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कलुषित मनुष्यता

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         आरती शर्मा

हम निर्दोष और निष्कलुष तो कतई नहीं थे।
द्वंद्व और दुविधाओं से भी मुक्त नहीं थे
और हमारी संवेदनाओं के संसार में
कई बार स्वार्थ और क्षुद्रताओं की
घुसपैठ भी होती रहती थी।
फिर भी सबसे अहम बात यह थी कि
हमें सच्चाई और मनुष्यता से
प्यार था और हम सच्चे दिल से
न्याय के लिए लड़ना चाहते थे।
लेकिन इसके लिए हम निर्दोष और निष्कलुष
लोगों का साथ चाहते थे
जैसा कि हम ख़ुद भी नहीं बन सके थे।
फिर हमें पता चला धीरे-धीरे कि
अन्याय से कलुषित जीवन ने
कम या ज़्यादा अंधकार और कलुष
उन सबकी आत्माओं में उड़ेला है
जो सच्चाई और न्याय से प्यार करते हैं,
जिन्होंने जिया है तलछट का
वंचित-लांछित जीवन, या देखी है
किसी न किसी रूप में आधुनिक सभ्यता की
बर्बरता, घृणिततम असभ्यता।
ऐसे ही लोग एक दिन यह मानने के लिए
मजबूर हो जाते हैं कि इन चीज़ों को
जड़मूल से बदलने के लिए
विद्रोह न्यायसंगत है और अनिवार्य भी।
तब हमें अहसास हुआ कि हमें
ऐसे लोगों के बीच जाना होगा
और उनका अपना बनना होगा।
मूल बात यह है कि हमारे भीतर होनी चाहिए
बुनियादी ईमानदारी और साहस से भरा एक
पारदर्शी हृदय,
आँसू, पसीने और गर्म ख़ून की
तरलता में सराबोर,
और न्यायबोध और तमाम दबे-कुचले
लोगों के लिए प्यार
और एक ऐसी काव्यात्मक उदात्तता
जो हमेशा आत्मालोचन के लिए
उकसाती रहती हो और
सभी सच्चे लोगों की ओर
दोस्ती का हाथ बढ़ाने को
प्रेरित करती रहती हो।
इसतरह हमने जाना कि
चीज़ों को बदलने की प्रक्रिया में ही
लोग अपने आप को बदलते हैं
और अलौकिक शुद्धता से भरे मनुष्य की
कल्पना सिर्फ़ ऐसे कवियों और बुद्धिजीवियों के
दिमाग़ों में निवास करती है
जो आम लोगों की ज़िन्दगी से
और संघर्षों की आँच से कोसों दूर रहते हैं
और जिनकी अपनी ज़िन्दगी
सुनिश्चित सुरक्षा, क्रूर महत्वाकांक्षाओं
और घृणित समझौतों में लिथड़ी होती है।
बार-बार न्याय से वंचित,
सताये और दबाये गये,
रौंदे और कुचले गये लोगों में से
अगर चंदेक लोग, दिशाहीन, निरुपाय,
प्रतिशोध में अंधे,
चल पड़ते हैं अपराध और आतंक की राह पर तो भी एक बर्बर हत्यारी सत्ता की
सेवा में सन्नद्ध घुटे हुए,
सुसंस्कृत विद्वानों और कलाकारों के मुक़ाबले
बहुत अधिक होती है उनके भीतर मनुष्यता
और अगर कोई रोशनी नज़र आये
तो उनके लौटने की उम्मीद भी
हमेशा बनी रहती है।
लेकिन महज भय, सुरक्षा, यश, पद, पुरस्कार
और अशर्फियों के लिए जो कवि-लेखक-विचारक
अपने ज़मीर को बेच आते हैं
वे मनुष्यता के पक्ष में कभी वापस नहीं आते
और अगर आते भी हैं तो कोई नया,
और भी भीषण षड्यंत्र या जघन्य विश्वासघात
का मायावी जाल रचने के लिए आते हैं।

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