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एनकाउंटर के मामले में तमिलनाडु भी उत्तर प्रदेश की राह पर

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इसमें उत्तर प्रदेश सबसे अग्रणी प्रदेश बना हुआ है, लेकिन देखा-देखी अन्य राज्य प्रशासनों को भी यह तेजी से पसंद आने लगा है। ताजातरीन उदहारण है यूपी के उन्नाव, महाराष्ट्र के बदलापुर और तमिलनाडु की राजधानी चेन्नई में हुए पुलिसिया एनकाउंटर की।

इन तीनों एनकाउंटर की प्रवृति और राज्य में शासन चला रही सरकारों का रुख़ चीख-चीखकर गवाही दे रहा है कि अपनी राजनीतिक जिम्मेदारियों और जन-आकांक्षाओं पर पूरी तरह से नाकाम हो चुकी इन सरकारों ने पुलिस मुठभेड़ में आरोपियों की हत्या को ही अपनी सबसे बड़ी कामयाबी के तौर पर बताना शुरू कर दिया है। 

चूंकि, उत्तर प्रदेश एनकाउंटर राजनीति का अगुआ प्रदेश है, इसलिए अब वहां पर धीरे-धीरे आम लोगों के बीच में यह चर्चा शुरू हो चुकी है कि जिस बाड़ से खेत की सुरक्षा का जिम्मा था, अब वही बाड़ खेत को खाने पर आमादा है। इसलिये कहा जा सकता है कि यूपी में एनकाउंटर राजनीति की कलई खुलने लगी है।

और देर-सवेर शेष राज्य के आम लोगों को भी इस कड़वी सच्चाई का भान होने लगेगा। आइये, एक-एक कर संक्षेप में इन तीनों राज्यों के हाल के दिनों में हुईं एनकाउंटर पर एक निगाह डालते हैं:-

उत्तर प्रदेश में अनुज प्रताप सिंह एनकाउंटर मामला 

इस मुठभेड़ का संबंध पिछले माह सुल्तानपुर में एक ज्वेलरी शॉप में हुई 1।5 करोड़ रूपये मूल्य के आभूषणों की लूट से है। चूंकि उत्तर प्रदेश में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के राज में कानून और व्यवस्था को लेकर सबसे ज्यादा वाहवाही लूटने का खब्त लंबे समय से चल रहा है।

इसलिए इस मामले से जुड़े दोषियों के खिलाफ पुलिसिया कार्रवाई में किसी न किसी अपराधी को तो ठोंकना जरुरी हो गया था। लिहाजा, मंगेश यादव नामक एक आरोपी को जल्द ही यूपी में एनकाउंटर स्पेशलिस्ट, एसटीएफ की टीम ने एक मुठभेड़ में मार गिराया।

मुठभेड़ में शामिल पुलिसकर्मियों ने इस घटना को अंजाम देते वक्त चप्पलें पहन रखी थीं। जिससे साफ़ शक पैदा हो रहा था कि यह किस प्रकार का एनकाउंटर था। 

जून 2024 में लोकसभा चुनावों में विपक्ष, विशेषकर समाजवादी पार्टी को मिली बंपर जीत ने पहली बार विपक्ष को इस घटना का मुखर विरोध करने की हिम्मत प्रदान की, और जल्द ही मंगेश यादव के एनकाउंटर का मुद्दा उत्तर प्रदेश और देश में चर्चा का विषय बन गया।

सपा प्रमुख, अखिलेश यादव और उनकी पार्टी ने इसे दलितों, पिछड़ों और अल्पसंख्यकों के खिलाफ़ योगी सरकार के महाजंगल राज का नंगा नाच बताना शुरू कर दिया।

28 अगस्त को सुल्तानपुर ज्वेलरी लूट कांड को अंजाम देने वाले गिरोह का मुख्य सरगना विपिन सिंह 36 अलग-अलग मामलों में आरोपी बताया जा रहा है। इस वारदात को अंजाम देने वाले लगभग 15 अपराधी थे, लेकिन सरगना विपिन सिंह तो पहले ही पुलिस के सामने आत्मसमर्पण कर खुद को सुरक्षित करा चुका था। 

मंगेश यादव की पारिवारिक पृष्ठभूमि भी इस बात की गवाही देती हुई दिख रही थी, कि उसकी भूमिका मुख्य षडयंत्रकर्ताओं के सहायक से अधिक नहीं थी। तमाम पत्रकारों के साथ साक्षात्कार में मंगेश के परिवार वालों ने बताया है कि उसे 2 सितंबर को पुलिस घर से उठाकर ले गई थी।

