अखिलेश अखिल
लोकसभा चुनाव में बीजेपी को जो झटका लगा है। वह बीजेपी की ताबूत में किसी कील से कम नहीं। यह कील ऐसी है जो पार्टी को भी चुभ रही है और संघ परिवार को भी घायल कर रही है। मुद्दे की बात तो यह है कि बीजेपी को लगे झटके ने संघ परिवार के सारे अरमानों को धूल- धूसरित कर दिया है। संघ के भीतर अब यह बहस आम हो चली है कि भले ही मोदी के नेतृत्व में तीसरी बार एनडीए की सरकार बन गई हो, मोदी के अरमान पूरे हो गए हों, लेकिन अब संघ की हिंदुत्ववादी विचारधारा और एजेंडा भला कैसे पूरा हो सकता है? फिर अगले साल होने वाले संघ के शताब्दी वर्ष का क्या होगा? संघ अपने शताब्दी वर्ष के अवसर पर तो कई बातों का ऐलान करने को आतुर था। हिन्दू राष्ट्र की परिकल्पना क्या धरी ही रह जाएगी? और इन सभी बातों से इतर अगर मोदी की सरकार खिसक गई तब क्या होगा? ऐसे बहुत से सवाल उठ खड़े हो रहे हैं।
कहने को संघ अपनी तरफ से मोदी की तानाशाही रवैये पर हमला करने से भले ही नहीं चूक रहा है, लेकिन उसके पास विकल्प भी क्या है ? विकल्प के तौर पर एक योगी बाबा दिखाई पड़ रहे थे। योगी भले ही संघ परिवार से नहीं आते हैं, लेकिन जिस तरह से योगी हिन्दुत्व को लेकर आक्रामक थे। वे भी तो मोदी और शाह के जाल में फंस गए हैं। यह जाल ऐसा है जिसमें कई लोगों को बलिदान होना पड़ सकता है। योगी अगर पद से हटाए जाते हैं तो यूपी की राजनीति में बड़ा बवाल भी हो सकता है और योगी अगर किसी कारण बस बच भी जाते हैं तो घायल सांप की भाति आगे वे क्या कुछ करते हैं, यह भी तो कोई नहीं जानता। संघ की चिंता का बड़ा कारण यही है।
बीजेपी के सामने बड़ा संकट उठ खड़ा हुआ है। और यह संकट कोई ऐसे ही नहीं आया है। जब कोई पार्टी अपनी उत्थान के चरम पर पहुंच जाती है तब फिर उसका पराभव ही होता है। पिछले दस सालों में बीजेपी को जितना पाना था, वह पा चुकी है। पीएम मोदी को जो कुछ भी पाना था और करना था वह भी अब पूरा हो चुका है। देश और समाज के भीतर इतना जहर फैलना था, वह भी प्रवाहित हो चुका है और इसके परिणाम के रूप में मोदी की साख लगातार निचले पायदान पर खिसकती जा रही है। अब कोई यह कल्पना नहीं करता कि बीजेपी का पुनः उत्थान हो सकता है, कल्पना तो यह की जा रही है कि क्या मौजूदा बीजेपी के अवसान के बाद पार्टी बच भी पायेगी या नहीं? जानकार भी मान रहे हैं कि पिछले कुछ सालों में बीजेपी ने जितनी पार्टियों को ख़त्म किया है, जितने नेताओं को अपने साथ जोड़ा है वह कभी भी पाला बदल सकते हैं और सबसे बड़ी बात जो लोग बीजेपी में उदारवादी माने जाते हैं क्या वह आगे भी बीजेपी के साथ चलने को तैयार हैं ?
