अग्नि आलोक
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वो बैंक वाली लड़की

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सूट पहन कर बैठी,
कंप्यूटर पर खड़बड़ करती,
ग्राहकों के पासबुक छापती,
वो बैंक वाली लड़की.

कभी कैश में बैठकर,
नोटों के गट्ठर बनाती,
नोट ग्राहकों को थमाती
वो बैंक वाली लड़की.

काउंटर पर बैठकर,
बाँटती चेक, भरती वाउचर,
पेंशन की टेंशन लेती,
अपने माथे पर,
वो बैंक वाली लड़की.

कभी बनती है लोन अधिकारी,
बाँटती है लोन,
दूर तक करने जाती है रिकवरी,
छोटी करती है हर दूरी,
वो बैंक वाली लड़की.

शादी होने से पहले घर की जिम्मेदारी,
रोटी पानी देकर आना है जरूरी,
बच्चे हो जाये तो करती है,उसका इंतजाम,
उसका बच्चा नही रोता दूध के लिए घर पर,
भले हो जाये बैंक में, उसके सुबह और शाम ,
वो बैंक वाली लड़की.

वह बैंक में होती है बैंक में घर होता है,
कई लेकर आती हैं बच्चे बैंक की
देख लो उसका भी बच्चा रोता है,
कभी ससुराल में पोस्टिंग नही
तो कभी मायके से हाथ खाली है,
पोस्टिंग सही हो जाये पूरी ताकत लगा ली है,
लेकिन जो भी हो इंतजाम करती है पूरा काम,
वो बैंक वाली लड़की.

कभी कभी वो तुनकती है बिगड़ जाती है,
लोगों से कभी कभी झगड़ जाती है,
लेकिन स्वभाव में नही है उसके आम,
क्या करे उसके घर परिवार और बैंक में है बहुत काम,
दूर पोस्टिंग हो, या पास हो जाये तो आराम,
उसने चुना हैं बैंक, बैंक ने चुना है उसको देकर काम,
इसलिए वह लड़ती है आगे बढती है करती है काम,
वो बैंक वाली लड़की !

सैम भारद्वाज

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