ऑफ इण्डिया के महानिदेशक जॉर्ज एवरेस्ट के नाम पर इसका नाम मांउट एवरेस्ट रखा गया। एवरेस्ट की उंचाई समुद्र तल से लगभग 29029 फीट है। जो 8848 मीटर है।

एवरेस्ट पर चढने के गंभीर प्रयास 1921 में शुरू हुए जब तिब्बत ने विदेशियों के लिए अपने देश के दरवाजे खोले, नेपाल में घुसना उस समय तक विदेशियों के लिए बहुत मुश्किल था क्योंकि नेपाल सरकार प्रवेश की अनुमति नहीं देती थी।

1921-22 में दो ब्रिटिश अभियान एवरेस्ट पर गये लेकिन दोनोें असफल रहे।

      29 मई, 1953 के दिन न्यूजीलैंड के एडमंड हिलेरी एवं नेपाली शेरपा तेनजिंग नोर्गे ने इस पर चढने में सफलता पाई। ये दोनों कर्नल जोन हंट के नेतृत्व वाले एक ब्रिटिश अभियान दल के सदस्य थे। एवरेस्ट के शिखर पर वर्ष के ज्यादातर समय तेज हवाएं चलती रहती है और तापमान हमेश ‘शून्य’ से कम रहता है।

      सामान्य भूमि के मुकाबले ऑक्सीजन मुश्किल से 30 प्रतिशत, 40 प्रतिशत होती है। इस कारण इस पर चढना बहुत मुश्किल हो जाता है। 

मई एवं सितम्बर के महिने में हवा कुछ मन्द हो जाती है। इसलिए यह आरोहण का सबसे अच्छा समय होता है।

     एवरेस्ट पर चढने के 18 रूट है। तिब्बत की तरफ से चढने पर आरोहण लगभग 35 किलोमीटर होता है तो नेपाल की तरफ से 20 किलोमीटर। एवरेस्ट पर चढना मुश्किल है लेकिन चढाई के हिसाब से एवरेस्ट की चढाई सबसे मुश्किल नहीं है। सबसे ज्यादा मुश्किल चढाई पाक अधिकृत कश्मीर में स्थित के2 पर्वत की मानी जाती है।

      उसके बाद नंगा पर्वत, अन्नापूर्णा, कंचनजंगा, लाहोत्से, नंदा देवी एवं अन्य पर्वत है। शीर्ष 10 सबसे मुश्किल चढाई के लिहाज से एवरेस्ट का नंबर नौंवा है।

       सबसे खतरनाक चढाई नेपाल स्थित पर्वत अन्नपूर्णा की है। जहां मृत्युदर 33 प्रतिशत हेै। मतलब अगर 100 लोग चढे तो 33 मरे। के2 पर यह 22 प्रतिशत है तो एवरेस्ट पर दर 4 प्रतिशत है।

ऑक्सीजन की कमी होने पर दिमाग काम करना बन्द कर देता है और ज्यादा बुरी हालत में मृत्यु भी हो जाती है। 1978 में इटालियन पर्वतारोही रेनाल्ड मेसनर अकेला बिना किसी शेरपा की सहायता और ऑक्सीजन के बिना एवरेस्ट पर चढ गया था। उसके बाद बहुत कम लोग ही बिना ऑक्सीजन के एवरेस्ट पर चढ पाये है क्योंकि यह खतरनाक है।

       एवरेस्ट पर्वतारोहियों, पोर्टर के रूप में मशहुर शेरपा समुदाय के डीएनए में ऐसी विशेषता पाई गई है कि ये लोग कम ऑक्सीजन में भी अपेक्षाकृत सामान्य रहते है। शेरपा लोग पन्द्रहवीं शताब्दी में तिब्बत से नेपाल आये थे और महालंगूर हिमालय के आस-पास अपेक्षाकृत निचले इलाकों में बस गये थे।

        आज शेरपा लोग दुनिया में पर्वतारोहण का पर्याय बन गये है। पर्वतारोहण ने शेरपाओं का जीवन स्तर ऊपर उठा दिया है। आज अनेक नेपाली शेरपा जो पर्वतारोहण का बिजनेस कर रहे है, लाखों, करोडों कमा रहे है। कुछ के पास तो अपने छोटे विमान और हेलीकोप्टर भी है। नेपाल एक गरीब देश है।

      नेपालियों की आय का मुख्य स्त्रोत आप्रवासी कर्मियों केे बाद पर्यटन है। पर्यटन में बडा हिस्सा केवल पर्वतारोहण एवं ट्रैकिंग से आता है।

