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विवेकानंद स्मारक शिला पर सबसे बड़ा स्वप्न देखा जाने वाला है

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राकेश अचल

दुनिया में सपने देखना एक स्वाभाविक क्रिया हैं । आदमी यदि सपने न देखे तो पागल हो जाए ,लेकिन कभी-कभी ये सपने भी आदमी को पागल कर देते हैं। बाबा विश्वनाथ ने अपनी पत्नी से संवाद करते हुए कहा –
उमा कहूँ मै अनुभव अपना
सत हरि भजन,जगत इक सपना

सपनों के वारे में सबके अनुभव अलग-अलग है । होना भी चाहिए । यदि सभी एक जैसा सपना देखेंगे तो मुश्किल हो जाएगी। सपनों में विविधता होना चाहिए।विविधता भारत की पहचान है। हमारे यहां सभी को सपने देखने की आजादी है । बच्चा जानता है कि हमारे यहां शेखचिल्ली हों या मुंगेरी लाल, सपने देखते हैं और उनके सपने हसीन भी होते है। इतने हसीन की दुनिया वाले जलकर सपने देखने वालों को मुंगेरीलाल के सपने या शेखचिल्ली के सपने की संज्ञा देने लगते हैं। राम चरित मानस के रचयिता गोस्वामी दास की सपने को लेकर अलग धारणा है । भोले बाबा की धारणा से भी अलग। वे लिखते हैं कि –


मोह निशा सब सोवनहारा। देखहिं स्वप्न अनेक प्रकारा।

अब गोस्वामीदास को तो मै चुनौती दे नहीं सकता। चुनौती तो मै किसी को भी नहीं दे सकता ,क्योंकि मेरी हैसियत ही नहीं है । मै तो सपने देखने से भी डरता हूँ । मेरा अपना कोई सपना नहीं है । मेरा सपना आपका सपना है । आम आदमी का सपना है। आम आदमी सपने में रोटी,कपड़ा और मकान के अलावा यदाकदा ऊटी घूमने का भी सपना देख लेता है। भले ही ताउम्र वहां जा पाए या नहीं। सपना आदमी ही नहीं चौपाये भी देखते है। गधे हरी घास का सपना देखते हैं तो बिल्ली सपने में चूहे देखती है । कुत्ते को सपने में छिछड़े दिखाई देते हैं। यानि सबले सपने अलग- अलग होते है।
हमारे यहां जैसे सियासत में मौत के सौदागर होते हैं वैसे ही फ़िल्मी दुनिया में सपनों के सौदागर होते है। यहां तक की स्वप्न सुंदरी भी होतीं हैं। स्वप्न सुंदरियां स्वप्न में आती हैं,हकीकत में नही। हमारे यहां आजकल अपने अविनाशी होने का सपना भी देखा जा रहा है । हम लोग कोई भी सपना देख सकते है। हम आदमियों के ही नहीं पशुओं के भी समस्त सपने देखने के लिए आजाद हैं। आप चाहें तो महान कवि बनने का सपना देख सकते है। आप चाहें तो स्वामी विवेकानंद बनने का सपना भी देख सकते हैं। सपने देखने और दिखाने के मामले में हमारी सरकारें भी दरियादिल हैं।
आजकल जमाना ही सपना देखने और दिखाने का है। आपके पास पैसा हो ,पावर हो तो आप कन्याकुमारी जाकर विवेकानंद स्मृति शिला पर बैठकर विवेकानंद की तरह ही ध्यान लगाकर ,जागते हुए सपने देख सकते हैं। समझदार लोग हर थकान के बाद,हर अभियान के बाद सपना देखना पसंद करते हैं। सपने आदमी को रिलेक्स अनुभव कराते हैं। जो लोग सपने नहीं देखते वे पिछड़ जाते हैं। उन्हें न इतिहास में जगह मिलती है और न भूगोल मे। अर्थशास्त्र में तो जगह मिलने का सवाल ही नहीं उठता।
सपनों की दुनिया ही विचित्र है। सपने किसी को वैज्ञानिक बना देते हैं तो किसी को दार्शनिक । किसी को चौकीदार बना देते हैं तो किसी को प्रधानसेवक। सवाल ये है कि आपने कैसा सपना देखा और उसे साकार करने के लिए क्या-क्या किया ? मैंने जैसा पहले ही कहा कि सपने देखने के मामले में मै एक आलसी प्राणी हूँ । मैंने कोई बड़ा सपना नहीं देखा इसलिए हमेशा सबसे छोटा बना रहा। लेकिन मै सपने देखने वालों का हमेशा सम्मान करता हूँ। सपने देखने वालों का सम्मान करना ही चाहिए। स्वप्न -दृष्टा का सम्मान ही हमारी सनातन संस्कृति है। सपने में कोई हिन्दू-मुसलमान ,सिख या ईसाई नहीं होता । सभी को सपने देखने की आजादी है। आप चाहें तो सपने में किसी का मंगलसूत्र छीन ले,किसी को मंगलसूत्र दे दे । कोई इबादतगाह गिरा दें,कोई नया मंदिर बना दें।
हमारे लंकेश गुरु जी तो सपने में अक्सर विश्वगुरु बन जाते थे और हमें पहाड़े याद न करने पर ऐसा लतियाते थे कि पूछिए मत ! किसी के सपने पर ऊँगली उठाना सबसे अधम काम है ,लेकिन गीतकार हों या अभिनेता ये धृष्टता कर बैठते हैं। बात 1982 की है। एक फिल्म बनी नमक हलाल । इस इल्म के एक गीत में गीतकार अनजान और प्रकाश मेहरा ने दूसरों के सपने के बारे में ऊँगली उठाई थी। कहा था –
आपका तो लगता है बस यही सपना
राम-राम जपना, पराया माल अपना

