अग्नि आलोक
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बात अजब- गजब फैसलों की!

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मीना राजपूत 

       _इतने अजब-गजब निर्णयों से प्रथम बार सामना हुआ कि अब लगता है कि कुछ भी संभव हो सकता है, असंभव कुछ भी नहीं। जैसे कि बिना IAS परीक्षा के भी भारत में सिविल सेवकों की कल्पना की जा सकती है। सेना की भर्ती भी संविदा पर हो सकती है।_

         शुरू-शुरू में लोगबाग बेचैन हुए कि सेना में भी संविदा!! यह तो बहुत गलत है!!  फिर इस नैरेटिव को तोड़ने के लिए सामने आया हमारा खाया-पिया-अघाया और सेवारत वर्ग जो वर्तमान सत्ता के कुशल नेतृत्व में भारत के विश्वगुरु बनने के प्रति  लगभग आश्वस्त हो चुका है।

         इस वर्ग ने इस कालजयी योजना के फायदे बताना शुरू किया और फिर देखते-देखते यह योजना हम सभी को क्रांतिकारी लगने लगी। निर्णय तो यह भी लिया गया कि अबसे तक्षशिला बिहार में स्थित माना जाएगा।

पाकिस्तान चिल्लाया करे कि तक्षशिला हमारे यहाँ है, हम नहीं मानते तो नहीं मानते। अब तक की सरकारें पाकिस्तानपरास्त थीं, इसलिए उनसे इस तरह घोषणा की उम्मीद की भी कैसे जाती? इसके अलावा पिछली सभी सरकारें लीज पर थीं, कहने का मतलब वह पूर्ण संप्रभु सरकारें नहीं थीं। नेहरू को पूर्ण आजादी नहीं मिली थी, वह तो कांग्रेसियों ने सिर्फ भरम फैला रखा था कि हमने आजादी पा ली।

      लिहाजा तक्षशिला के भारत में होने की घोषणा करना उनके बस में नहीं था। हमने वर्बल स्ट्राइक की। हमने दिखा दिया कि एक जुमले से भूगोल का इतिहास कैसे बदला जा सकता!! हालांकि इसके पीछे इतिहास बदलने की हमारी पुरानी कारस्तानियों के एक लंबे अनुभव का भी  योगदान रहा है।

अब देखिए न कि किस कुशलता से हमने अपने उन नायकों को जिन्होंने भारतीय राष्ट्रवाद को कुचलने में महती भूमिका निभाई, को पीछे धकेलकर, गांधी और नेहरू की राष्ट्रभक्ति पर सवाल खड़े कर दिए। और सिर्फ़ यही नहीं आप देखिए कि किस तरह हमने गांधी और नेहरू की कैदों को रेस्टहाउस में आरामतलबी बताकर उनके योगदान को सिरे से खारिज कर दिया। 

      द्विराष्ट्रवाद के तहत बंटवारे की मांग हमारे पुरखों की थी, लेकिन देखिए किस  खूबसूरती से हमने नेहरू एंड कम्पनी को बंटवारे का जिम्मेदार बता दिया।  और तो और अपुन का इतिहासबोध भी गज्जब का है।

      लोगों को कई नई जानकारियां भी हासिल हुई, जैसे कि राणाप्रताप के चेतक की माँ गुजराती थी और नानक, कबीर और गोरखनाथ जी में खुलकर शास्त्रार्थ हुआ था। 

ख़ैर …….

हाँ तो बात अजब-गजब निर्णयों की थी। इसी क्रम में एक निर्णय योजना आयोग नाम बदलने का भी था। यह निर्णय हमें  थोड़ा अधिक तर्कसंगत और कार्य-कारण परंपरा से जुड़ा हुआ लगा। सही बात है जब योजनाएं ही नहीं बनानी तो योजना आयोग का मतलब भी क्या?

       जब दूसरे देश के फ्लाईओवर और पुल की फ़ोटो दिखाकर काम चल जाता है तो भारतीय संसाधनों का क्या दुरुपयोग करना! जब आधे-अधूरे अस्पतालों, यहाँ तक कि बिना बने एम्स तक का लोकार्पण हो जाता है, तो स्टॉफ रखकर भारतीय राजस्व पर अतिरिक्त भार डालना कहाँ की बुद्धिमत्ता होगी ??

          नए सीडीएस जो तीनों सेना प्रमुखों के ऊपर होंगे, ऐसे व्यक्ति को बनाया गया है, जो कभी किसी सेना के प्रमुख नहीं रहे। इसको लेकर लोगबाग चिंता जाहिर कर रहें हैं और वरिष्ठता को लेकर भी चिंताकुल हैं।

         समस्या वाजिब है पर हमें इसे सकारात्मक दृष्टि से देखना चाहिए। इसके लिए थोड़ा सा आपको कल्पनाशील होना होगा।

जब आप वर्तमान परेशानी की तुलना में और बड़ी परेशानियों की कल्पना करेंगे तो वर्तमान मुश्किलें आसान लगने लगेंगी।

      यह समस्या भी आसान दिखेगी जब आप यह सोचेंगे कि अरे यह क्या कम है कि सीडीएस पूर्व सेनाधिकारी ही है। सोचिए अगर किसी नेतापुत्र को बना दिए होते तो??

    इसलिए परेशान न होइए.

इसलिए सकारात्मक बनिये। 

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