फिर 5 सितंबर को एनकाउंटर कैसे संभव है? उत्तर प्रदेश में भाजपा की सियासत के बारे में जो लोग जानते हैं, उन्हें पता है कि लोकसभा चुनावों में भाजपा के निराशाजनक प्रदर्शन के बाद से केंद्रीय नेतृत्व किस प्रकार से योगी आदित्यनाथ को पद से हटाने की कोशिशों में लगा हुआ है। 

योगी आदित्यनाथ के पास अपनी कुर्सी को बचाने के लिए विधानसभा की उप चुनावों की 10 सीटों में बड़ी जीत दर्ज करने के अलावा कोई उपाय नहीं है। जातीय समीकरण के लिहाज से पिछड़ों और दलितों का वोट यदि इस बार भी भाजपा से छिटकता है तो योगी के लिए भारी मुसीबत का सबब बन सकता है।

भले ही योगी अखिलेश यादव के ऊपर एक यादव अपराधी के एनकाउंटर पर अपराधियों के पक्ष में खड़े होने का आरोप क्यों न मढ़ने का प्रयास करें, उन्हें अच्छी तरह से पता है कि मात्र अगड़ी जातियों के बल पर यूपी में भाजपा दो दर्जन से अधिक विधायक नहीं जिता सकती। 

इस पृष्ठभूमि में, कल एक और आरोपी अनुज प्रताप सिंह की पुलिस एनकाउंटर में मौत की खबर ने उत्तर प्रदेश की सियासत में नया मोड़ ला दिया है। अब कहा जा सकता है कि योगी की एसटीएफ अपराधियों की जाति देखकर एनकाउंटर नहीं करती है।

इसके लिए अनुज के पिता धर्मराज सिंह के बयान को वायरल किया जा रहा है, जिन्होंने कहा है कि, “चलो, ठाकुर का एनकाउंटर होने से उनकी (अखिलेश) की इच्छा की पूर्ति तो हो गई। सरकार की जैसी मर्जी हो, वो वैसा कर सकती है।”

उनका यह बयान बताता है कि उत्तर प्रदेश का सामाजिक, राजनीतिक और सांस्कृतिक तानाबाना किस हद तक दूषित हो चुका है।

उत्तर प्रदेश शासन के तहत एक यादव जाति के अपराधी का एनकाउंटर जब तूल पकड़ने लगे तो बैलेंस करने के लिए एक ठाकुर जाति के अपराधी को मारकर हिसाब बराबर कर दो? 

हालांकि अनुज प्रताप की छोटी बहन ने मीडिया के सामने जो बयान दिया है, वह अपने पिता से बिल्कुल विपरीत है, जिसका साफ़ कहना है कि उसका भाई पढ़ने-लिखने में बेहद होशियार था और वह स्वभाव से भी अपराधी प्रवृत्ति का नहीं था।

इसके लिए वह विपिन सिंह और विनय शुक्ला को मुख्य दोषी मानती हैं, जिन्होंने उसे पैसों का लालच दिलाकर अपराध की दुनिया में प्रवेश कराया था। अनुज प्रताप के खिलाफ मात्र 2 केस दर्ज हैं, जिसमें से एक गुजरात के सूरत और दूसरा सुल्तानपुर ज्वेलरी लूट कांड था। 

आज यूपी की भाजपा सरकार की बुलडोजर और एनकाउंटर सरकार के अंधे कानून का शिकार वे लोग भी होने लगे हैं, जो कल तक खुद को सत्ता के मजबूत पाए समझ रहे थे। मुस्लिम अल्पसंख्यकों के खिलाफ शुरू हुई इस मुहिम में यादव के बाद अब खुद ठाकुर समुदाय के लोगों को शिकार होना पड़ेगा, इसकी उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं की होगी।

असल में मुस्लिम और कुछ हद तक ईसाई अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ नफरती अभियान चलाकर पिछले दस वर्षों के दौरान हिंदुत्ववादी बहुसंख्यकवाद की राजनीति का दौर निष्कंटक चलता रहा, जिसके दिन अब हिंदी पट्टी में लद गये हैं। क्योंकि भूख और बेरोजगारी ने पिछले दस वर्ष में उस मदांध युवा को अधेड़ बना दिया है।