लेकिन इन तमाम बातों के बीच चर्चा के केंद्र में मोदी और योगी हैं। लोकसभा चुनाव के बाद बीजेपी को बड़ा झटका उत्तरप्रदेश में ही तो लगा है। इंडिया गठबंधन वालों की भले ही सरकार नहीं बनी हो, लेकिन उसने बीजेपी को यूपी में ध्वस्त तो कर ही दिया है। सच यही है और इस सच की अभी कोई भरपाई नहीं की जा सकती। यह ऐसा सच है जो बीजेपी के भीतर घमासान मचा रखा है। मोदी और अमित शाह के निशाने पर सीएम योगी आ गए हैं। मोदी के नाम पर भले ही लोकसभा चुनाव लड़े गए हों, लेकिन हार का ठीकरा योगी पर फोड़ दिया गया है। कोई यह नहीं कह रहा कि योगी के साथ तो दो और उपमुख्यमंत्री काम कर रहे हैं। एक उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ब्राह्मण समुदाय से आते हैं जबकि दूसरे उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्या पिछड़ी जाती से आते हैं। ब्राह्मणों और ठाकुरों का यूपी में कितना बड़ा वोट बैंक है यह सब जानते हैं। ब्राह्मणों और ठाकुरों का बड़ा वोट बैंक आज भी बीजेपी के साथ ही खड़ा रहा है। ऐसे में सवाल तो यही है कि अगर सीएम योगी से कोई चूक चुनावी रणनीति में हुई है तो पिछडों और अगड़ों ने नेता कहे जाने वाले दोनों उपमुख्यमंत्रियों की गर्दन को क्यों नहीं मरोड़ी जा रही है। खेल तो यह किया जा रहा है कि ठाकुर समुदाय से आने वाले कट्टर हिंदूवादी नेता का चादर ओढ़े योगी से इस्तीफे की मांग तेज हो रही है। कहने को यह सब केशव प्रसाद मौर्य के कंधो के सहारे होता दिख रहा है लेकिन सभी जानते हैं कि यह सारा खेल मोदी और शाह के इशारे पर किया जा रहा है।
वैसे योगी भी कम दोषी नहीं है। समाज में नफरत फैलाने वाले नेताओं में उनकी चर्चा अब होती ही रहेगी। उन्होंने अपना जो चेहरा समाज और जनता के बीच पेश किया है वह डरावना है। बुलडोजर बाबा कहलाने में उन्हें गर्व महसूस होता रहा है। और यही कारण है कि भले ही आज वे विधायकों की बड़ी संख्या अपने साथ खड़े होने की बात कर रहे हों, लेकिन आंकड़े तो यही कहते हैं कि उनके पास दर्जन भर भी विधायक अभी नहीं है। उन्हें चारो तरफ से घेर लिया गया है। कड़वा सच यही है कि योगी बाबा को अब कुर्सी छोड़नी पड़ेगी और रुखसत लेना ही पड़ेगा। लेकिन अभी नहीं। थोड़ा इन्तजार और कीजिये।
सीएम योगी के पिछले दिनों के बयान को याद कीजिये, तो पता चलता है कि उन्होंने यूपी में पार्टी की बुरी हार के लिए अति आत्मविश्वास को जिम्मेदार ठहराया है। उन्होंने यह भी कहा है कि टिकट बंटवारे में भी उनकी कोई राय नहीं ली गई। सब कुछ वन मैन शो की तरह हुआ। जाहिर है योगी हार के लिए खुद को नहीं पीएम मोदी को ही जिम्मेदार मान रहे हैं और अगर ऐसा ही है तो साफ हो गया है कि पीएम मोदी अब अपनी साख और इक़बाल को खो चुके हैं। साख और इक़बाल का प्रभावहीन होने का सबसे बड़ा सबूत भी योगी के लोग ही दे रहे हैं। योगी के नजदीकी भी अब कहते फिर रहे हैं कि जिस धर्म और धार्मिक उन्माद के सहारे धार्मिक जगहों के जरिये जनता को अपने पक्ष में अब तक किया जरा था ,उन सभी जगहों पर बीजेपी की हार हो गई। अयोध्या भी हार गए और संगम की नगरी इलाहाबाद भी बीजेपी हार गई। चित्रकूट भी बीजेपी हार गई और कन्याकुमारी भी हाथ से निकल गया। बद्रीनाथ की सीट भी चली गई और सबसे मजे की बात साधु-संतो और कथावाचकों की सैकड़ों टोलियां भी इस प्रभाव को बचा नहीं सकी। जाहिर है योगी के लोग भी अब बहुत कुछ कह रहे हैं और मोदी से लेकर शाह तक सुन भी रहे हैं।
