कुमार चैतन्य
_शतरंज खेल की उत्पत्ति कब और कैसे हुई, यह निश्चित रूप से नहीं कहा जा सकता। एक किंवदंती है कि इस खेल का आविष्कार लंका के राजा रावण की रानी मंदोदरी ने इस उद्देश्य से किया था कि उसका पति रावण अपना सारा समय युद्ध में व्यतीत न कर सके। एक पौराणिक मत यह भी है कि रावण के पुत्र मेघनाद की पत्नी इस खेल में पारंगत थी।_
7वीं सदी के सुबंधु रचित ‘वासवदत्ता’ नामक संस्कृत ग्रंथ में भी इसका उल्लेख मिलता है। बाणभट्ट रचित हर्षचरित्र में भी चतुरंग नाम से इस खेल का उल्लेख किया गया है। इससे स्पष्ट है कि यह एक राजसी खेल था, प्राचीनकाल में इसे चतुरंग अर्थात सेना का खेल कहा जाता था। चतुरंग में चार अंग होते थे- पैदल, अश्वारोही, रथ और गज इसीलिए इस खेल के नियम बहुत कुछ युद्ध जैसी प्रथा पर आधारित हैं।
‘अमरकोश’ के अनुसार इसका प्राचीन नाम ‘चतुरंगिनी’ था जिसका अर्थ 4 अंगों वाली सेना था। गुप्त काल में इस खेल का बहुत प्रचलन था। पहले इस खेल का नाम चतुरंग था लेकिन 6ठी शताब्दी में फारसियों के प्रभाव के चलते इसे शतरंग कहा जाने लगा। यह खेल ईरानियों के माध्यम से यूरोप में पहुंचा तो इसे चैस (Chess) कहा जाने लगा।
छठी शताब्दी में यह खेल महाराज अन्नुश्रिवण के समय (531-579 ईस्वी) भारत से ईरान में लोकप्रिय हुआ तब इसे ‘चतुरआंग’, ‘चतरांग’ और फिर कालांतर में अरबी भाषा में ‘शतरंज’ कहा जाने लगा तब इसमें ऊँट और वजीर शामिल किए गए। तिथितत्व नामक ग्रंथ में भी वेदव्यास द्वारा युधिष्ठिर को शतरंज खेल की विद्या सिखाने का उल्लेख किया गया है, जिसमें चित्रपट (बिसात) ६४ घरों का होता था, जिसके चारों ओर खेलने वाले बैठते थे, प्रत्येक खिलाड़ी के पास एक राजा, एक हाथी, एक घोड़ा, एक नाव और चार बट्टे या पैदल होते थे।
पूर्व की ओर की गोटियाँ लाल, पश्चिम की पीली, दक्षिण की हरी और उत्तर की काली होती थीं। खेलने की रीति आजकल के जैसी ही होती थी, परंतु हार जीत कई प्रकार से होती थी।
आधुनिक युग में शतरंज एक चौपाट (बोर्ड) के ऊपर दो व्यक्तियों के लिये बना खेल है। चौपाट के ऊपर कुल 64 खाने या वर्ग होते हैं, जिनमें 32 चौरस काले या अन्य रंग के और 32 चौरस सफेद या अन्य रंग के होते हैं। खेलने वाले दोनों खिलाड़ी भी सामान्यतः काला और सफेद कहलाते हैं।
प्रत्येक खिलाड़ी के पास एक राजा, एक वजीर, दो ऊँट, दो घोडे, दो हाथी और आठ सैनिक होते हैं।
विश्वनाथन आनंद के विश्व के सर्वोच्च खिलाड़ियों में से एक के रूप में उदय होने के बाद भारत ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर काफी उपलब्धियां हासिल की हैं। 1987 में विश्व जूनियर स्पर्धा जीतकर विश्वनाथन शतरंज के पहले भारतीय विश्व विजेता बने।
इसके बाद उन्होंने विश्व के अधिकांश प्रमुख खिताब जीते हैं। 1987 में आनंद भारत के पहले ग्रैंड मास्टर बने। भारत में शतरंज खेल का नियंत्रण अखिल भारतीय शतरंज महासंघ (All India Chess Federation) यानी एआईसीएफ द्वारा किया जाता है, जो 1951 में स्थापित किया गया है।
शतरंज के फैंस और इस खेल से जुड़े भारतीयों के लिए बड़ी खुशखबरी है की 9 साल बाद भारत में अंतर्राष्ट्रीय शतरंज ओलंपियाड का आयोजन होने वाला है। आयोजन के लिए चेस सिटी चेन्नई को चुना गया है। (चेतना विकास मिशन).