अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

न्यायपालिका में भी दीमक लग गई 

Share

रमाशंकर सिंह 

भारतीय लोकतंत्र के वयस्क होने अर्थात् अमृतकाल के कुछ पहले तक बल्कि आज़ादी के पच्चीस तीस साल पूर्व समाज में यह मान्यता रही थी कि उच्च न्यायपालिका में विद्वान विवेकी ज्ञानी और सुशिक्षित लोग सुशोभित होते हैं , सही भी था ! १९७५ के बाद राजनीतिक सत्ता ने अपने मनपसंद लोग चुनने शुरु कर दिये और शनैः शनैः लोकतंत्र के इस खंबे में भी दीमक लगनी शुरु  हो गयी। 

कालांतर में कोलोजियम आ गया सुप्रीम फ़ैसले के अनुसार जिसका मक़सद चाहे कितना ही पवित्र रहा हो कि सरकार नियुक्ति न करे पर व्यवहार में ४०: ६० का फ़ार्मूला सर्वसम्मति से मान लिया गया। उच्च न्यायालयों में ४० प्रतिशत नियुक्तियों पर सरकारी पार्टी के अनुमोदित नाम और ६०% पर कोलोजियम का फ़ैसला । फिर यह ६०% बिगड़ कर मेरिटविहीन भाइयों भतीजों और कुटुम्बियों में बंटने लगा। एक से बढ़ कर एक “ महाविद्वान निष्पक्ष “ लोग हाईकोर्ट में आने लगे! इतने ज़्यादा निष्पक्ष कि सेवानिवृत्ति के तुरंत बाद पार्टी के सदस्य बनने लगे और उसके पहले सारे फ़ैसले एक विचार, संगठन और पक्ष विशेष के होने लगे। बड़े बड़े सुप्रीम मीलॉर्ड पद पर रहते प्रधानमंत्री की विरुदावली गाने लगे।  चलते चलते बता दूँ कि ४०: ६० के फ़ार्मूले की पुष्टि स्वयं मुझे तत्कालीन कानूनमंत्री और एक समय केंद्र में पावरफुल विभागों के मंत्री और प्रसिद्ध  वकील रहे ( अब स्मृति शेष ) ने दी यह कर कि कांग्रेस ने यह अच्छी परंपरा बना दी थी और इसे बदलने की कोशिश मूर्खतापूर्ण होगी। 

तो उसका ही नतीजा है कि विज्ञान के सिद्ध व प्रमाणित सिद्धांतों को विभिन्न हाईकोर्ट्स ने अपने अप्रतिम शोध से पलट दिया जो स्वयं एक व्हाट्सऐप पुराण का रूप ले चुका है । किसी क़ानून के जानकार  लेखक को वह सब एक पुस्तकाकार लाना चाहिये कि दुनिया भी देख सके कि भारत की उच्च न्यायिक व्यवस्था कितनी मज़बूत क़ानूनी व वैज्ञानिक आधार पर टिकी है। 

इनमें से दो तो मुझे तत्काल ही याद आ रहे है । 

१-मोरनी को गर्भ धारण मोर के आंसुओं से होता है सामान्य नैसर्गिक गर्भाधान प्रक्रिया से नहीं । 

२- गाय अपने साँस लेने व निकालने में ऑक्सीजन ही लेती व छोड़ती है और सिर्फ़ गाय ही ऐसा कर सकती है। और यहॉं यह भी कह दिया कि वैज्ञानिक ऐसा विश्वास करते हैं। कौन है वो वैज्ञानिक ? किस शोध से यह प्रमाणित हुआ यह जानने बताने की कोई ज़रूरत नहीं क्योंकि व्हाट्सऐप ऐसी झूठी और कपोल कल्पनाओं से भरा हुआ है। 

आदि आदि

जब कोई सड़क पर कहे कि गाय के घी से यज्ञ करने पर ऑक्सीजन बनती है और वातावरण शुद्ध होता है तो किसी संवैधानिक पद पर न होने के कारण समाज पर कुछ असर नहीं पड़ता है। मन तो करता है कि ऐसे सभी लोगों को एक छोटे कमरे में गायों के साथ बंद कर मात्र २४ घंटे का ही हवन करा दिया जाये लेकिन उसमें बेचारी गायें तो मारी जायेंगी , ‘ विद्वानों ‘ की आध्यात्मिक मुक्ति तो वैसे ही हो चुकी है। 

अब सुप्रीम कोर्ट की क्या हिम्मत जो इन ‘ महावैज्ञानिकों ‘

का सामना कर सके !

हटाने का प्रावधान सिर्फ़ संसद में महाअभियाोग चलाने व पास करने से है। संसद की भी बलिहारी है कि आज तक किसी भी यानी एक भी जज पर कैसे भी ‘ विचित्र किंतु सत्य ‘ जज पर महाभियोग नहीं चला सका है। एकाध आपराधिक व सिद्ध भ्रष्ट जज पर महाभियोग के दौरान बहुमत जुटा भी तो परमदलाल व मंत्री  जो बाद में इन्हीं गुणों के कारण ‘ भारत रत्न’ भी हुये , रफ़ा दफ़ा कर समझौता करवा दिया कि न्यायपालिका की बदनामी होगी ! दूसरा एक केस पक रहा था महाअभियोग का और अच्छे ख़ासे हस्ताक्षर हो चुके थे लेकिन मुख्य आवेदक ने ही पृथक से चुपचाप अपने घर में बुलाकर समझौता कर वापिस ले लिया। मज़े की बात यह कि वे मुख्यआवेदक सांसद हमारी ही वैचारिक बिरादरी के थे और उन्होनें अपने जीवनकाल में ही बहुत गर्व से मुझे बताया कि सपरिवार आकर पॉंव छूकर माफ़ी माँगता रहा तो क्या करता ? सिर्फ़ पाँव छूने से ? ऐसा कैसे हो सकता है ? 

भारत के पूरे कुयें में भांग पड़ चुकी है । संपूर्ण राजनीति प्रशासन न्यायपालिका संसद धनपशु सब एक दूसरे की नंगई को ढाँपने में लगे रहते है।

Add comment

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

चर्चित खबरें