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मोदी सरकार के लिए सबसे बड़ा खतरा है शेयर बाजार का कोहराम

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सनत जैन

भारतीय शेयर बाजार अक्टूबर माह में निरंतर गोता लगा रहा है। विदेशी निवेशक भारतीय बाजार छोड़कर चीन की ओर रुख कर रहे हैं। 5000 अंकों से ज्यादा की गिरावट शेयर बाजार में पिछले एक माह में आई है। विदेशी निवेशकों ने भारतीय बाजार से एक लाख करोड रुपए की निकासी कर ली है। शुक्रवार को भारतीय शेयर बाजार 79298 अंकों पर बंद हुआ। एक ही दिन में निवेशकों के 10 लाख करोड रुपए डूब गए।

भारतीय शेयर बाजार में मंदी के कारण बिकवाली का जो माहौल बना हुआ है। उसमें म्युचुअल फंड और भारतीय वित्तीय संस्थान, जिनमे बैंक और भारतीय सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियां हैं। बाजार को गिरने से रोकने के लिए भारी मात्रा में शेयर बाजार में निवेश कर रहे हैं। इसके बाद भी शेयर बाजार में लगातार बिकवाली और मुनाफा वसूली के कारण बड़ी तेजी के साथ बाजार गोता लगा रहा है। यह कितने नीचे तक जाकर गोता लगायेगा यह कह पाना बड़ा मुश्किल है। भारत में पिछले कुछ वर्षों से भारतीय शेयर बाजार में कुछ कॉरपोरेट कंपनियों की सट्टेबाजी के कारण दिन दूनी रात चौगुनी गति से आंधी तूफान की तरह शेयर बाजार को बड़ी तेजी के साथ सट्टा बाजार में तब्दील हो गया था। भारतीय शेयर बाजार अपनी सभी सीमाओं को पार कर चुका है।

पिछले कुछ वर्षों से भारतीय शेयर बाजार से भारी मुनाफा वसूली की गई है। बैंकों, सरकारी वित्तीय संस्थाओं द्वारा जितना भी निवेश किया गया। वह मुनाफा वसूली में पहले ही विदेश चला गया। रही सही कसर विदेशी निवेशक निकल रहे हैं, जो भारतीय शेयर बाजार से निकलकर बाजार को ढहाने का काम कर रहे हैं। यदि एक सप्ताह इसी तरह की गिरावट और भारतीय शेयर बाजार को झेलनी पड़ी, तो बैंकों और सरकारी वित्तीय संस्थानों को भारी नुकसान उठाना पड़ेगा। डीमेट के जरिए जो भारतीय छोटे निवेशक शेयर बाजार से जुड़े थे, उन्हें भी भारी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ेगा।

ऐसी स्थिति में भारत में जो वित्तीय अफरा तफरी फैलेगी। वह अमेरिका में 2008 की मंदी से भी ज्यादा भयानक स्थिति भारत की होगी। अमेरिका दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था था। 2008 की आर्थिक मंदी के बाद सोने और कच्चे तेल के दाम अंतरराष्ट्रीय नीतियों के कारण बड़ी तेजी के साथ बढे। अमेरिका अपनी दादा‎गिरी के चलते आर्थिक मंदी से बाहर निकल आया। भारत के पास ऐसा कोई बैकअप उपलब्ध नहीं है। भारत सरकार के ऊपर विदेशी कर्ज 2014 की तुलना में 5 गुना बढ़ गया है। केंद्र सरकार, राज्य सरकार और स्थानीय संस्थाएं कर्ज लेकर शुद्ध घी पी रही हैं। शेयर बाजार के मुनाफे से बैंकों और कंपनियों की बैलेंस शीट भारी कमाई कर रही थी। यह सारी कमाई कागजी कमाई थी, जो शेयर बाजार से हो रही थी। अक्टूबर माह में ही भारतीय शेयर बाजार से 30 लाख करोड रुपए से ज्यादा का नुकसान ‎निवेशकों को हो गया है। शेयर बाजार की गिरावट को रोकने के लिए म्युचुअल फंड और भारतीय सार्वजनिक क्षेत्र की वित्तीय संस्थाओं ने इस बिकवाली के समय बाजार में भारी निवेश करके विदेशी निवेशकों को मुनाफा वसूली का मौका दिया है।

आर्थिक विशेषज्ञों का मानना है, यदि यही स्थिति 1 महीने भी भारतीय शेयर बाजार में बनी रही, तो भारत में आर्थिक कोहराम मचना तय है। इसका सबसे ज्यादा असर केंद्र सरकार पर भी पड़ेगा। अर्थव्यवस्था को लेकर सरकार ने हमेशा जो सपने आम जनता को दिखाएं हैं। यदि आम जनता का वह सपना टूटेगा, तो सरकार को भारी परेशानी उठानी पड़ेगी। सरकार का अस्तित्व बना रहेगा या नहीं, यह कहना भी बड़ा मुश्किल है।

वर्तमान की केंद्र सरकार बैसाखियों पर टिकी हुई है। जब मुसीबत आती है तो सबसे पहले बैसाखी ही साथ छोड़ती है। 1992 के हर्षद मेहता के घोटाले में जो ‎स्थिति भारतीय शेयर बाजार की हुई थी, वर्तमान की तुलना में वह ऊंट के मुंह में जीरे के समान थी। वर्तमान ‎स्थिति में भारत का सारा पैसा भारत से ‎निकलकर ‎विदेशों में पहुंच गया है। जो भारत में आना मु‎श्किल है। सपनों में हम जो सोच रहे थे, वह सपना टूटने वाला है। नींद और सपना जब भू टूटता है, तभी वास्त‎विकता का अहसास होता है। वही समय आ गया है।

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