दौर। कंगले नगर निगम ने पिछले दरवाजे से करों की मार का मनमाना बोझ आम जनता पर डाल रखा है। एक हजार स्क्वेयर फीट के छोटे भूखंड पर भी 40 से 50 हजार रुपए से कम में भवन अनुज्ञा प्राप्त नहीं होती है। भले ही 24 घंटे में नक्शे मंजूरी के दावे किए जाते हों। दूसरी तरफ इंदौर विकास प्राधिकरण जैसा शहर का सबसे बड़ा कालोनाइजर भी नगर निगम के मनमाने शुल्क से परेशान है। हर महीने वेतन बांटने के लिए प्राधिकरण पर ही निगम की ओर से दबाव बनाया जाता है और 4-5 करोड़ रुपए का चेक सम्पत्ति कर या विकास अनुज्ञा के एवज में जमा करवाया जाता है। अभी प्राधिकरण की योजना टीपीएस-5, जो कि 375 एकड़ पर विकसित होना है, उसकी विकास अनुमति 60 करोड़ रुपए से अधिक में पड़ रही है, जिसमें नर्मदा केपिटल फंड के 21 करोड़ रुपए और अलग से चुकाना पड़ेंगे।
एक तरफ नगर निगम का पोर्टल बीते डेढ़ माह से ठप पड़ा है, जिसके चलते ईमानदार करदाताओं को भी परेशानी हो रही है और वे चालू वर्ष की राशि भी जमा नहीं कर पा रहे हैं। दूसरी तरफ निगम के पास पुराना रिकॉर्ड भी उपलब्ध नहीं है, क्योंकि बीते कुछ वर्षों से ऑनलाइन सिस्टम ही चल रहा है। 100 करोड़ रुपए से अधिक का फटका तो निगम को पोर्टल ठप होने के चलते ही अभी तक लग चुका है। दूसरी तरफ उसकी माली हालत दिन पर दिन खस्ता होती जा रही है। हालत यह है कि 5-10 लाख रुपए की राशि का भुगतान भी निगम नहीं कर पा रहा है और हर माह प्राधिकरण से चेक लेकर वेतन सहित अन्य जरूरी खर्चों की पूर्ति करना पड़ती है। अभी प्राधिकरण बोर्ड ने टीपीएस-5 में निगम द्वारा मांगी जाने वाली विकास अनुज्ञा शुल्क का एक प्रस्ताव भी बैठक में मंजूरी के लिए रखा, जिसमें सिर्फ आवेदन फॉर्म और प्रोसेस शुल्क के रूप में ही निगम ने 3 करोड़ 59 लाख रुपए की राशि मांगी है।
वहीं आश्रयनिधि का विकल्प लेने पर प्राधिकरण को 38 करोड़ 64 लाख रुपए से अधिक जमा कराना पड़ेंगे और इसकी बजाय अगर वह ईडब्ल्यूएस और एलआईजी का विकल्प चुनता है तब भी उसे 6 करोड़ 44 लाख 12 हजार भरना पड़ेंगे। इसके अलावा नर्मदा केपिटल फंड के 21 करोड़ 15 लाख मांगे हैं। वहीं ओवरहेड टैंक का निर्माण भी प्राधिकरण को खुद करना पड़ेगा। वहीं इसके अलावा 2023-24 का सम्पत्ति कर भी जमा कर निगम से एनओसी लेना पड़ेगी। कनाडिय़ा बायपास पर प्राधिकरण की यह टीपीएस-5 योजना विकसित होना है, जिसका क्षेत्रफल 149.584 हेक्टेयर यानी लगभग 375 एकड़ का है। अब प्राधिकरण का कहना है कि लैंड पुलिंग एक्ट के तहत उसे 50 प्रतिशत जमीन तो वापस भू-धारकों को उपलब्ध करानी पड़ेगी। ऐसी स्थिति में इस आरक्षित जमीन का विकास शुल्क वह निगम को क्यों चुकाएगा। यह राशि तो जमीन मालिक से ही वसूल की जाना चाहिए। यही स्थिति सम्पत्ति कर के मामले में भी है। दरअसल आम जनता से लेकर सरकारी महकमों को भी नगर निगम की ये अनुमतियां अत्यंत महंगी पड़ रही है। पिछले दरवाजे से नगर निगम अलग-अलग मदों में वृद्धि कर देता है, जिसके चलते हर साल सम्पत्ति कर तो बढ़ता ही है, वहीं 800-1000 स्क्वेयर फीट के भूखंड पर भवन अनुज्ञा भी अत्यंत महंगी हो गई है और पिछले सालभर में ही लगभग दो गुनी राशि निगम वसूल करने लगा है।