पुष्पा गुप्ता
मेरे तमाम आर्टिकल्स पर आप जो मर्जी प्रतिक्रिया कीजिए, मुझे कुछ भी समझिये लेकिन प्लीज़! अपने बच्चों के भविष्य से खिलवाड़ मत कीजिए. उनके हाथ में विज्ञान की किताबें थमाइए. नई तकनीक से उन्हें जोड़िए। उन्हें बताइए धरती,आसमान, समंदर, चांद, तारे, देश, दुनिया के बारे में। शरीर विज्ञान के बारे में। वो सब बताइए, जिन्हें जानना ज़रूरी है।
ऐसा नहीं है कि बिना जाने कोई मनुष्य नहीं रह जाता है, लेकिन यह सत्य है कि ज्ञान के अभाव में उच्च ज़िंदगी नहीं मिलती है। पर कोई है जो नहीं चाहता आपकी तरक्की।
‘उन्हें’ आपकी तरक्की से डर लगता है। उन्हें मालूम है कि अगर जो आपने सच जान लिया, तो आप ‘उन्हें’ चैलेंज कर सकते हैं। उनसे प्रश्न पूछ सकते हैं। वो प्रश्न से डरते हैं। उन्होंने बहुत चालाकी से दो तरह की दुनिया बना रखी है।
एक दुनिया जिसमें विज्ञान और साहस है। दूसरी दुनिया जहां धर्म और भय है। आपको वो दूसरी दुनिया देना चाहते हैं क्योंकि आपका भय ‘उनकी’ ताकत है। उन्होंने आपकी संतान के लिए आडंबर रचा है दूसरी दुनिया का, लेकिन अपनी संतान को वो पहली दुनिया में प्रवेश दिलाते हैं।
दुनिया में ऐप्पल का पहला फोन आने के चौथे महीने बाद वह मेरे मित्र के हाथ में था। वर्ष 2007 में लांच के ठीक चार महीने बाद। ऐप्पल ने वो मॉडल कभी भारत में लांच ही नहीं किया।
एप्पल भारत आया अपने सेकेंड जेनरेशन के मॉडल के साथ। उन्होंने वो पहला मोबाइल फोन खरीद कर स्कूल जाने वाले अपने बेटे को गिफ्ट किया था। उनके साथी उन पर हसें थे। पैसों की बर्बादी के नाम पर। मित्र ने कहा था कि ये निवेश है। तकनीक और डिजाइन पर।
बेटा सिर्फ दो साल का था, तब उन्होंने अपने एक साथी की मदद से इंग्लैंड से तोशिबा कंपनी का लैपटॉप बेटे के लिए मंगवाया था। सैलरी बहुत कम थी, लेकिन बहुत से ज़रूरी खर्चों में कटौती करके वो लैपटॉप खऱीदा था। आस-पास वाले अब भी हंसे थे। वे कहते थे पहले घर खरीदने में निवेश करना चाहिए था, बाद में कम्प्यूटर।
उनका जवाब वही था : ये निवेश है विज्ञान में। बेटा इससे बहुत कुछ नया सीखेगा। विज्ञान और तकनीक पर उन्होंने ऐसे बहुत से निवेश किए। बहुत बार सिर्फ देखने के लिए। फिर समझने के लिए। बेटे को उससे जोड़ने के लिए।
किताब, विज्ञान, तकनीक और डिजाइन पर उनके निवेश का आलम ये रहा कि घर में रात-दिन इन्हीं विषयों पर चर्चा होती थी।
दो साल की उम्र में जब बेटे को लैपटॉप दिया था तो बहुत लोगों ने उन्हें सिरफिरा कहा था। लेकिन जब बेटा पांचवीं में था और उन्हें अमेरिका जाने का मौका मिला तो वहां उसने अपने कम्प्यूटर ज्ञान से लोगों को चौंकाया। छठी क्लास में पढ़ते हुए डेल कंपनी ने उसे कम्प्यूटर स्कॉलरशिप के लिए चुन लिया था।
