बरसते तोप के गोले,
दनदनाती बंदूक की गोलियां ,
आग बरसाती मिसाइलें ,
करती धरती को लहूलुहान
मानवता को पीसती हुई ,
चल रही हैं ये किसके सीने पर ?
मरने वाले मारने वाले
हो सकते हैं किसी के दोस्त किसी के दुश्मन !
बताओं उन घरों ने किसी का क्या
बिगाड़ा था ?
जो बना दिये गये खंडहर !
उन पेड़ों का क्या कसूर था जो
राख कर दिये गये ?
वो छिपकलियां जो गातीं थीं
दीवारों पर गीत भाग-भाग कर !
क्या बिगाड़ा था उन्होनें किसी का ?
उन गायों, घोड़ों ,गधों, उंटों, भैसों,
हाथियों, सूअरों, बकरियों का कोई
जुर्म बता सकता है ?
उन खरगोशों , चिड़ियों , कबूतरों, तीतरों का तो कोई दोष बताए ?
जो इस युद्ध में बे-अपराध मार दिये गये !
आखिर क्यों ?
क्यों ये सब जीव नहीं थे ?
क्या इन में प्राण नहीं थे ?
सोचो तो जरा,
बताओ तो जरा,
उन फूलों का अपराध
जो महकाते थे इस जहां को !
इस गुलशन को !
भला क्यों जला दिये गये ?
उन क्यारियों का क्या दोष था ?
जो उगाकर सब्जियां पेट भरतीं थीं सभी का !
भला क्यों जला दीं गईं ?
जवाब कौन देगा ?
दोषी कौन है ?
लड़ने वाला , लड़ाने वाला
या फिर देखने वाला ?
साभार-सुप्रसिद्ध जनकवि हंसराज भारतीय, गुड़गांव, संपर्क- 98136 13075
संकलन -निर्मल कुमार शर्मा, 'गौरैया एवम् पर्यावरण संरक्षण तथा देश-विदेश के समाचार पत्र- पत्रिकाओं में पाखंड, अंधविश्वास,राजनैतिक, सामाजिक,आर्थिक,वैज्ञानिक, पर्यावरण आदि सभी विषयों पर बेखौफ,निष्पृह और स्वतंत्र रूप से लेखन ', गाजियाबाद, उप्र