अनजान की तरह हिमाकत मै नहीं कर सकता। मुझे नहीं लगता कि आम आदमी को जैसे शिक्षा,इलाज और भोजन का संवैधानिक अधिकार है ठीक उसी तरह किसी के सपने के बारे में ऊँगली उठाने का भी अधिकार है। अभी ये अधिकार दिया नहीं गया है। सवाल ये है कि ये अधिकार यदि दिया भी जाए तो किस आधार पर दिया जाए ? आर्थिक आधार पर या धर्म के आधार पर। हमारे यहां सपने देखने का भी कोई आधार हो तो मुझे नहीं पता क्योंकि मै इतना जानता हूँ कि हमारे यहां लोग धर्म के आधार पर सियासत तो कर सकते हैं किन्तु किसी को आरक्षण नहीं दे सकते चाहे जान ही क्यों न चली जाए ! अधिकार देने में हमारी कंजूसी जग जाहिर है । हमने लोगों को सवाल करने के अधिकार से भी वंचित कर रखा है
हम आम आदमियों को सपने देखने की आदत है । सपने देखते-देखते हम सपने दिखाने वाले पर लट्टू हो जायते हैं। उसे अपने वोट से सत्ता के शीर्ष तक पहुंचा भी सकते हैं और उतार भी सकते हैं। हमने अच्छे दिनों के सपने देखे । हमने अपने बैंक खातों में पंद्रह-पंद्रह लाख रूपये आने के सपने देखे। आजकल हम देश को हिन्दू राष्ट्र बनाने के सपने देख रहे है। हम सपने देखें या न देखें,वे हमने जबरन दिखाए जाते हैं। देश की तीन करोड़ बहने लखपति बनने का सपना देख रहीं है। सपने दिखाने वालों का एक ही धर्म एक ही जाति होती है और वो है सत्ता हथियाने वालों की जाति। हमारे बुजुर्गों ने न जाने कितने सपने देखे ! आजादी से पहले के सपने और आजादी के बाद के सपनों में जमीन-आसमान का फर्क है। हमने गरीबी हटाओ के सपने भी देखे ,लेकिन गरीब नहीं हटी । आज तो 85 करोड़ गरीब सरकारी कृपा पर जीवित हैं।ये हमारा सपना नहीं था लेकिन इसे साकार कर दिया गया।
सातवें दशक में एक हिंदी फिल्म आयी थी परिवार उस फिल्म में भी सपनों को लेकर एक मधुर गीत था । उसमें नायक-ान्यिका मिलकर गाते थे –
हमने जो देखे सपने
हमने जो देखे सपने सच जो गए वो अपने
ओ मेरे सजना दिन आ गए है प्यार के
मेरे सजना दिन आ गए करार के

फिल्मों की तरह सियासत में भी प्यार,अदावत,नफरत,और करार के सपने दिखाए जाते हैं। सपने देखने और दिखाने से आपको न कोई केंचुआ रोक सकता है और न कोई अदालत। सपनों में बड़ी ताकत होती है। आप चाय बेचते-बेचते देश बेचने के सपने देख भी सकते हैं और मौक़ा मिले तो देश बेच भी सकते हैं। कहीं,कोई बाधा नहीं है। बाधाएं हों भी तो उन्हें दूर किया जा सकता है। जरूरत इस बात की है कि सपने आपके सर पर भूत की तरह सवार न हों। भूत और भूतपूर्व होने के सपने आदमी को हिंसक बना देते हैं। इसलिए कोशिश कीजिये कि ऐसा कोई सपना न देखें जो आपको हिंसक बनाता हो । ऐसा कोई सपना आ भी जाये तो फौरन जाग जाएँ। खुली आँखों से कोई सपना नहीं देखा जाता। वैसे मै 30 मई को अंतर्राष्ट्रीय स्वप्न दिवस घोषित करने का एक प्रस्ताव संयुक्त राष्ट्र संघ को भेज रहा हूँ । उस दिन हमारे यहां विवेकानंद स्मारक शिला पर सबसे बड़ा स्वप्न देखा जाने वाला है। यही सपना स्वप्नदर्शी नेतृत्व का भविष्य तय करेगा।

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