जब वे भारत आए तो बेटे की पढ़ाई की आदत बदल चुकी थी। वो रट्टामार नहीं रह गया था। वो विषय को समझने लगा था। वो आईआईटी गया, बिना किसी कोचिंग के।
आप भी अपनी संतान की शिक्षा पर निवेश कीजिए। संतान का सही दिशा में हुआ विकास ही देश का विकास है। उसे ज्ञान दीजिए। विज्ञान दीजिए। बाहर जाने का मौका मिले उसे बाहर जाने दीजिए।
उसके मन में ये ज़हर मत बोइए कि पश्चिम के लोग बुरे हैं। समय सिर्फ साइंस का है। अपने बच्चों की सोच साइंटिफिक बनाइए। उन्हें उकसाइए कि वो आपसे सवाल पूछें। वो जानें सच क्या है? धरती का सच, पर्यावरण सच। जानना ज़रूरी है।
किसी ने आपके मन में पश्चिम के बारे में जानबूझ कर अज्ञात भय बिठा दिया है। आपकी तो जैसे-तैसे उसी अज्ञात भय में ज़िंदगी कट गई है। लेकिन आप वही भय भावी पीढ़ी के मन में मत बिठाइए।
आप अपने बच्चे से उनका भविष्य मत छीनिए। आप अपनी पीढ़ी के किसी हिंदी, कन्नड़, मद्रासी, तेलगु या कोई भाषी नेता के घर झांक आइए। उनके बच्चे इंगलिश मीडियम में पढ़ कर जवान हो रहे हैं। लेकिन वही नेता आपकी संतान को देसी होने के लिए उकसा रहे हैं। सच समझिए।
आप अपने नौनिहालों पर निवेश करें। हम ने आपको कभी जमीन जायदाद खरीदने के लिए सलाह नहीं दी। कभी गलत तरीके से पैसे कमाने का हिमायती नहीं रहे हम। हर बार हमने यही कहा कि जितना संभव हो, घर में ज्ञान-विज्ञान की बातें करें।
हमारे प्राचीन गुरुओं ने जय, जय करने की उम्र तय कर रखी थी। वो उम्र का चौथा पड़ाव था। लेकिन तथाकथित मौजूदा धर्म गुरुओं ने षडयंत्र पूर्वक आपके नौनिहालों के मन में जिस धर्म का बीज बोया है, वो असल में धर्म है ही नहीं।
ये जय, जय ‘टूल किट’ है। रंग, वस्त्र उनके औजार हैं। जिस संतान को आप धरती पर लाएं हैं, उन्हें ‘उनका’ ‘टूल किट’ मत बनने दीजिए। आपकी संतान को जो मिलना है, अच्छी पढ़ाई से मिलेगा।
आपने अपना काफी नुकसान कर लिया है। अब अपने नौनिहालों का नुकसान मत कीजिए। जितना संभव हो उन्हें बेस्ट दीजिए। निवेश सिर्फ शिक्षा और स्वास्थ्य है।
वो चाहते हैं कि उनकी संतान गिटपिट पढ़े। लेकिन आपकी संतान जय, जय पढ़े। वो चाहते हैं कि उनकी संतान बोइंग विद्या सीखे। आपकी संतान बंदूक विद्या।
आप जो आज देंगे, वही माध्यम बनेगा। याद हैं न वो तीन बच्चे, जिन्होंने देश के दो दुर्दांत अपराधियों को ठोक कर ये कहा था कि वो नाम कमाना चाहते हैं। वो टूल बने। उन्हें इसी की ट्रेनिंग मिली थी।
तय आपको करना है। क्या आप चाहेंगे कि आपकी संतान उनकी तरह नाम कमाए? उस मार्ग पर जाना आसान है, लौटना असंभव। आज आप उनकी तारीफ करेंगे, कल आपकी संतान उसी को पथ मान बैठेगी। तय आपको करना है।
आईआईटी, आईआईएम, आईएएस, आईपीएस या बरेली जेल? नाम सबका होता है। फैसला आपका है।