उनमें से अधिकांश या तो अविवाहित और बेकार हैं, और उनके परिवारों और समाज ने उन्हें नकारा मान लिया है। इन्हीं में से कुछ अपराध और नशे का शिकार बन पहले राजनीतिक दलों के काम आते हैं और बाद में एनकाउंटर कर दिए जाते हैं। 

यूपी में यदि समाजवादी पार्टी और कांग्रेस मंगेश यादव की तरह अनुज प्रताप सिंह के एनकाउंटर को भी प्रमुखता से उठाती है तो यह उत्तर प्रदेश के सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य में एक युगांतकारी परिवर्तन का सूत्रपात साबित हो सकता है। 

बदलापुर बाल यौन शोषण के आरोपी का पुलिसिया एनकाउंटर सवालों के घेरे में 

उत्तर प्रदेश की तर्ज पर महाराष्ट्र में भी जनाक्रोश पर पानी डालने वाली घटना सामने आ रही है। यहां पर भी पुलिस की हिरासत में कैद कथित आरोपी अक्षय शिंदे, जिसे एक अन्य मामले में पुलिस वैन से स्थानांतरित किया जा रहा था, ने महाराष्ट्र पुलिस के बयान के आधार पर एक पुलिसकर्मी की रिवाल्वर छीनकर गोलीबारी शुरू कर दी थी, जिसके जवाब में पुलिस की कार्रवाई में अक्षय मारा गया। 

बदलापुर कांड की पृष्ठभूमि कुछ इस प्रकार से है। आरएसएस से जुड़े एक पदाधिकारी द्वारा संचालित एक स्कूल में 4 वर्ष की दो छोटी बच्चियों के साथ यौन शोषण की घटना हुई थी। भाजपा/आरएसएस से जुड़े व्यक्ति की संस्था की बदनामी न हो, इस मकसद से पहले तो इस मामले में पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज करने में काफी हीलाहवाली दिखाई।

ये घटना तब की है जब कोलकाता रेप कांड के खिलाफ देश सड़कों पर था। बाद में आम लोगों ने जब बदलापुर रेलवे स्टेशन पर ट्रेनों की आवाजाही ठप कर दी और पुलिसकर्मियों के साथ पत्थरबाजी की घटना को अंजाम दिया, तब जाकर 5 दिन बाद इस मामले में सफाईकर्मी अक्षय शिंदे को मुख्य आरोपी बताकर पुलिस ने क़ानूनी खानापूर्ति कर दी। 

अब चूंकि महाराष्ट्र में भी विधानसभा चुनाव सिर पर हैं, इसलिए पश्चिम बंगाल में रेप और हत्या मामले पर अति सक्रिय भाजपा के लिए बदलापुर कांड एक सिरदर्द बनता जा रहा था। उत्तर प्रदेश की तरह, महाराष्ट्र भी उन स्विंग स्टेट्स में से है जिसने नरेंद्र मोदी के नेतृत्ववाली केंद्र सरकार को अल्पमत की सरकार में तब्दील करने में सबसे अहम भूमिका निभाई थी।

राज्य विधानसभा चुनाव में भी एनडीए गठबंधन के लिए सत्ता में वापसी की गुंजाइश बेहद कम नजर आती है। इस एनकाउंटर के बाद मुख्यमंत्री शिंदे और गृहमंत्री देवेंद्र फडनवीस ने जिस प्रकार से उत्साहित होकर बयान दिए हैं, वो बताता है कि भाजपा इस एनकाउंटर को त्वरित न्याय के तौर पर भुनाने के फ़िराक में है। 

लेकिन महाराष्ट्र में विपक्ष बेहद मजबूत और आक्रामक नजर आती है। उसने एनकाउंटर की खबर फैलते ही इसे फेक एनकाउंटर बताना शुरू कर दिया है, और बदलापुर स्कूल मामले में इसके मुख्य संचालकों को बचाने का आरोप लगाया है।

स्कूल का ट्रस्टी कोई आप्टे बताया जा रहा है, जो फरार बताया जा रहा है। स्कूल के सीसीटीवी फुटेज गायब हैं, और जिस एकमात्र आरोपी को पुलिस ने हिरासत में लिया था, उसका एनकाउंटर हो चुका है।

इससे आम जन में यह संदेह खड़ा हो रहा है कि क्या इस मामले को रफादफा करने के लिए कहीं फेक एनकाउंटर करके, कुछ वर्ष पहले हैदराबाद एनकाउंटर की तरह ही कहीं राज्य प्रशासन ने इस घटना को अंजाम दिया है, जबकि मुख्य आरोपी को प्रशासन और भाजपा सरकार बचाना चाहती है? 

