अग्नि आलोक
script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

हिंदुओं को हिंदुत्ववादियो से ही है सबसे बड़ा खतरा 

Share

 मुनेश त्यागी

     आजकल ओडियो, विडियो और प्रिंट मीडिया के बहुत बड़े हिस्से और सारी की सारी हिंदुत्ववादी ताकतों द्वारा हिंदुस्तान की जनता के खतरे में होने की बात की जा रही हैं, यह बात इन सब की राजनीति का एक बहुत बड़ा हिस्सा बन गया है। मगर यहां असली सवाल यह है कि यह खतरा किससे है? ये कौन ताकतें हैं जो भारत की जनता को खतरा पैदा कर रही हैं? 

     अगर हम पिछले लगभग नौ साल से ज्यादा समय में देखें तो हमें पता चलता है कि भारत की अधिकांश जनता को यह खतरा है मनुवादियों, भ्रष्टाचारियों, कॉरपोरेट पूंजीपतियों और हिंदुत्ववादियों के जनविरोधी और देशविरोधी गठजोड़ से। खतरा है नव उदारवाद की जनविरोधी नीतियों से, खतरा है देश की जनता की गाढ़ी कमाई से बनाई गई नवरत्न कंपनियों को अडानी, अंबानी और चंद पूंजीपतियों को बेचने से।

     खतरा है सरकारी नीतियों के कारण भयावह होती बेरोजगारी की स्थिति से, खतरा है मनुवाद की नीतियों से,  मनुवादी नजर और नजरिया से, मनुवादी सोच और मानसिकता को अमल में लाने से, खतरा है हिंदुत्ववाद की जन विरोधी नीतियों और सोच से।

       हिंदूवाद की नीतियां और सोच, हिंदुत्ववाद की नीतियों और सोच से बिल्कुल भिन्न हैं। हिंदूवाद वसुधैव कुटुंबकम, विश्वबंधुत्व, भाईचारे, दया, धर्म, सम्यक दृष्टि, सबका कल्याण और सबके विकास की नीतियों और सोच में विश्वास करता है। जबकि हिंदुत्ववादी सोच मनुवाद वर्णवाद, जातिवाद, ऊंच-नीच, अमीर गरीब, धर्मांधता, श्रद्धांधता, छोटा बड़ा, शोषण, जुल्म अन्याय, भेदभाव और छुआछूत में विश्वास करती है।

     सावरकर कहता था कि उसका वाद हिंदुवाद नही, बल्कि हिंदुत्ववाद में विश्वास करता है। वह हिंदुओं का सैन्यीकरण और सेना का हिंदूकरण करने में विश्वास करता था। हिंदुत्ववादी सोच समता, समानता, आजादी, न्याय, जनवाद, धर्मनिरपेक्षता और समाजवादी सोच की खुल्लम खुल्ला विरोध करती है और इनमें कतई विश्वास नहीं करती है। हिंदूत्ववादी सोच का भारत की एकता और अखंडता में कोई विश्वास नहीं है।

     हिंदुत्ववादी सोच और नीतियों का, 90 फ़ीसदी भारतीयों के कल्याण में कोई विश्वास नहीं है, यह  उनके कल्याण की कोई बात नहीं करता। हिंदुत्ववादी नेता 90 फ़ीसदी जनता को रोजगार, रोजी-रोटी, शिक्षा, स्वास्थ्य और बुढ़ापे की अवस्था के बारे में कोई बात नहीं करते। हमारे देश में लगभग 85% हिंदू हैं और हिंदुत्ववादी सोच और नीतियां, 70 फ़ीसदी हिंदुओं, जैनियों बोध्दों और सिखों की बुनियादी समस्याओं जैसे रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक सुरक्षा, बुढ़ापे की पेंशन और रोजगार के बारे में कोई बात नहीं करती। हिंदुत्ववादी नीतियों के कारण देश की एकता, अखंडता, कानून के शासन और संविधान को आज सबसे बड़ा खतरा पैदा हो गया है।

      हिंदुत्ववादी साधु सन्यासी धर्म संसद में मुसलमानों के कत्लेआम का आह्वान कर रहे हैं, गांधी की उपेक्षा और अपमान कर  रहे हैं, गांधी के हत्यारे गोडसे का महिमामंडन और गुणगान कर रहे हैं और हिंदुत्ववादी सरकार खामोश होकर तमाशबीन बनी हुई है। हिंदुत्ववादियों और उनकी सरकार की कोई भी नीति 80% हिंदुओं की गरीबी, अन्याय, बेरोजगारी, शोषण, महंगाई और भ्रष्टाचार के खात्मे की बात नहीं करती। हमारे देश में 77 फ़ीसदी लोगों की आय ₹20 प्रतिदिन भी नहीं है, बेरोजगारी आज अपने चरम पर है आर्थिक असमानता ने सारी हदें पार कर दी हैं, भ्रष्टाचार नैतिकता और सामाजिक मूल्यों को निगल गया है, महंगाई ने जनता की कमर तोड़ दी है।

      किसानों को फसलों का वाजिब दाम मिले, मजदूरों के अधिकारों को लागू किया जाए, सारे कर्मचारियों और बुजुर्गों को पेंशन दी जाए, सबको रोजगार मोहिया कराया जाए, नौकरियों को स्थाई किया जाए, सभी तरह की ठेकेदारी प्रथा का खात्मा हो, तमाम हिंदूत्ववादियों का इस ओर कोई ध्यान नहीं है। बड़े बड़े पूंजीपतियों ने सरकारी बैंकों के 11 लाख करोड़ रुपए मार लिए हैं, हिंदुत्ववादियों की इतने बड़े धन को वापस लेने की कोई योजना नहीं है। हमारे देश में सारे पांच करोड़ मुकदमे पेंडिंग हैं, मुकदमों के अनुपात में जज और कर्मचारी नहीं हैं। हिंदूत्ववादी सोच के लोगों और सरकार का इस और कोई ध्यान नहीं है, जनता को सस्ता और सुलभ न्याय दिलाना उनकी सोच और नीतियों में नहीं है।

