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वो विज्ञापन जो बन गए भारत की पहचान….निरमा, रसना, हमारा बजाज…

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नई दिल्‍ली: निरमा-निरमा वॉशिंग पाउडर… आई लव यू रसना… हमारा बजाज … ये दिल मांगे मोर… याद तो हैं न! विज्ञापन भारत में बदलाव का आईना रहे हैं। इनमें से कई भारत की पहचान तक बने। विज्ञापन गहरा असर छोड़ते हैं। इनके सहारे कुछ ब्रांड तो इतने मजबूत बन जाते हैं कि पूरे सेक्‍टर की पहचान उनसे होने लगती है। कभी मम्मियां डिटर्जेंट पाउडर लाने के लिए भेजती थीं। उनके मुंह से सिर्फ निकलता था ‘सर्फ’ (Surf) ले आना। वनस्‍पति घी का मतलब ‘डालडा’ होता था। न ‘सर्फ’ इकलौता डिटर्जेंट पाउडर ब्रांड था। न ‘डालडा’ ही एक वनस्‍पति घी। जिस तरह देश बदला विज्ञापनों के चेहरे में भी बदलाव आया। कुछ विज्ञापनों की ट्यून यादों में यूं बैठी कि निकल ही नहीं पाई। अमूल और निरमा गर्ल, एयर इंडिया का महाराजा मस्‍कट और लिरिल साबुन का ऐड। इन विज्ञापनों ने युग लिखा। इनके इर्दगिर्द मध्‍यम वर्ग ने अपनी गृहस्‍थी बुनी। इन्‍होंने भारत में कंज्‍यूमर सोसाइटी की कहानी लिखी। आज भारत आजादी का अमृत महोत्‍सव मना रहा है। ऐसे समय में उन विज्ञापनों को याद करने का भी यह सही समय है जो यादों के झरोखों में बसे रह गए।

जब देश आजाद हुआ तब काफी गरीबी थी। खर्च करने के लिए पैसा नहीं था। उन दिनों विज्ञापनों का हमारी जिंदगी पर ज्‍यादा असर नहीं था। जरूरतें सीमित थीं। मीडिया की ज्‍यादा पहुंच नहीं थी। लिहाजा, खपत भी नहीं थी। हालांकि, उन दिनों में भी कुछ विज्ञापनों ने पहचान बनाई। मर्फी बेबी, एयर इंडिया का महाराजा मस्‍कट, अमूल गर्ल जैसे ऐड सीधे लोगों के दिलों में उतर गए। तब घरों में टीवी नहीं होते थे। इन्‍होंने न्‍यूजपेपर, मैगजीन और अन्‍य प्रिंट माध्‍यमों के जरिये अपनी पहचान बनाई।

झरने में नहाती ल‍िर‍िल गर्ल की एंट्री
1960 और 70 के दशक में भारत थोड़ा बदला था। सिनेमा रंगीन होने लगा था। एक छोटा वर्ग खपत का इंजन बन रहा था। यही वह दौर था जब झरने में नहाती लिरिल गर्ल ने लाखों-लाख देशवासियों के दिल में घंटी बजाई थी। फोरक्‍स्‍वायर सिगरेट का विज्ञापन किंगसाइज जीने के लिए दावत दे रहा था। नेसकैफे की चुस्कियां लेते लोग दिखने लगे थे।

विज्ञापन और खुशहाली का करीबी रिश्‍ता है। ये लाइफस्‍टाइल को रिफ्लेक्‍ट करते हैं। लोगों को किसी प्रोडक्‍ट को इस्‍तेमाल करने के लिए उकसाते हैं। जिनमें पैसे की ताकत होती है वे इन्‍हें लेने के लिए आगे बढ़ते हैं। ये समृद्ध वर्ग को टारगेट करने के लिए ही बनते हैं। 80 के दौर में हवा में उदारवाद की खुशबू घुलने लगी थी। म‍िडिल क्‍लास क्‍या होता है, यह कुछ-कुछ साफ होने लगा था। इसने विज्ञापनदाताओं के लिए साफ कर दिया था कि उन्‍हें क्‍या बनाना और दिखाना है। इसी दौर में साइकिल से स्‍कूटर पर चलने की तस्‍वीर दिखाई गई। स्‍कूटर को चलाते पति देव, पीछे पत्‍नी और आगे बच्‍चा। ‘हमारा बजाज’ ने धूम मचा दी थी तब। घर में एक ‘हमारा बजाज’ लाने की इच्‍छा जागने लगी।

इस दौर में लोगों की अकांक्षाएं हिलोरे मार रही थीं। हाथ में थोड़ा पैसा रुकने लगा था। इसी दौरान सीन में आया था निरमा का ऐड। ‘निरमा-निरमा वॉशिंग पाउडर…’ की सुरीली ट्यून ने इस डिटर्जेंट पाउडर को भी बेहद लोकप्रिय बना दिया। आज भी डिटर्जेंट पाउडर सेक्‍टर में इसकी धाक बनी हुई है।

रसना से लव हो गया
रसना के ऐड में बच्‍ची का ‘आई लव यू रसना’ बोलना भी उतना ही हिट हुआ। इसने लोगों को गर्मी में प्‍यास बुझाने के लिए घर में ठंडे का मतलब बताया। गर्मी आते ही रसना के ऐड की फ्रीक्‍वेंसी भी बढ़ जाती थी। विमल ब्रांड की ओनली विमल की सिग्‍नेचर ट्यून भी नहीं भूलती है।

90 के दौर में उदारीकरण के पांव जम चुके थे। यही वह समय था जब पेप्‍सी के ‘ये दिल मांगे मोर’ ऐड ने दस्‍तक दी थी। 90 और 2000 का शुरुआती दशक विज्ञापन की दुनिया के लिए सुनहरे दिन थे। विज्ञापन कहानियां सुनाने लगे थे। इस दौर में कई यादगार विज्ञापन आए। आमिर खान का ‘ठंडा मतलब कोका कोला’ का ऐड भी इसी समय आया था। फेविकॉल ने भी इसी समय कई अलग तरह के विज्ञापन बनाए।

आगे विज्ञापन और विज्ञापन की भाषा और बदली। टाटा टी का ‘जागो रे’ और एरियल के विज्ञापन टीवी पर छाने लगे। फिर देश में इंटरनेट और मोबाइल क्रांति आने के बाद मोबाइल कंपनियों के विज्ञापनों ने जगह बनाई।

इस तरह विज्ञापन ने समाज की बदलती जरूरतों को बार-बार दिखाया। विज्ञापनदाताओं ने अपनी भाषा और कंटेंट को लोगों के साथ जोड़ा। शायद यही वजह है कि इन्‍हें इनोवेशन पर सबसे ज्‍यादा फोकस करना पड़ा। यादों में वही विज्ञापन रह गए जो अनूठे थे। जिन्‍होंने लोगों को सपना दिखाया अपनी जिंदगी बदलने का।

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