एनकाउंटर के मामले में तमिलनाडु भी यूपी की राह पर 

पेरियार और अन्नादुराई के बहुजन आंदोलन के गढ़ तमिलनाडु में भले ही ओबीसी वर्ग ने राजनीति और सामाजिक स्तर पर अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया हो, लेकिन आज भी दलितों, महिलाओं और बच्चों की स्थिति में कोई विशेष सुधार नहीं हो पाया है।

इसके विपरीत, पिछले कुछ वर्षों के दौरान दलितों के खिलाफ अत्याचार के मामलों में बढ़ोत्तरी ही देखने को मिली है। आम चुनावों के फौरन बाद ही राज्य में बसपा के प्रदेश अध्यक्ष, के.आर्मस्ट्रांग की हत्या ने डीएमके की राज्य सरकार के शासन पर सवालिया निशान खड़े कर दिए थे। 

मुख्यमंत्री स्टालिन के नेतृत्व में डीएमके सरकार के लिए स्वंय को बहुजन हितैषी सिद्ध करने का सवाल खड़ा हो गया था। नतीजतन नए पुलिस कमिश्नर अरुण की तैनाती के बाद 8 जुलाई 2024 के बाद से तीन अपराधियों को पुलिस एनकाउंटर में मार गिराया गया है।

तीसरा मामला, कल 23 सितंबर को तब देखने को मिला जब ‘सीजिंग’ राजा नामक एक हिस्ट्रीशीटर को तमिलनाडु पुलिस ने एनकाउंटर में मार गिराने का दावा किया है। 

इस बीच राजा की पत्नी का एक वीडियो वायरल हो रहा है, जिसमें बताया जा रहा है कि राजा 22 सितंबर को सुबह 9 बजे कुछ खाने-पीने का सामान लेने घर से निकला था, जिसके बाद से उसका कोई अता पता नहीं है।

इस बारे में पुलिस कमिश्नर, अरुण का यह बयान काबिले गौर है, जिसे उन्होंने पदभार ग्रहण करते समय बढ़ती गुंडागर्दी पर कहा था, “हम उसी भाषा में जवाब देंगे, जिसे गुंडे-बदमाश समझते हैं।” 

जॉइंट एक्शन अगेंस्ट कस्टोडियल टार्चर – तमिलनाडु (JAACT) नामक संस्था ने दो सप्ताह के भीतर दो-दो एनकाउंटर पर सवाल उठाते हुए इस मुद्दे पर राज्य सरकार को कठघरे में खड़ा करते हुए कुछ जरुरी सवाल खड़े किये हैं।

इस संस्था ने मद्रास हाई कोर्ट से इस मुद्दे पर स्वतः संज्ञान लेने और तीनों एनकाउंटर की जांच के लिए एक जांच आयोग बिठाने की मांग की है। इसके साथ ही उसने राज्य मानवाधिकार आयोग को मामले में हस्तक्षेप कर वृहत्तर चेन्नई पुलिस कमिश्नर एवं अतिरिक्त डीजीपी (कानून एवं व्यवस्था) को सस्पेंड किये जाने की मांग की है। 

पिछले दस वर्षों के दौरान देश संवैधानिक संस्थाओं के पतन का गवाह रहा है। बहुसंख्यकवादी राजनीतिक विचारधारा का जो प्रभाव सबसे पहले माब लिंचिंग के तौर पर अल्पसंख्यक समुदाय के खिलाफ दिखा, अब उसकी वैचारिकी ने कार्यपालिका, मीडिया और न्यायपालिका तक को अपनी जकड़ में ले लिया है।

यही कारण है कि देश में न्याय के राज के स्थान पर बुलडोजर और एनकाउंटर राज को वरीयता दी जा रही है, और देश की न्यायपालिका मूकदर्शक बनकर सबकुछ होते देख रही है।

अच्छी बात यह है कि गरीबों, वंचितों, अल्पसंख्यकों और किसानों के व्यापक हिस्से ने अब धीरे-धीरे इस ट्रैप को समझना शुरू कर दिया है, जिसके चलते अपने लिए ‘आपदा को अवसर में बदलने’ वाली राज सत्ता के लिए इसे जारी रख पाना इतना आसान नहीं होने जा रहा है। 

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