रोजगार के इस अवसर को नेपालियों ने बेहतर तरीके से इस्तेमाल किया। काठमान्डू के थमेल मार्केट में पर्वतारोहण एवं ट्रैकिंग का विभिन्न सामान बेचने वाले 500 से ज्यादा स्टोर है। सैकडों एजेन्सी है जो कि पर्वतारोहण के, और ट्रैकिंग, राफ्टिंग इत्यादि के पैकेज देती है।

      थमेल में नेपाल में बने सर्दी के जूते, जैकेट आदि भी बहुतायत मंे बिकते है। यहां बहुत सारी एजेन्सी है तो लोगो के दुनिया के सबसे उंचे पहाड पर चढने के सपने को पूरा करवाने के लिए तैयार पैकेज उपलब्ध करवाती है। यहां इस धंधे मे नेपालियांे के अलावा अन्य देशों के लोग भी पर्वतारोहण एजेन्सी चलाते है।

       मोटी रकम लेकर ये अनुभवहीन लोगों का भी एवरेस्ट पर चढने का सपना पूरा करवा देते है। इसके लिए ये 40 हजार डालर से लेकर सवा लाख डालर तक लेते है। परमिट फीस अलग से देनी पडती है। नेपाल सरकार नेे अलग-अलग पहाडों पर चढने की फीस निर्धारित कर रखी है। जो कि एवरेस्ट के लिए 11 हजार डॉलर है।

        इसके अलावा नेपाल सरकार ने 4 हजार डॉलर कूडा जमानत शुल्क प्रति टीम भी लगा रखा है। प्रति पर्वतारोही चार किलो कूडा वापस बेस कैम्प पर लाने पर ही यह जमा राशि वापस होती है।

       पर्वतारोहियों के कारण होने वाली गन्दगी एवरेस्ट पर एक बडी समस्या है। एवरेस्ट पर चढने में प्रति पर्वतारोही लगभग 16 ऑक्सीजन सिलेंडर खर्च होते है। जिन्हें खत्म होने पर पर्वतारोही पर्वत पर ही छोड देते है।

 एवरेस्ट पर अभी तक लगभग 6 हजार लोग सफलतापूर्वक चढ चुके है। उनका मल भी एवरेस्ट को दूषित करता है। नेपाली भाषा में एवरेस्ट को सागरमाथा कहा जाता है, एक पवित्र पर्वत का दर्जा दिया गया है लेकिन नेपाल जैसे दुनिया के सबसे गरीब देशों में से एक के लिए इसके द्वारा धनोपार्जन करना मजबूरी है। 

       1996 में हुई एक दुर्घटना में आठ लोग मारे गये। इस घटना के उपर 2015 में ‘एवरेस्ट‘ नाम फिल्म भी आई थी। 2014 में 16 शेरपा गाइड खूम्बू हिमनद में हिमस्खलन के कारण मर गये। 2015 के भूकम्प के कारण बेसकैम्प में मौजूद 22 लोग मारे गये।

      एवरेस्ट पर चढने के बाद मिली शोहरत को लूटने के चक्कर में बहुत से लोग जो अनुभवहीन होते है वो भी इन एजेन्सियों के पास जाकर अपना सपना पूरा करने की कोशिश करते है और बहुधा सफल हो जाते है।

काठमांडू के थमेल में सेवन ब्रदर समिटियर नाम ट्रैकींग एवं एम्पीडिशन एजेन्सी चलाने वाले नीमा शेरपा ने लेखक को बताया कि मेरे कई कस्टमर जो मेरा पर्वत जो एवरेस्ट से आठ हजार फीट कम उंचा है, पर नहीं चढ पाये उन्हें हमने एवरेस्ट पर चढवा दिया। नीमा शेरपा सात भाई है और सातों इसी पर्वतारोहण के व्यवसाय से जुडे है और सभी भाई एवरेस्ट चढ चुके है। नीमा शेरपा 19 बार एवरेस्ट पर चढ चुके है जो कि एक समय में रिकॉर्ड था। 

      नेपाल की तरफ से लगभग 800 से 1 हजार लोग हर साल एवरेस्ट पर चढते है और तिब्बत की और से 600 से 800। तिब्बत वाला रास्ता अपेक्षाकृत लम्बा है।