     आजादी के 75 साल के बाद भी हम देख रहे हैं कि भारत के किसानों को उनकी फसलों का वाजिब दाम नहीं दिया जा रहा है। उन को गुलाम बनाने की कोशिश की जा रही है। अभी हम देख रहे हैं कि टमाटर की कीमत ₹100 प्रति किलो से ज्यादा हो गई हैं मगर किसानों को 10 ₹15 किलो का भाव भी नहीं दिया जा गया है। यही हाल प्याज और दूसरी फसलों को लेकर होता है जिसमें किसान अपनी फसलों का वाजिब दाम न मिलने के कारण, फसलों को कई बार सड़कों पर ही फेंक देते हैं, मगर इसके बावजूद भी सरकार ध्यान देने को तैयार नहीं है।

       हम पिछले बहुत समय से देख रहे हैं कि मोदी सरकार के आने के बाद लोगों में उम्मीद जगी थी कि भारत के मजदूरों को न्यूनतम वेतन मिलेगा, हाजिरी कार्ड मिलेगा, वेतन पर्चियां मिलेगी, मगर उनकी यह सारी उम्मीदें धराशाई हो गई हैं। आज हालात यह हैं कि भारत के 85% मजदूरों को न्यूनतम वेतन नहीं मिलता है। पूंजीपतियों और सेवायोजकों ने मजदूरों के पक्ष में बने श्रम कानूनों को लगभग रौंद दिया है। आज अधिकांश सरकारी गैर-सरकारी उद्योगों में, कारखानों में और दुकानों में मजदूर कानूनों को लागू नहीं किया जा रहा है और वे लगातार भयंकर शोषण के शिकार हैं।

       यही हाल भारत के नौजवानों और छात्रों का है भारत के करोड़ों करोड़ नौजवानों को रोजगार देने का कोई रोडमैप सरकार के पास नहीं है। पूरी दुनिया में भारत में सबसे ज्यादा बेरोजगार और गरीब हैं। मगर इन बेरोजगारों की गरीबी और बेरोजगारी दूर करने के लिए सरकार ने किसी नियम या नीति का निर्माण नहीं किया है।

       यही स्थिति भारत के अधिकांश गरीबों के साथ है जिसमें उनकी गरीबी दूर करने के लिए सरकार ने कोई पहल कदमी नहीं की है। सरकारी आंकड़ों के हिसाब से ही भारत में 80 करोड़ से ज्यादा गरीब हैं। आखिर ये लोग कब तक गरीब रहेंगे? इसी के साथ साथ सरकार ने सरकारी नौकरियां लगभग बंद कर दी है। 10 करोड़ से ज्यादा सरकारी पद खाली पड़े हुए हैं, मगर सरकार इन्हें भरने के मूड में नहीं है। सरकार की नीतियों के कारण आरक्षण की व्यवस्था ताक पर रख दी गई है जिस कारण भारत की 75% जनसंख्या जिनमें ओबीसी एससी एसटी शामिल हैं, उनको रोजगार के अवसरों से बिल्कुल मेहरूम कर दिया गया है।

      उपरोक्त के आलोक में हम निश्चित रूप से कह सकते हैं कि निकट भविष्य में 80 फ़ीसदी हिंदुओं को अपने सामने मुंह बाए खड़ी बुनियादी समस्याओं से निजात मिलने की कोई उम्मीद नहीं है और हिंदुत्ववादी सोच और पूंजीपतियों और उनकी सरकार, भारत के हिंदुओं की सबसे बड़ी विरोधी और दुश्मन बन कर सामने आई है और आज हिंदुओं को सबसे ज्यादा खतरा हिंदुत्ववादी सोच और हिंदूवादी सरकार और पूंजीपतियों और उनकी नीतियों से है।

      हम यहां पर जोर देकर कहना चाहेंगे कि हिंदुत्ववादी सोच, मानसिकता, नज़र और जनविरोधी नजरिए को, गौतम बुद्ध, महावीर जैन, अमीर खुसरो, कबीर, नानक, ज्योतिबा फुले, गांधी टैगोर, अम्बेडकर और क्रांतिकारी भगत सिंह, बिस्मिल, आजाद और सुभाष चंद्र बोस और कम्युनिस्ट विचारधारा की सम्यक दृष्टि और सर्व कल्याण की सोच और नीतियां से ही हराया जा सकता है। 

     याद रखना, हिंदुत्ववादी और पूंजीपतियों की सरकार ही, उनकी नीतियां और सोच ही, इस देश के हिंदुओं के सबसे बड़े अहितकारी और दुश्मन हैं।  हिंदुत्ववादियों और पूंजीपतियों के गठजोड़ की सरकार की इस हिंदू विरोधी सोच, मानसिकता और नीतियों को 90 फ़ीसदी भारतीय जनता के एकजुट संघर्ष और आंदोलन और क्रांतिकारी सोच, नीतियों और आंदोलन से ही हराया और हटाया जा सकता है, इसके अलावा और कोई विकल्प नहीं रह गया है।

script async src="https://pagead2.googlesyndication.com/pagead/js/adsbygoogle.js?client=ca-pub-1446391598414083" crossorigin="anonymous">

Follow us

Don't be shy, get in touch. We love meeting interesting people and making new friends.

प्रमुख खबरें

चर्चित खबरें