वो वक़्त भी आने वाला है….!
जब चोर, लुटेरे और डाकू
सड़कों पर मारे जायेंगे….!
सब इन्क़िलाब के ये नारे,
जब दिल से पुकारे जायेंगे….!
वो वक़्त भी आने वाला है.
जब झूठ की अर्थी निकलेगी,
जब मुल्क की सूरत बदलेगी,
जब ज़ुल्म की आँधी बिखरेगी….!
ज़हरीली हवा ये निखरेगी….!
वो वक़्त भी आने वाला है.
जब घर से दिवाने निकलेंगे,
हर साँप के फन को कुचलेंगे….!
माहौल ये सारा बदलेगा,
खेतों में और खलिहानों में,
भूखे नंगे इंसानों में,
इक सुख की बेला आएगी….!
हर बस्ती गीत सुनाएगी,
वो वक़्त भी आने वाला है.
हम गंग-ओ-जमन के पाले हैं,
इस देश के हम रखवाले हैं,
ये देश न लूटने देंगे हम,
ये देश न मिटने देंगे हम,
जो पतझड़ बाग़ में आया था,
वो पतझड़ जाने वाला है,
फिर मौसम मस्त बहारों का,
नए फूल खिलाने वाला है…!
वो वक़्त भी आने वाला है.
सुप्रसिद्ध जनकवि दिवंगत इब्राहीम "अश्क "( 20-7-1951 - 16-1-2022 )
संकलन-निर्मल कुमार शर्मा, 'गौरैया एवम् पर्यावरण संरक्षण तथा देश-विदेश के समाचार पत्र-पत्रिकाओं में पाखंड,अंधविश्वास,राजनैतिक, सामाजिक,आर्थिक,वैज्ञानिक,पर्यावरण आदि सभी विषयों पर बेखौफ,निष्पृह और स्वतंत्र रूप से लेखन ', गाजियाबाद, उप्र,