      आये दिन भारतीय अखबारों में आता रहता है कि अमुक व्यक्ति एवरेस्ट पर चढ गया। यह इतना सहज कैसे हुआ ? शेरपाओं की एक कम्पनी बेस कैम्प से लेकर शिखर तक एक रस्सी बांधती है जिसे निर्धारित शुल्क देकर प्रयोग किया जा सकता है। शेरपा, पर्वतारोहियों का सारा सामान भी ढोते है इसके अलावा 20 हजार फीट की उंचाई पर अपने ग्राहकों को गर्म कॉफी, भोजन, चाय की सुविधा भी देते है।

       अधिकतर अमीर यूरोपीय टूरिस्ट इसके लिए सवा लाख डॉलर प्रति व्यक्ति तक खर्च करते है। बहुत से लोगों का कहना है कि एवरेस्ट एक कॉमरर्शियल पहाड बन गया है। विश्व के सर्वश्रेष्ठ पर्वतारोही माने जाने वाले रेनोल्ड, मेसनर के अनुसार ये एवरेस्ट पर चढने वाले लोग सच्चे पर्वतारोही नहीं है। बल्कि टूरिस्ट है जो अपने अहम को तुष्ट करने के लिए एवरेस्ट पर चढते है।

       रेनाल्ड मेसनर ने 8 हजार मीटर से उपर के सभी पर्वत सबसे पहले और बिना किसी गाइड या शेरपा के चढे है। मेसनर का कहना है कि एवरेस्ट पर कुछ साल के लिए आरोहण को बन्द कर देना चाहिए। मेसनर का कहना है कि एडवेंचज पैकेज में नहीं आता। असली पर्वतारोहण है बिना कुली, पोर्टर के पर्वत पर चढना।

भारत में ऐसे अनेक पहाड है जिन पर चढना एवरेस्ट से ज्यादा मुश्किल है लेकिन नाम एवरेस्ट पर चढने में ज्यादा होता है। भारत के मेरू पर्वत, नंदा देवी, कंचनजंघा, कामेट, थलय सागर, शिवलिंग पर चढना एवरेस्ट से ज्यादा मुश्किल है।

      पैसे कमाने के चक्कर में टूर ऑपरेटर अनुभवहीन एवं अनफीट लोगों को भी एवरेस्ट पर ले जाते है उनके कारण भी समस्या होती है। एवरेस्ट पर चढने के रास्ते में जगह-जगह पर्वतारोहियों के 250 से ज्यादा शव पडे है।

     एवरेस्ट पर ज्यादातर लोगों की मृत्यु थकान, सर्दी या गिरने के कारण होती है। उनके शवों को वहां से लाना बहुत मुश्किल काम होती है। कुछ शव तो लैंडमार्क का काम करते है। इसके अलावा हजारों ऑक्सीजन सिलेंडर भी बिखरे पडे है। एक पर्वतारोही को औसत 16 ऑक्सीजन सिलेंडर की जरूरत पडती है।

      हर सीजन में बैस कैम्प पर करीब 14 टन मानव मल जमा हो जाता है। जो टॉयलेट टैंट के  ड्रम में जमा हो जाता है। उसके बाद उसे शेरपा नजदीकी गाव गोरक्षेप ले जाते है और गड्ढों में भर दिया जाता है। खुले में मल त्याग करने से वहा का हिम जगह-जगह से दूषित भी हो जाता है। समय-समय पर एवरेस्ट पर फैला कूडा इकट्ठा करने के अभियान भी चलाये जाते है। लेकिन वो पर्याप्त नहीं है।

       अगर ऐसा ही चलता रहा तो लोगो की एवरेस्ट पर चढने की अहम संतुष्टी के कारण एवरेस्ट सबसे उंचा कूडेदान बन जायेगा। अभी कुछ दिन पहले ही चीन ने तिब्बत की तरफ वाले एवरेस्ट बेस कैम्प पर सामान्य पर्यटकों के आगमन पर प्रतिबन्ध लगा दिया। अब वहां केवल एवरेस्ट पर चढने का परमिट लिये हुए पर्वतारोही ही जा सकते है।

         चीन ने यह कदम बेस कैम्प में पर्यटकों की भारी भीड और उसके कारण होने वाले प्रदूषण के कारण उठाया। चीन ,नेपाल की अपेक्षा अमीर देश है ,प्रतिबंध  लगा सकता है लेकिन नेपाल जैसे गरीब देश जिसके लिए एडवेंचर टूरिज्म आय का मुख्य स्रोत है इसे रोकना मुश्किल है।

    (स्रोत : Luxman Singh Dev, ‘ज्योग्राफी एंड यू’ 2019)

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