लेकिन फिर भी योगी के सामने अपनी कुर्सी बचाने का एक मौका अभी है। यूपी में दस सीटों पर उपचुनाव होने हैं। हालांकि जहां उपचुनाव होने हैं उनमें से आधी सीटों पर सपा और कई दूसरी पार्टियों का काफी वर्चस्व रहा है। मोदी अगर उपचुनाव में इन सभी सीटों को जीत ले जाते हैं, तो वे सीना ठीक कर कह सकते हैं कि उनके नेतृत्व में उपचुनाव में सफलता मिली है। लेकिन क्या यह सब संभव है? क्या योगी विरोधी उनकी ही पार्टी के लोग ऐसा कुछ होने दे सकते हैं। क्या केवल ठाकुर वोट से ये उपचुनाव जीत सकते हैं? क्या ब्राह्मणों का वोट बीजेपी को मिल सकता है? और सबसे बड़ी बात तो यह कि केशव प्रसाद मौर्या यह दावा कर सकते हैं कि वे पिछडों का वोट दिलाने में सफल होंगे? याद रहे सपा ने भी बड़ा दाव खेलते हुए सदन में विपक्ष का नेता एक ब्राह्मण माता प्रसाद पांडेय को ही बना दिया है। उपचुनाव से पहले सपा का यह ब्राह्मण कार्ड वाला दाव बीजेपी के साथ ही योगी के लिए कम मुसीबत वाला नहीं है। खबर तो यही आ रही है कि बीजेपी से नाराज ब्राह्मण नेता अब सपा की तरफ बढ़ने को आतुर हैं।
ऐसे में अब साफ़ हो गया है कि अगर उपचुनाव में बीजेपी की जीत होती है तो योगी की कुर्सी बचेगी और ऐसा नहीं हुआ तो योगी हटाए जायेंगे। लेकिन यह भी उतना ही सच है कि बीजेपी के भीतर अगर यह ऑपरेशन चला तो केशव प्रसाद मौर्या को क्या मिलेगा? क्या वे सीएम बनाये जायेंगे? कदापि नहीं। बीजेपी मौर्या का उपयोग कर रही है योगी को हटाने के लिए। उधर संघ के लोग इस खेल पर नजर लगाए बैठे हैं। संघ को अगर योगी नहीं चाहिए तो फिर मोदी की भी क्या जरुरत है?
मोदी और शाह के सामने भी बड़ी चुनौतियां है। पिछले दस साल में पहली बार मोदी और शाह विपक्ष के निशाने पर हैं और जमकर इनकी खिल्ली उड़ाई जा रही है। उनकी ताकत कम हो गई है। उनकी एजेंसियां अब भोथरी हो गई है। सरकार के बहुत से नौकरशाह अब रात के अंधेरे में इंडिया गठबंधन वालों से मिल भी रह रहे हैं। मोदी के दस साल के फाइलों की जानकारी राहुल गांधी तक भी पहुंच रही है। मोदी और शाह को यह सब पता है लेकिन मजबूर भी तो हो गए हैं। इस मज़बूरी में बीजेपी के अधिकतर सांसद भी डरे हुए हैं। लगभग दो दर्जन से ज्यादा संसद ऐसे हैं जो पिछली मोदी सरकार में बहुत कुछ बनाये हैं। इसकी लिस्ट भी विपक्ष के पास पहुंच गई है और सबसे बड़ी बात तो यह है कि मोदी और शाह के इस खेल को अब संघ भी समझ गया है। इस पूरे खेल में मौजूदा पार्टी अध्यक्ष और मोदी सरकार में मंत्री जेपी नड्डा की हालत सबसे ज्यादा ख़राब होने वाली है।
इसी साल के अंत तक तीन प्रमुख राज्यों महाराष्ट्र ,हरियाणा और झारखंड में विधान सभा चुनाव होने हैं। मोदी कितने लोकप्रिय हैं उसकी परीक्षा इन्हीं तीनो राज्यों में होनी है। आज की तारीख में इन तीन में से दो राज्यों में कथित रूप से बीजेपी की सरकार है। ऐसे में बड़ा सवाल तो यही है कि क्या बीजेपी यह दावा कर सकती है और पीएम मोदी से लेकर अमित शाह यह घोषणा कर सकते हैं कि इन तीन राज्यों में उनकी सरकार बन सकती है? सच्चाई तो यही है कि मौजूदा समय की राजनीति में बीजेपी महाराष्ट्र खोने जा रही है जबकि झारखंड और हरियाणा में भी बीजेपी को बड़ा डेंट लग सकता है। और ऐसा हुआ तो क्या पीएम मोदी अपनी कुर्सी बचा सकते हैं? क्या संघ फिर इन्हें बर्दाश्त कर सकता है? निश्चित रूप से संघ मोदी की कुर्सी को खाली करा सकती है और उन्हें मार्गदर्शक मंडल में भेज सकती है। पीएम मोदी को भी यह सब पता है कि इस बार संघ उन्हें बर्दाश्त नहीं करेगा और तीन राज्यों के चुनाव में बीजेपी हार जाती है तो इंडिया गठबंधन वाले भी उनकी सरकार को उखाड़ फेंक सकते हैं। दो वैशाखियों पर टिकी मोदी की सरकार से कौन सी बैसाखी कब टूट जाएगी यह भी तो किसी को पता नहीं है।