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 इप्टा की प्रस्तुति देखकर भावुक हुए शिक्षक और छात्र ने मंच पर आकर दिया सांप्रदायिकता को ज़वाब

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मृगेन्द्र

पूर्णिया/किसनगंज/अररिया।  कितनी मेहनत से यह देश बना है और कहां ले जाया जा रहा है। कहीं कुछ बोलने और कहने से डर लग रहा है। इसको आज़ादी नहीं कह सकते। मुझे डर लगता है अपने बच्चों के लिए। जनता को हांका जा रहा है। लोकतांत्रिक नजरिया कभी इस देश में ढंग से पनपने ही नहीं दिया गया और जो भी था उसका गला घोटा जा रहा है। अगर मैं कुछ कहता हूं तो बोल दिया जाता है कि मुसलमान हूं इसलिए ऐसा कह रहा हूं।
मैंने 8वीं में भगत सिंह का लेख “मैं नास्तिक क्यों हूं” पढ़ा था और तब से मुझे समझ आ गया कि क्या सही है और क्या ग़लत। मैं खुदा या भगवान के नाम पर रचे गए आडंबरों को नहीं मानता। मैंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से इतिहास की पढ़ाई की है। अपने छात्रों को भी इतिहास को लेकर पढ़ने को प्रेरित करता हूं और जो कोर्स में नहीं है वह भी उन्हें बताता हूं ताकि उनकी समझ बढ़े, इतिहास जानें और उससे सबक लें। लेकिन जब मैं कुर्ते-पैजामे में सड़क से पैदल गुजर रहा होता हूं तो 14-15 साल के लड़के हमें देखकर जय श्री राम का नारा लगाते हैं। तो बहुत दुःख होता है।आंखों में आंसू लिए, यह सब कहा सोशल साइंस के शिक्षक ने। रुंधे हुए गले से वह कहते हैं कि हम बहुत बुरे दौर से गुजर रहे हैं। जुलूस पर्व मनाने के लिए नहीं बल्कि दूसरों को डराने के लिए निकाला जा रहा है। कब किस दंगे का हम शिकार हो जायें, यही भय बना रहता है।हालात देखता हूं तो लगता है कि कहीं कोई उम्मीद नहीं बची है, लेकिन आज आप लोगों को देखा सुना तो फिर से उम्मीद कायम हो गई है कि अभी भी प्रेम और मुहब्बत बांटने वाले लोग हैं। नाम न छापने का अनुरोध करते हुए मिल्लिया कान्वेंट इंग्लिश स्कूल के टीचर ने यह बात बिहार इप्टा के साथियों द्वारा प्रस्तुत जनगीतों और नाटक को देखकर कही।
जनगीतों को सुनने के बाद खासकर अमन पांडे द्वारा अभिनीत ‘भारत माता कौन’ प्रस्तुति को देखकर। यह प्रस्तुति पंडित नेहरू द्वारा लिखित एेतिहासिक ग्रंथ ‘भारत एक खोज’ के एक अंश पर आधारित है। जिसमें नेहरू भारत माता की जय बोलने वालों से सवाल करते हैं कि भारत माता कौन है और लोगों के अलग-अलग जवाब सुनकर खुद ही व्यापक दृष्टिकोण रखते हुए उसका जवाब देते हैं कि आप लोग जो कह रहे हैं धरती, जंगल, खेत, पहाड़ इन सबके साथ ही इसके व्यापक मायने हैं। देश की भारत माता यहां की जनता है।
स्कूल में युद्ध से विनाश को इंगित करते हुए, युद्ध के विरोध में एकल नाटक ‘दु:स्वप्न’ प्रस्तुत किया गया। अरुण कमल की कविता पर आधारित इस नाटक को शाकिब खान ने अभिनीत किया।
शिवानी झा ने गौरक्षकों और समाज के पाखंड पर प्रहार करते हुए, स्त्री विमर्श जागृत करती संजय कुंदन लिखित कविता “गौ जैसी लड़कियां” प्रस्तुत की।
मिल्लिया स्कूल में छात्रों और शिक्षकों ने कार्यक्रम का उत्साहपूर्वक समर्थन किया। 12वीं कक्षा के छात्र किसन कुमार ने मंच पर आकर सांप्रदायिकता को चुनौती देते हुए कहा कि मैं देश के लिए शहीद होना चाहूंगा लेकिन धर्म के नाम पर दंगों में नहीं मरना चाहता।
पूर्णिया के बाद सांस्कृतिक यात्रा किसनगंज पहुंची, जहां पर शाकिब और उनके साथियों ने यात्रा का स्वागत किया। प्रेम के संवाद को बढ़ाते हुए शाम को सांस्कृतिक यात्रा फणीश्वरनाथ रेणु की जन्मस्थली अररिया पहुंची।
  छांव फाउंडेशन व इप्टा के साथियों द्वारा आयोजित इस कार्यक्रम में शहर का प्रबुद्ध वर्ग व सामाजिक कार्यकर्ता सहित छात्र नौजवान शामिल हुए।
यहां पर इप्टा के साथियों ने जनगीत प्रस्तुत किए। कार्यक्रम में अररिया इप्टा के संस्थापक सदस्यों में से डाक्टर एस आर झा , वरिष्ठ पत्रकार परवेज़ आलम मुख्य रूप से उपस्थित रहे। 
 यहां पर आयोजित पत्रकार वार्ता में शिक्षाविद गालिब खान और राज्य इप्टा महासचिव तनवीर अख्तर ने यात्रा के संदेश और उद्देश्यों को लेकर बात रखी।

जिल्ला पुनर्वास।  इप्टा की ढाई आखर प्रेम की सांस्कृतिक यात्रा की शुरुआत आज बेगूसराय के जिल्ला पुनर्वास (सिहमा) गांव से हुई। 
कार्यक्रम की शुरुआत बिहार इप्टा के साथियों द्वारा लगातार प्रस्तुत किए जा रहे क्रांतिकारी जनगीतों की शानदार प्रस्तुति के साथ हुई।
क्षेत्रीय इप्टा की इकाई द्वारा केन्द्रीय जत्थे में चल रहे सभी साथियों का स्वागत गमछा भेंटकर किया गया।
जत्थे में चल रहे शिक्षाविद गालिब खान ने बच्चों व उपस्थित जनसमुदाय के साथ यात्रा के संदेश को लेकर संवाद स्थापित किया। 
इप्टा के साथियों शाकिब खान और अखिल राज ने सांप्रदायिकता और दंगे की भयावहता का मार्मिकता के साथ चित्रण करते हुए, आम आदमी को दंगों का शिकार बताते हुए किसी भी तरह के भ्रम में न पड़ते हुए, प्रेम भाईचारे के साथ रहने का संदेश देते हुए ‘ख़ुदा हाफ़िज़’ नाटक प्रस्तुत किया।कार्यक्रम के आखिर में स्थानीय कलाकार विक्की ने- मैं उनके गीत गाता हूं….. गीत की प्रस्तुति दी।।
गांव के ही प्रो रामाशीष महतो की स्मृति को समर्पित इस कार्यक्रम में इप्टा के राष्ट्रीय महासचिव राकेश वेदा और बिहार इप्टा के महासचिव तनवीर अख्तर ने उपस्थित स्कूली बच्चों को साझी शहादत-साझी विरासत के प्रतीक मिट्टिका पात्र से अवगत कराया।


मृगेन्द्र

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